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  1. झूठी सुरक्षा का भाव

    झूठी सुरक्षा का भाव तुम्हारी श्रद्धा को बढ़ने नहीं देता। जब तुम अपनी सुरक्षाओं को छोड़ देते हो तब तुम्हारी श्रद्धा बढ़ती है। जब तुम अपने जीवन को भौतिक सुरक्षाओं से घेर लेते हो, तब तुम श्रद्धा से दूर हो जाते हो। श्रद्धा ही तुम में पूर्णता लाती है । श्रद्धा ...
  2. श्रद्धा एवं जागरूकता

    श्रद्धा और सजगता, दोनों एक दूसरे के विरोधाभासी लगते हैं। जब तुम पूर्णतः जागरूक होते हो तो अक्सर श्रद्धा नहीं रहती और तुम व्याकुल एवं असुरक्षित महसूस करते हो। जब तुम किसी पर पूर्ण विश्वास कर के चलते हो अर्थात श्रद्धा से चलते हो, तब मन पूर्ण रूप से शांत एवं ...
  3. श्रद्धा और भक्ति

    श्रद्धा दिमाग का विषय है, और भक्ति, दिल का। ध्यान दोनों का विषय है। ध्यान दिल और दिमाग दोनों को जोड़ता है।   एक परिपक्व बुद्धि ही भक्ति कर सकती है। एक परिपक्व दिल ज्ञान से प्लावित होता है। ध्यान से तुम्हारी बुद्धि और दिल दोनों परिपक्व होते हैं।            ...