श्री श्री रवि शंकर के साथ प्रश्नोत्तर
गुरूजी आज दत्तात्रेय जयंती है। हमें दत्तात्रेय के विषय में कुछ बताइए।
जन्मदिन या जयंती का आयोजन उत्सव मनाने और उस व्यक्ति में विद्यमान सद्गुणों को याद करने के लिए किया जाता है। दत्तात्रेय ने सृष्टि में उपस्थित समस्त समष्टि से ज्ञान प्राप्त किया था। अत्रेय ऋषि की कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने दत्ता को गोद ले लिया। दत्ता या दत्त का अर्थ होता है- दिया हुआ, पाया हुआ या अपनाया हुआ। इसीलिए जब कोई किसी बच्चे को गोद लेता है तो उसे “दत्त स्वीकरा” कहा जाता है। अतः जब आत्रेय और अनुसूया ने बच्चे को गोद लिया तो उसे “दत्तात्रेय” कहा गया।
त्रिशक्तियों का साथ होना “गुरु शक्ति” है!
इस बालक में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव, तीनों की ही शक्तियां विद्यमान थीं। सृजनशीलता अनेक लोगों में होती है, पर सभी लोग इसका सदुपयोग नहीं कर पाते। कुछ लोग आरंभ तो अच्छा कर देते हैं लेकिन उसे निरंतर बनाए नहीं रख सकते। सृजनशीलता ही "ब्रह्मा शक्ति" है। यदि हमारे भीतर ब्रह्मा शक्ति है, तो हम सृजन तो कर लेते हैं परन्तु ये नहीं जानते कि उसे कायम कैसे रखा जाए।
किसी काम या बात को बनाए रखना, कायम रखना “विष्णु शक्ति” है। हमें ऐसे अनेक लोग मिल जाते हैं जो अच्छे प्रबंधक या पालक होते हैं। वे सृजन नहीं कर सकते परन्तु यदि उन्हें कुछ सृजन कर के दे दिया जाए तो वे उसे अत्युत्तम ढंग से निभाते हैं। अतः व्यक्ति में विष्णु शक्ति अर्थात सृजित को बनाए रखने की शक्ति का होना भी अत्यंत आवश्यक है।
इसके बाद आती है ‘शिव शक्ति’ जो परिवर्तन या नवीनता लाने की शक्ति होती है। अनेक लोग ऐसे होते हैं जो चल रही किसी बात या काम को केवल कायम या बनाए रख सकते हैं परन्तु उन्हें ये नहीं पता होता है कि परिवर्तन कैसे लाया जाता है या इसमें नए स्तर तक कैसे पँहुचा जाए। इसलिए शिव शक्ति का होना भी आवश्यक है। इन तीनों शक्तियों का एक साथ होना “गुरु शक्ति” है। गुरु या मार्गदर्शक को इन तीनों शक्तियों का ज्ञान होना चाहिए।
दत्तात्रेय की भीतर ये तीनों शक्तियां विद्यमान थीं, इसका अर्थ ये हुआ कि वे गुरु शक्ति के प्रतीक थे। मार्गदर्शक, सृजनात्मकता, पालनकर्ता एवं परिवर्तनकर्ता सभी शक्तियां एक साथ! दत्तात्रेय ने हर एक चीज से सीखा। उन्होंने समस्त सृष्टि का अवलोकन किया और सबसे कुछ न कुछ ज्ञान अर्जित किया।
असंवेदनशील से संवेदनशीलता की राह पर चलें !
