बांस के बच्चों ने गायी नयी धुन

कर्णाटक की सोलिगा जनजाति में 821 घरों  बिजली से उजागर हुए।

दोपहर में एक रौशन झोपड़ी!  ये एक नया नज़ारा था। नहीं, वो सूर्य का प्रकाश नहीं था। उस असामान्य दृश्य को देखने के लिए जल्द ही कुछ लोग, झोपड़ी के बाहर एकठ्ठा हो गए। कुछ फुसफुसाहटे, कुछ मुस्कुराहटें ,कुछ तालियाँ, और कुछ लोग भागते हुए दूसरों को निमन्त्रण  देते हुए। यहां ध्यान का केंद्र कुछ असाधारण/असामान्य नहीं था। पर ये तो एक साधारण सा दृश्य था, एक बिजली के दीपक का। 

अलग, यहां सोलर ऊर्जा थी। एक आदिवासी गांव ने कभी भी ऐसे विद्युत ऊर्जा नहीं पायी थी। ऐसा पहली बार था कि कर्णाटक की बिलिगिरिरंगा पहाड़ी पर विद्युत ऊर्जा पहुंच सकी थी। और सोलिगा जनजाति ने कोई भी शिकायत नहीं की थी। 

बांस के बच्चे

अपनी वन संरक्षण की तकनीकों के अलावा , सोलिगा जनजाति अपने लोक संगीत के लिए भी प्रसिध्द् हैं। जनजाति का नाम बदल कर “बांस के बच्चे” कर दिया गया है। बिलिगिरिरंगा पहाड़ों पर बसी सोलिगा जनजाति प्रकृति प्रेम के लिये प्रसिध्द है। पूर्व एवं पश्चिम घाटों में एक अदभुत जैव-भौगोलिक संपर्क है। भारत के, दक्कन के पठार में, बिलिगिरिरंगा पहाड़ी एक पारिस्थितिक पुल का काम करती है।

भारत का आइटी राजधानी के तौर पर प्रसिद्ध बंगलूरू, से मात्र 200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, बिलिगिरिरंगा पहाड़ी प्रकृति प्रेमियों और साहसिक उत्साही लोगों के बीच बहुत प्रसिद्ध है। सोलिगा जनजाति के सरल निवासी सतत खेती और कुछ छोटे मोटे वन  पैदावार पर निर्भर हैं। वहां रोज़मर्रा के जीवन यापन में कुछ समस्याएं थीं जो 13 जून 2017 को बेहतर होने की दिशा में आगे बढीं।

घर हुआ रौशन 

आदिवासी आश्चर्यचकित थे। अपने ज्ञात इलाके से हमेशा की तरह  जाते हुए  एक अंजान दृश्य से उनका सामना हुआ। एक समूह जिसमें एक ताइवान के चलचित्र निर्देशक , एक कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, कर्णाटक वन विभाग के अधिकारी और चमराजनगर के निवासी सीमा पर दिखे। 

आश्चर्य और अजीबियत का माहौल ,दोनों समूहों से कुछ देर बाद चला गया। तुरंत आये हुए मेहमान बहुत नेक दिल के थे। उन्होंने सोलर लैम्प किट के लिए ‘लाईट अ  होम’ प्रोजेक्ट के अंतर्गत रकम जुटाना शुरु कर दिया। आदिवासियों के चेहरे खुशी से चमक उठे, क्योंकि वो इसका क्या मतलब था, समझ गए: रात में काम करना आसान हो जाना , बच्चों के लिए रात में पढ़  पाने में सुविधा, आपातकालीन चिकित्सीय स्थितियों  में सुविधाजनक पहुँच, कम केरोसीन का उपयोग। स्वयंसेवी बताते हैं कि “हर सोलर लालटेन (जिसका जीवन 10 साल होता है)से घर को रौशन होने से, तकरीबन 500-600 लीटर केरोसीन का कम इस्तेमाल होता है। जो कि लगभग 1.5 टन, CO2 गैस का न्यूनीकरण करता है। ग्रामीण विद्युतीकरण, बिलिगिरिरंगा पहाड़ी के प्राकृतिक परिदृश्य   के लिए भी फायदेमंद रहा। 

महानायक द्वारा आमंत्रित सोलर ऊर्जा

अगर तकनीक को महानायक के व्यक्तित्व में ढाल सकते ,तो ये साधारण सा दिखने वाला सोलर लैम्प निश्चित ही यह एक समुद्र तट के जैसा लगता। इसकी जीवन को सुधारने वाली योग्यता और सरल बनावट आदिवासियों को जल्द ही समझ में आ गई।  इसकी आसानी से ना टूटने वाली प्लास्टिक बॉडी और 24 घन्टे तक चलने वाली वॉटर प्रूफ (पानी से संरक्षित) बैटरी, के गुणों की आदिवासियों ने बहुत सराहना की। 

ताइवान के उत्साही 22 लोगों का समूहघुला मिला कि उनके जीवन का ही हिस्सा बन गया। 821 आदिवासी परिवारों को सोलर लैंप दिये गए। ताइवान की एक स्कूल टीचर जो की आर्ट ऑफ़ लिविंग ध्यान शिविर भी लेती हैं, कहती हैं कि , “ये तो बस एक छोटी शुरुआत है” ।

इस समूह ने 20 सोलर लैंप लगाये हैं और अब आगे इसके रखरखाव और मरम्मत के प्रशिक्षण के लिए ट्रेनिंग कार्यशालाओं का आयोजन करेंगे। “ हम पंचायत और गांव के मुखिया के साथ बातचीत कर रहे हैं ताकि, कुछ गांव वालों को प्रशिक्षण दे कर प्रोजेक्ट को विश्वसनीय और टिकाऊ बनाया जा सके। “ एक समूह सदस्य बताते हैं। 

जैसे ही दिन ढलने को आता है, दोनो समूह एक नयी शुरुआत के संकेत देते हैं।आशा है, सोलिगा जनजाति, अब सोलर ऊर्जा से ज्यादा लाभान्वित हो पायेगी जबकी स्वयंसेवीयों का समूह ज्यादा प्रेरित महसूस करेगा। अभी बहुत से घरों को जो रौशन करना है। 

बिलिगिरिरंगा वनों के पक्षी भी जैसे सोलिगा आदिवासियों की आवाज़ों में शामिल हो जाते हैं अपने नव निर्मित मित्रों को, अलविदा कहने में। 

ऐसे ही बहुत सी पहलों की शुरुआत ‘लाईट अ  होम ‘ प्रोजेक्ट के तहत की गई, जो अब तक, भारत के 19,800 घरों तक पहुंच कर 65,000 लोगों को लाभान्वित कर चुका है। ये एक छोटा सा प्रयास है ग्रामीण भारत वीद्दयुतीकरण, को बेहतर बनाने की दिशा में। ऐसा कहा जाता है कि भारत में ,छह में से एक घर में बिजली की सुविधा नहीं है। इस प्रोजेक्ट की कोशिश है कि सोलर लैम्प के वितरण द्वारा,सोलर बैटरी चार्जिंग केन्द्रों के निर्माण द्वारा, समुदायों के लिए बायो गैस कारखाने बना कर और माइक्रो ग्रिड प्रणाली को निर्मित कर इस संख्या को बढाया जा सके। 

सोलर लाईट के वितरण की पहल आर्ट ऑफ़ लिविंग के, श्री श्री रूरल डेवलपमेंट प्रोग्राम (SSRDP )के तहत की गई। 2001 में स्थापित SSRDP का लक्ष्य ग्रामीण भारत को अपने प्रोजेक्ट की सहायता से सशक्त बनाना है।