शिव स्वंय अपने पुत्र को कैसे नहीं पहचान सके? | How Shiva Did Not Recognize His Own Son?

पुराणों में बहुत सी असाधारण एवं अविश्वसनीय घटनाएँ उल्लिखित हैं। परंतु इन घटनाओं का अभिप्राय बच्चों की कहानियों की तरह से नहीं लगाना चाहिए। इन घटनाओं व कहानियों में प्रयुक्त भाषा शेक्सपीयर के नाटकों में प्रयुक्त भाषा की तरह है जिसमें बहुत से गूढ़ार्थ निहित हैं। बहुत ही संतुलित एवं सहज मस्तिष्क से ही इन कहानियों के निहितार्थों की व्याख्या की जा सकती है।

इनमें एक कहानी कही गई है कि पार्वती ने अपने शरीर के मैल से एक बालक की रचना की तथा उसे अपने घर के द्वार पर पहरेदारी के लिए नियुक्त किया। इसमें पहला प्रश्न यह उठता है कि पार्वती जो कि स्वंय एक देवी थी, उनके शरीर पर इतना मैल व धूल कैसे जमा हुई? पार्वती तीन गुणों का प्रतीक हैं – सत्, रजस तथा तमस्। यह सारी सृष्टि इन्हीं तीन गुणों से निर्मित हुई है। इन त्रिगुणों से उत्पन्न दोष अथवा अपरिपक्वता हमारी प्रकृति के कार्यों में बाधा उत्पन्न करते हैं। पार्वती ने अपने घर के द्वार पर पहरेदारी के लिए जिस बालक का सृजन किया था वो इसी का प्रतीक है। शिव शुद्ध चैतन्यता अर्थात संपूर्ण जागृति के प्रतीक हैं। जिस प्रकार से सूर्य अंधकार को नहीं पहचानता तथा अपनी उपस्थिति मात्र से अंधकार का विनाश कर देता है उसी प्रकार शिव भी इन दोषों को नहीं पहचानते हैं तथा इस अशुद्धता को नष्ट कर देते हैं। परंतु प्रकृति में अशुद्धता या दोष निश्चित रूप से निहित रहते हैं। इसलिए शिव दोषों के शीर्ष को हटाकर गज का शीर्ष लगा देते हैं, जो कि बुद्धिमता का प्रतीक है। ज्ञान के द्वारा प्रकृति के सभी दोषों को सम्हाला जा सकता है। गणपति का यही आध्यात्मिक एवं पराभौतिक तात्पर्य है कि वे सभी दोषों को समाप्त करने वाले देव हैं। इसलिए ज्ञान दायक तथा अवरोधों को नष्ट करने वाले देवता के रूप में गणपति की आराधाना की जाती हैं, जागृत प्रकृति का सबसे अनूठा अनुचित्रण ज्ञान ही है।

इसे और गहराई से समझने पर प्रकृति व पुरुष का अंतर भी इसके माध्यम से स्पष्ट होता है। इसलिए गणपति उपनिषद में कहा गया है;

अजम निर्वीकल्पम् निराकारम् – एकम्
निरानंदम् आनंदम् अद्वैत पूर्णम्
परम् निर्गुणम् निर्विशेषम् निरीहम्
पर ब्रह्म रूपम् गणेशम् भजेमा

गणेश एकमात्र अजन्मी प्रत्यक्ष वास्तविकता है। वे निर्विकल्प एवं अद्वैत अर्थात निराकार, अविभक्त हैं। यह स्वंय के भीतर संपूर्ण जागरुकता का प्रत्यक्षीकरण एवं अभिव्यक्तिकरण है।

यद्यपि गणप्ति निश्चित रूप से एक निराकार परब्रह्म हैं, तथापि भक्तों के आनंद के लिए एक निश्चित अवधि के लिए मिट्टी की मूर्ती के रूप में उनका आह्वान किया जाता है। उस अवधि के पश्चात गणपति से प्रार्थना की जाति है कि वे हमारे हृदय में पुन: वास करें तथा मिट्टी की मूर्ति को जल में विसर्जित कर दिया जाता है। यह अनुष्ठान भक्तों के लिए किया जाता है गणपति के लिए नहीं। वो जो कि निराकार है, उसका आह्वान साकार रूप में किया जाता है उसके पश्चात मूर्ती को जल में विसर्जित करके हृदय में उस निराकार का आह्वान किया जाता है।

Ganesha Stotram