श्रीमद भागवत में उल्लिखित है कि "यह बहुत ही रोचक है कि उन्होंने कैसे एक हंस को देखा और उससे कुछ सीखा, उन्होंने कौवे को देख कर भी कुछ सीखा और इसी प्रकार एक वृद्ध महिला को देख कर भी उससे ज्ञान ग्रहण किया।"
उनके लिए चारों तरफ ज्ञान बह रहा था। उनकी बुद्धि और ह्रदय ज्ञानार्जन एवं तत्पश्चात उसे जीवन में उतारने के लिए सदैव उद्यत रहते थे। अवलोकन (प्रेक्षण) से ज्ञान आता है और अवलोकन या प्रेक्षण के लिए संवेदनशीलता की आवश्यकता होती है। यदि हम अपनी ही दुनिया में उलझ के रह गए हैं तो हम अपने आस-पास के लोगों से मिलने वाले संदेशों के प्रति असंवेदनशील हो जाते हैं।
जब लोग अपनी बातों को ज्यादा महत्त्व देने लगते हैं तो दूसरों के दृष्टिकोण पर उनकी नज़र जाती ही नहीं है। और ऐसे लोग ये भी मानते हैं कि उनकी धारणा बिलकुल सही है जबकि हम जानते हैं कि वे सही नहीं हैं।
Sri Sri Ravi Shankar:
गुरुदेव, श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि जो भी सहजता से हो, वही करते रहना चाहिए, भले ही वह सबसे उपयुक्त कार्य हो या न हो। कृपया मार्गदर्शन करें।
Sri Sri Ravi Shankar:
श्री श्री रविशंकर – हाँ, अपने स्वभाव में रहिये, असहज मत होईये। जो आपके स्वभाव में नहीं है, उसका दिखावा मत करिए। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि आप मूर्ख बन जाएँ, ठीक है!
मान लीजिये, आप किसी के अंतिम संस्कार में उपस्थित हैं, और आपको नाचने का मन करने लगे। आप सोचेंगे कि गुरुदेव ने कहा है कि ‘सहज रहो’, और आप नाचने लगें और ताली बजाने लगें! नहीं, ये तो नहीं चलेगा। आपको शिष्टाचार तो रखना ही होगा।
आप सोचेंगे, गुरुदेव ने कहा है, ‘पूरा विश्व एक परिवार है, सबको गले लगा लो और आगे बढ़ो’। और आप सड़क पर किसी महिला को चलते हुए देखें, और आप जाकर उसको गले लगा लें और सोचें, ‘सब कुछ मेरा ही तो है!’
यदि आप ऐसा करेंगे, तो आपको डंडा पड़ेगा। ऐसा मत करिए!
हाँ, ‘ब्रह्म-भाव’ को जागृत करना अच्छा है – कि यह सब कुछ ‘एक दिव्यता’ का ही स्वरुप है, यह सब मेरा ही अंग है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि आप दूसरे की जेब में हाथ डालें और कहें कि यह भी मेरी है।
वास्तुशास्त्र को कितना महत्व दिया जाना चाहिए?
Sri Sri Ravi Shankar:
श्री श्री रवि शंकर
वास्तुशास्त्र का इतिहास
वास्तुशास्त्र अपने आप में एक प्रकार का विज्ञान है। प्राचीन काल में इस विज्ञान का जन्म एवं विकास हुआ था और यह वेदों का ही एक भाग है। परन्तु आज ये हमें पूर्णतः उपलब्ध और प्राप्य नहीं हैं। ये ताड़पत्रों पर लिखे गए थे और प्राचीन विश्वविद्यालयों तथा पुस्तकालयों में रखे जाते थे किन्तु उनमें से अनेक दस्तावेजों (ताड़पत्र) को दीमकों एवं चूहों ने नष्ट कर दिया। परिणामस्वरूप इस ज्ञान का एक बहुत बड़ा भाग आज हमें पूरी तरह से प्राप्त नहीं है। इसीलिए हम पाते हैं कि लोग आज कल वास्तुशास्त्र की अपनी ही संकल्पना या ‘ब्रांड’ विकसित कर उसका बाजारीकरण/व्यापार कर रहे हैं।
