विश्व रिकार्ड ने बदला जीवन: धनगरी ढोल वादकों के प्रेरक अनुभव !! (Dhangari People Stories In Hindi)

“श्री श्री रवि शंकर जी द्वारा दिये गये अवसर की वजह से और उनकी कृपा से हम आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न हो गये हैं। हमारी युवा पीढ़ी, जो अपने परम्परागत व्यवसाय और कला से दूर हो गई थी, वापिस आने लगी है। ” - --- श्रीपति बीरू माने, पेठवड गाँव

विश्व संस्कृति महोत्सव (World Culture Festival) में महाराष्ट्र की तरफ से 1100 धनगरी ढोल (Dhangari Dhol) (चरवाहों का ढोल) वादक अपने कला प्रदर्शन के लिये 11, 12 और 13 मार्च को दिल्ली गये थे। 32 गाँवों से आये ये ढोल वादक इस अवसर पर 155 देशों से आये कलाकारों के साथ कार्यक्रम किया।

विश्व रिकॉर्ड | World Record

श्री श्री रवि शंकर जी (Sri Sri Ravi Shankar) के आशीर्वाद से कार्यक्रम “अभंगनाद” वर्ष 2011 में कोल्हापुर में सम्पन्न हुआ। एक साथ 1356 वादकों (drummers) द्वारा प्रस्तुत इस कार्यक्रम को गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स (Guinness world record) में स्थान मिला और इस (धनगरी ढोल। Dhangari Dhol) पारम्परिक कला को बढ़ावा मिला, जिसने इन ढोलवादकों के जीवन को पूरी तरह बदल दिया। इस के पीछे श्री श्री रवि शंकर जी (Sri Sri Ravi Shankar) का संकल्प और आशीर्वाद ही है।

“जगाच्या कल्याणा संतांच्या विभूती। देह झिझविती परोपकारे II”

इस मराठी कहावत के अनुसार – इस पृथ्वी पर कल्याण करने हेतु ही संत जन्म लेते हैं और अपना जीवन इसी कार्य के लिये समर्पित कर देते हैं।

लोक कलाओं को प्रोत्साहित करने के लिये और हमारी अतुलनीय संस्कृति को विश्व के सामने लाने के लिये आर्ट ऑफ़ लिविंग द्वारा अनेक ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन किया गया, जिन्हें कि गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड्स में स्थान मिला I उदाहरण के लिये – कुचीपुडी नृत्य का कार्यक्रम, तालनिनाद, अभंगनाद इत्यादि। इन लोक कलाओं को प्रोत्साहन देने के लिये विश्व रिकॉर्ड स्थापित करने वाले कई कार्यक्रमों का आयोजन कर, श्री श्री ने अनेक लोगों का जीवन पूर्णत: बदल दिया।

धनगरी ढोल (Dhangari Dhol) बजाते हुये विश्व रिकॉर्ड (world record) स्थापित करने के बाद कुछ ऐसा ही हुआ। अनेक वादकों का जीवन बदल गया I कितने ही लोगों की आमदनी बढ़ गई। बिखरा हुआ चरवाहा समाज एक होने लगा। बहुत से लोगों को कुछ अच्छा करने की प्रेरणा मिली। लोगों की शिक्षा प्राप्ति में दिलचस्पी बढ़ी है। दूर गई युवा पीढ़ी गाँव वापिस लौटने लगी है। ऐसे बहुत से लोगों के अनुभव को लिखते समय दिखाई दी श्री श्री के प्रति उनकी कृतज्ञता (gratitude), भक्ति (devotion) और साथ ही दिखाई दिया दुगना आत्मविश्वास (self-confidence) । सभी के अनुभव (experiences) तो यहाँ नहीं लिखे जा सकते, परन्तु ये कुछ अनुभव ही अपने में अभूतपूर्व हैं -


