श्रद्धा और भक्ति

श्रद्धा दिमाग का विषय है, और भक्ति, दिल का। ध्यान दोनों का विषय है। ध्यान दिल और दिमाग दोनों को जोड़ता है।

 

एक परिपक्व बुद्धि ही भक्ति कर सकती है। एक परिपक्व दिल ज्ञान से प्लावित होता है। ध्यान से तुम्हारी बुद्धि और दिल दोनों परिपक्व होते हैं।

 

      

अब ध्यान करना है बहुत आसान ! आज ही सीखें !

 

जाॅन - परन्तु एक बुद्धिमान व्यक्ति में श्रद्धा की कमी नज़र आती है।

 

श्री श्री - उन्हें भौतिक जगत में अधिक श्रद्धा होती है। दिमाग को उस में अधिक श्रद्धा होती है जो नज़र आता है। दिल को उस में अधिक श्रद्धा होती है जो भले ही समझ के परे हो और चाहे नज़र ना आता हो।

 

किसी में श्रद्धा का या भक्ति का पूरा अभाव हो, यह असंभव है। यह प्रश्न केवल संतुलन का है।

 

जितना प्रेम आप अपने बच्चों से या दोस्तों से करते हो, उससे हज़ार गुना ज्यादा प्रेम जब आप ईश्वर से करते हो, तो वह भक्ति कहलाता है।