वास्तु दोष के लिए आसान उपाय
एक बात याद रखें : कि वास्तु दोष के कारण यदि कोई व्यक्ति किसी प्रकार का कोई कष्ट उठा रहा हो तो याद रखें इन सब से बढ़ कर सर्वोच्च शक्ति की कृपा हम पा सकते है, और "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप कर के इसे प्राप्त किया जा सकता है।
वास्तु के सिद्धांत और बदलाव
वास्तु के कुछ आधारभूत सिद्धांत काफी हद तक स्वतः स्पष्ट होते हैं। उदाहरण के लिए सूर्योदय, पूर्व की ओर होता है, इसलिए हमें अपने घर का मुख्य द्वार पूर्व की ओर ही रखना चाहिए ताकि उगते सूरज की किरणें सीधे ही घर के भीतर प्रवेश कर सकें। इसलिए व्यक्ति को अपने घर का मुख्य द्वार पूर्व या पश्चिम की ओर ही रखना चाहिए। व्यक्ति को अपने घर का मुख्य द्वार दक्षिण की ओर नहीं रखना चाहिए क्योंकि पुराने ज़माने में श्मशान (मुक्तिधाम) हमेशा दक्षिण दिशा में ही हुआ करते थे। सभी नगर या शहर के दक्षिण दिशा में एक बड़ा सा श्मशान घाट हुआ करता था, जहाँ पर शवदाह किया जाता था। अतः उस दिशा से बह कर आने वाली हवा को घर में घुसने/प्रवेश करने से बचाने के लिए घर का मुख्य द्वार कभी भी दक्षिण में नहीं रखते थे। आजकल ऐसा नहीं है। आज यदि किसी नगर में श्मशान पूर्व या उत्तर दिशा में है, तो हम उस दिशा में अपने घर का मुख्य द्वार नहीं रख सकते। यदि हम रूस देश का उदाहरण लें तो पाएँगे कि रूस में सूर्य दक्षिण दिशा से निकलता है, तो उस देश में घरों का मुख्य द्वार दक्षिण दिशा में ही होता है ताकि घर में ज्यादा से ज्यादा प्रकाश आ सके। अतः रूस में स्थित घरों के लिए भिन्न वास्तु है।
कैलाश पर्वत भारत के उत्तर-पूर्व में स्थित है। इस दिशा को ईशान कोण कहते हैं। लोगों के लिए यह दिशा बहुत ही पवित्र एवं पूज्य है तथा ईश्वर से जुड़ी हुई है। यह बिलकुल मुस्लिम और मक्का की दिशा जैसे ही है। संसार भर में मुस्लिम मक्का की ओर मुँह कर के ही अपनी दैनिक प्रार्थना करते हैं। भारत में मुस्लिम पश्चिम की ओर मुँह कर के नमाज़ (कुरान) पढ़ते हैं, जबकि जॉर्डन और लेबनान आदि के मुस्लिम पूर्व की ओर मुँह कर के क्योंकि उनके लिए मक्का पूर्व दिशा में है। वास्तुशास्त्र में सूर्य एवं इसकी दिशा को बहुत महत्त्व दिया गया है। यह बात समझते/मानते हुए आस्ट्रेलिया या दक्षिण अमरीका में माना जाने वाला वास्तु बिलकुल ही भिन्न होगा क्योंकि वहां पर सूर्य की दिशा कुछ और ही दीखती है। अतः वास्तुशास्त्र के नियम और सिद्धांत इन बातों को ध्यान में रख कर बदलते रहते हैं।
वास्तुशास्त्र का ज्ञान लुप्त होने का कारण