“पहले इस ढोल की पूजा कर हम इसकी देखभाल करते थे, लेकिन अभंगनाद के बाद यह ढोल हमारा पालन पोषण कर रहा है। थोड़ी खेती और बकरियां चराना यही आमदनी का साधन था। पाश्चात्य वाद्यों के कारण हमारी कला लुप्त हो चली थी। मगर अभंगनाद के बाद पूरी दुनिया हमें जानने लगी है। अब इस ढोल से हमें आर्थिक लाभ की प्राप्ति हो रही है। गणेश उत्सव, नवरात्रि, धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रमों में लोग हमें बुलाने लगे हैं। पूरे समाज का आर्थिक उत्थान हो रहा है। मेरी स्वयं की आमदनी 5000 रुपये से बढ़ कर 15000 रुपये हो गई है। हमारे समाज में बहुत से लोग अशिक्षित थे और व्यसनों व अंधविश्वासों के शिकार थे। लेकिन अभंगनाद के बाद लोग शिक्षित होने लगे हैं। अंधविश्वासों में कमी आई है। लोग व्यसनों से दूर होते दिख रहे हैं। ये सब आर्ट ऑफ लिविंग और गुरूजी के प्रयासों से ही संभव हो पाया है। उनके रूप में हमें मानो भगवान मिल गये हैं। ”  - बिरदेव बाला सोरानगे, नागाव, कोल्हापुर, महाराष्ट्र


“हमारी कला को इतना बड़ा व्यासपीठ(मंच) मिल जायेगा, कभी सोचा भी न था। अभंगनाद ने मेरा और मेरे सहकर्मियों का जीवन बिल्कुल बदल दिया है। उस समय गुरूजी से केवल दस मिनट के लिये मिलने का अवसर मिला था। उनके विचार सुनने पर लगा कि हमें भी समाज के लिये कुछ करना चाहिये। हमने भी एक ग्रुप बना कर अपनी लुप्त हो चली कला का संवर्धन करने की ठानी। आज हमें उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश से भी बुलावा आता है। पहले गाँव और चौराहों में हमारे छोटे छोटे ग्रुप हुआ करते थे। समय आपसी लड़ाई-झगड़ों में ही निकल जाता था। ढोल बजाने के बहाने हम सब एक हो गये। आर्थिक उन्नति के साथ साथ हम लोगों में आत्मविश्वास, प्रतिबद्धता और एक दूसरे के प्रति भाईचारा भी बढ़ा है और ये सब सम्भव हुआ, आर्ट ऑफ लिविंग की वजह से। ”   - बालकृष्णा कुरुन्दवाड़े, अब्दुललाट, कोल्हापुर, महाराष्ट्र


“पांचवी कक्षा के बाद स्कूल छोड़ने के पश्चात् चाचा की बकरियां चराना और ढोल बजाना, यही मेरा जीवन था। गाँव के बाहर भी कोई जीवन होता है, पता ही न था।   अभंगनाद में ढोल बजाने और आर्ट ऑफ लिविंग के साथ जुड़ने के बाद पता चला कि जीवन क्या होता है। जीवन में नया उत्साह भर गया। गुरूजी श्री श्री रवि शंकर जी के दर्शन से और उनके विचारों से फिर से शिक्षा लेने की उमंग जाग उठी। सुदर्शन क्रिया से मन शांत और एकाग्र हो गया। दसवीं और बारहवीं की परीक्षा पास करके मैंने स्पर्धा परीक्षा में भाग लिया। पुलिस भर्ती में मेरा नम्बर लग गया और अब मैं कोल्हापुर के पुलिस मुख्यालय में नौकरी कर रहा हूँ। कुटुंब में शान्ति आ गई है और जीवन उत्तम बन गया है। आर्ट ऑफ लिविंग ने मुझे सेवा का मतलब समझया है। अब मैं शिक्षा को अधूरा छोड़ने वालों को आगे पढ़ने के लिये प्रोत्साहित करता हूँ। ”  - महादेव मुरारी रानगे, कागल, पुलिस कांस्टेबल


“अभंगनाद से पहले मुझ में आत्मविश्वास की कमी थी। लेकिन ढोल बजाने का अभ्यास करते करते, अंतिम कार्यक्रम तक आर्ट ऑफ लिविंग के कार्यकर्ताओं के साथ सेवा कार्य करते करते मैं कब बदल गया, पता ही नहीं चला। अब मैं, स्टेज पर 100 से भी अधिक लोगों की मिमिक्री करता हूँ। व्यवसायिक कलाकार बनने के बाद मेरी आमदनी काफी बढ़ गई है। मेरे बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ रहे हैं। मैं उन्हें अच्छे संस्कार दे पा रहा हूँ। गुरु कृपा से मेरा जीवन बदल गया है। मैं गुरूजी को और आर्ट ऑफ लिविंग को धन्यवाद देता हूँ। ” - कृष्णात गणपति शेलके, कोल्हापुर, महाराष्ट्र