एक और बात ध्यान देने योग्य है कि किसी सार्वजनिक स्थान का वास्तु मंदिर, दुकान, या आश्रम आदि से बहुत ही भिन्न होता है। वास्तुशास्त्र को ले कर लोगों के मन में कुछ ख़ास तरह की धारणाएं बनी हुई हैं किन्तु वास्तव में इस विज्ञान के संबंध में हमारे पास अत्यंत सीमित ज्ञान और साहित्य उपलब्ध है। वास्तुशास्त्र से संबंधित बहुत सारे दस्तावेज एवं पांडुलिपियों को नालंदा विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में अथवा औरंगजेब के काल में नष्ट कर दी गईं थीं अथवा जला दी गईं थी। ऐसा कहा जाता है कि औरंगजेब के काल में हजारों-हज़ार पांडुलिपियाँ एवं पुस्तकें खुलेआम जला दी गईं थीं और ये आग छः महीने से भी ज्यादा समय तक जलती रही थी। जो थोड़ी-बहुत पुस्तकें बच गई थीं उन्हें दीमकों और चूहों ने नष्ट कर दिया। ज्ञान बाँटने को ले कर उन दिनों के विद्वान और पंडित ह्रदय से बहुत ज्यादा उदार नहीं थे। वो इन विज्ञानों को केवल अपने शिष्यों और बच्चों को ही पीढ़ी दर पीढ़ी सिखाया करते थे ताकि ये ज्ञान केवल उन्हीं परिवारों में ही सीमित रहे। इस संकीर्ण मानसिकता के कारण ही इस ज्ञान से सभी का परिचय नहीं हो सका और न ही वे उसे दूसरों तक पहुंचा सके।
वास्तु भी अन्य विज्ञानों में से एक है। योग के साथ भी ऐसा ही हुआ। करीब 40-50 वर्षों पूर्व योग सभी को नहीं सिखाया जाता था। उन दिनों यदि हमें योग सीखना होता था तो हमें किसी विशेष शिक्षक या योग विशेषज्ञ के पास जाना पड़ता था। उन दिनों सभी लोग आम तौर पर अपने घरों में योग का अभ्यास नहीं किया करते थे। यहाँ तक कि उन दिनों प्राणायाम भी नहीं सिखाया जाता था। यहाँ पर ऐसे बहुत सारे प्रौढ़ लोग बैठे हैं जिनकी आयु 50 वर्ष से अधिक है। बताइए क्या उन दिनों सामान्यतः सार्वजनिक रूप से कभी योग सिखाया जाता था। उन दिनों एक विशेष वर्ग या पृष्ठभूमि के लोगों को ही योग सिखाया जाता था। शिक्षक योग का द्वार यूँ ही सबके लिए नहीं खोल दिया करते थे।
भारत में हमने अपना बहुत सारा बहुमूल्य ज्ञान केवल कठोर और रूढ़िवादी होने के कारण खो दिया। केवल कुछ ही लोगों को उपनयन संस्कार (जनेऊ पहनने) के समय विशेष पंडित जिन्हें संस्कार कराने के लिए विशेष तौर पर बुलाया जाता था, के द्वारा एक या दो प्राणायाम एवं श्वसन क्रिया सिखाई जाती थी। इसके बाद किसी को कुछ नहीं सिखाया जाता था।
महिलाओं के लिए योग
महिलाओं के लिए तो स्थिति और भी गंभीर थी क्योंकि उन्हें प्राणायाम या योग कभी भी नहीं सिखाया गया। इन्हें महिलाओं के लिए निषिद्ध माना जाता था। क्या पहले उन दिनों आपने कभी किसी महिला को प्राणायाम करते देखा था? उस समय महिलाओं के लिए योग सीखना लगभग असंभव ही था। आर्ट ऑफ़ लिविंग फाउंडेशन आरम्भ कर के हमने योग और ज्ञान के द्वार सभी के लिए खोले और इस तरह की पुरानी सभी बेड़ियों को तोड़ दिया। सैकड़ों वर्षों में पहली बार हमने महिलाओं को योग और प्राणायाम तकनीक सीखने और उनका अभ्यास करने के लिए सहयोग दिया और बराबर का सक्षम बनाया।
इस तरह से आर्ट ऑफ़ लिविंग फाउंडेशन ने महिलाओं को भी यह तकनीक सीखने का अनूठा अवसर उपलब्ध कराया। हाँ, उस समय भी कुछ योग शिक्षक थे जो कुछ हद तक ये तकनीक सिखाया करते थे। लेकिन वो केवल मुट्ठीभर ही थे। और यही सबसे बड़ा कारण था कि यह ज्ञान कुछ ही लोगों के मध्य सीमित रह गया। पर अब इसके लिए ज्यादा चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। क्यों? क्योंकि जब हम एक बार गहन ध्यान में जाते हैं तो ध्यान के दौरान जो भी हमारे अनुभव होते हैं वह हमारी प्रगति के लिए आवश्यक होते हैं।
गत सप्ताह हमने विज्ञान भैरव (एक प्राचीन और पवित्र ग्रन्थ जो भगवान् शिव एवं देवी पार्वती के मध्य के संवाद के माध्यम से ध्यान एवं समाधि की विधियों की व्याख्या करता है) पर एक वार्ता रखी थी। मैंने भी इसे पहले नहीं पढ़ा था ; पर जब मैंने इसे पढ़ा तो मुझे लगा कि इस ग्रन्थ में उल्लिखित अनेक तकनीकों का हम अपने एडवांस मेडिटेशन प्रोग्राम में पहले से ही अभ्यास कर रहे हैं। ग्रन्थ में ध्यान के जिन प्रकारों की व्याख्या की गई है, वो पहले से ही हमारे एडवांस कोर्स का हिस्सा हैं। यह साहित्य हमारे एडवांस मेडिटेशन प्रोग्राम में सिखाई जाने वाली तकनीकों के सही होने पर मुहर लगा रही है, जैसा कि मैंने कहा।
इतने पुराने और प्रमाणिक ग्रन्थ में संस्तुत तकनीक हमारे एडवांस मेडिटेशन प्रोग्राम में भी सिखाई जा रही हैं। दोनों का सार एक ही है।
गुरु और ग्रन्थ
अतः जब हम अंतर्मुखी हो जाते हैं- जब हमारा मन अपने स्रोत (स्व) की ओर अभिमुख हो जाता है, तो उस गहन स्थिति में हमें जो भी अनुभूत होता है वह इस ग्रन्थ में उल्लिखित ज्ञान से पूरी तरह से मेल खाता है। इनके बीच कोई भेद /अंतर नहीं होता है।
भारत में एक कहावत है जिसका अर्थ है एक प्रबुद्ध /सिद्ध गुरु के मुख से निकला और ग्रंथों में लिखा ज्ञान-दोनों एक ही होते हैं। उनमें कोई भेद नहीं होता। ये ही वास्तविक सार है और हमें यह समझना चाहिए।
3 June 2015 - QA 7
गुरुदेव, एक दिव्य समाज बनाने के लिए क्या आप हमें ऐसे पांच सूत्र बता सकते हैं जो हर नागरिक कर सकता है?
Sri Sri Ravi Shankar:
- तनाव मुक्त रहिये – अपने शरीर, मन और आत्मा को तनाव से मुक्त रखिये| यह एक बार का काम नहीं है, इसे बार-बार करते रहना पड़ेगा| ठीक वैसे ही जैसे आप हर रोज़ अपने दांत साफ़ करते हैं|
- समाज के लिए कुछ करिए – थोड़ा बहुत ही सही, जितना हो सके समाज के लिए कुछ सेवा करने के लिए प्रतिबद्ध रहें|
- पूर्वाग्रह से दूर रहें – अपने मन और बुद्धि में कोई पूर्वाग्रह न रखें, चाहे वह किसी धर्म के लिए हो, या फिर किसी जाति या लिंग के लिए|
- अपने परिवार/समाज और कार्यक्षेत्र में संतुलन रखें – कुछ लोग इतनी अधिक समाज-सेवा करते हैं कि वे अपने परिवार पर ध्यान नहीं देते| कुछ हैं जो अपने घर-परिवार में ही इतना उलझे रहते हैं कि उनकी दुनिया उनके घर के चार-दिवारी के बाहर ही नहीं जाती| ये दोनों ही अपनी पूर्ण क्षमता का उपयोग नहीं कर रहे हैं| जो लोग केवल अपने घर की चार-दिवारी में बैठे रहते हैं, उन्हें बाहर जाना चाहिए, मित्र बनाने चाहिए और समाज के लिए कुछ कार्य करना चाहिए| जो लोग पूरा समय सिर्फ बाहर ही रहते हैं, और घरवालों से ज्यादा अच्छे से बर्ताव नहीं करते हैं, उन्हें घर पर मृदु व्यवहार करना चाहिए| इस प्रकार अपने घर और कार्यक्षेत्र में संतुलन रखें|