“श्री श्री रवि शंकर जी के आशीर्वाद से अभंगनाद से हमारी कला सब के सामने आ गई है। अभंगनाद के बाद हमारे श्री मुरसिद्ध/ओविकार मंडल को भारत भर में और श्रीलंका, बंगलादेश, भूटान, आस्ट्रेलिया आदि में जाकर कार्यक्रम करने का मौका मिला। गुरुदेव और आर्ट ऑफ लिविंग की प्रेरणा से मैंने अपना जीवन कला के संवर्धन हेतु सेवा में समर्पित कर दिया है। मेरा जीवन समृद्धि से भर गया है। अभंगनाद के बाद हमारे ग्रुप में प्रतिभा का विकास हुआ है। वालुग, गाजनृत्य, ओवीय कला के माध्यम से हम सामाजिक जागरुकता लाने का प्रयास कर रहे हैं। विश्व सांस्कृतिक महोत्सव के बाद गुरूजी हमें पूरे विश्व में कार्यक्रम प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान कर हमारा जीवन कृतार्थ हुआ, इसमें कोई संदेह नहीं है। ”   -- पैलवान बालासाहेब लक्ष्मण मंगसुले, कुपवाड़


“मैं गुरूजी के प्रति हृदय से ऋणी हूँ। सुदर्शन क्रिया के लिये जितना बोला जाये, कम है। बचपन से कुश्ती का दीवाना था। मैंने बहुत सी कुश्तियां जीतीं, परन्तु आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण आगे खेल नहीं पाया। माँ और पिताजी एक वर्ष के अन्तराल में चल बसे। जीवन में निराश हो गया था। जीवन जीने की इच्छा नहीं रही थी। लेकिन ढोल बजाने के बहाने गुरूजी के दर्शन हो गये। उसके बाद मन शांत होने लगा। फिर आर्ट ऑफ लिविंग के कोर्स में भाग लिया। मन में दबा सब मैल धुल गया। जीवन में जैसे नई जान आ गई। मैं खेती करने लगा और उसे खूब बढ़ाया। जीवन सुधर गया। अब ओवी-पोवडे (पारम्परिक कला) लिखता हूँ। जीवन में मस्ती आ गई है। ” - गजानन पुजारी, शिगांव

 

अगले लेख

  1. सहफसली खेती से सुधर रही मिट्टी की सेहत (Soil Conservation)
  2. ‘भारत निर्माण’ की पहल से शराब की 5 दुकाने बंद (Bharat Nirman Yojana)
  3. चिकमंगलूर में ग्रामवासियों हेतु प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजन (Medical camps in Chikmangalore, Karnataka)
  4. अग्निकांड से पीड़ित गांव में किया राहत कार्य (Rehab camp in Gorakhpur)
  5. सूखा प्रभावित देऊलगांव को मिला पानी (Water conservation in Maharashtra)
  6. डिब्रूगढ़ कैदियों को ‘प्रिज़न स्मार्ट’ से मिली रोजगार की राह ( Rehab programs in Dibrugarh prison)
  7. राजस्थान के नाथद्वार में हुई पक्षियों की वापसी (Bird conservation project in Rajasthan)
  8. ... और यूं सेवा बन गई ट्रेन्ड (Seva train project)
  9. प्रोजेक्ट उड़ान बना रहा है 11000 यौनकर्मियों के जीवन को आसान !! (Udaan project in West Bengal)
  10. गुरुजी के जन्मदिन पर 2567 यूनिट रक्तदान (Blood donation camps)
  11. 272 गांवों पर मंडराता जल संकट होगा खत्म (Kumudavati river rejuvenation project)
  12. युवाओं को स्वावलम्बी बना रहा श्री श्री कौशल विकास केन्द्र अम्बिकापुर (Skill training center in Ambikapur)
  13. अब ग्रामीणों को मिल रहा स्वस्थ जीवन (Clean drinking water project)
  14. बिजली से महरूम इलाकों में भी बच्चे हो रहे हाई-टेक (Electrification project)
  15. लवंग गांव में शुरू हुआ श्री श्री शिव उद्योग समूह (Rural development project in Solapur)
  16. पश्चिम बंगाल का पन्डरी बना देश का पहला सौर ग्राम (Solar powered village in West Bengal)