- अपने लिए और समाज के लिए लक्ष्य रखिये और उसपर टिके रहिये – लक्ष्य कोई भी हो, लेकिन वह आपके व्यवसाय से हटकर हो, जैसे किताब लिखना, कविता लिखना, चित्रकारी करना, संगीत, छोटी कहानियां लिखना इत्यादि| जिस भी तरह संभव हो रचनात्मक बने रहना| सिर्फ इस भाव को मन में रखिये, और वह स्वयं ही आपके अन्दर प्रकट हो जाएगा| तो एक लक्ष्य आप अपने लिए रखिये, और एक लक्ष्य समाज के लिए रखिये – अपने आसपास के लोगो को प्रेरित करिए| जीवन में और समाज में दुखी, परेशान और अप्रसन्न रहने के 100 कारण हो सकते हैं, लेकिन इससे बाहर आना एक चुनौती है| आपको इस चुनौती को स्वीकार करना चाहिए| “कुछ भी हो जाए, मैं इन दुःख के बादलों से बाहर आऊँगा/आऊंगी” ; ठीक वैसे ही जैसे खराब मौसम में भी हवाईजहाज उड़ान भर लेता है| आपके साथ केवल वह रडार होना चाहिए, जो आपको किसी भी बादल के अन्दर से मार्ग दिखाता है और आपके चारों ओर जोश और उत्साह पैदा करता है|
गुरुदेव, ऐसा कहा गया है कि जब रामकृष्ण परमहंस ने अपना एक पैर स्वामी विवेकानंद के ऊपर रख दिया था, तब उन्हें अचानक समाधि का अनुभव हो गया था| आपने मेरे सिर पर अपना हाथ बहुत बार रखा है, आप अपना पैर कब मेरे सिर पर रखेंगे?
Sri Sri Ravi Shankar:
श्री श्री रविशंकर –
मेरे प्रिय, मैंने आपको सबसे सुन्दर तकनीक ‘सुदर्शन क्रिया’ दे दी है| आप पहले ही वो अनुभव कर चुके हैं, जो स्वामी विवेकानंद को हुआ था; एक तरंग और शून्यता का भाव| क्या इससे आपका सम्पूर्ण दृष्टिकोण बदल नहीं गया? आपके दो जीवन हैं – एक सुदर्शन क्रिया करने से पहले, और एक उसके बाद| आपमें से कितने लोग इसे मानते हैं? (सभी दर्शक अपना हाथ खड़ा करते हैं)
देखिये, सभी अपना हाथ खड़ा कर रहे हैं| बल्कि सुदर्शन क्रिया करने से पहले आप जिस प्रकार के व्यक्ति थे, अब आप अपनी तुलना उस व्यक्ति से कर ही नहीं सकते! इसीलिये मैंने कहा, कि आपका पुनर्जन्म हुआ है|
जब आपको ध्यान में दीक्षा दी जाती है, तब आपके नए जीवन की शुरुआत होती है| बल्कि कुछ जगहों में, वे आपको एक नया नाम भी देते हैं, क्योंकि अब आप वह पहले वाले व्यक्ति रहे ही नहीं, बिलकुल बदल गए हैं| आपका लक्ष्य पहले से बहुत विशाल हो गया है, आपकी बुद्धि पहले से अधिक प्रखर हो गयी है, आपकी समझ पहले से अधिक तीक्ष्ण हो गयी है और आपका हृदय पहले से अधिक कोमल और मज़बूत हो गया है, ऐसा हुआ है कि नहीं? हाँ, तो बस यही है! मुझे आपके सिर पर हाथ या पैर रखने की आवश्यकता नहीं है|
आपको ऐसे साधन दे दिए गए हैं, जिनके माध्यम से आप स्वयं को ऊपर उठा सकते हैं| और केवल एक नहीं!! शक्ति क्रिया, सहज समाधि ध्यान भी| समय समय पर अलग प्रकार की तकनीकें दी गयीं हैं, ताकि आप एक ही चीज़ बार बार करके बोर न हो जाएँ! मैं आपके मन को समझता हूँ, कैसे आप वही प्राणायाम करते करते ऊब जाते हैं| मन हमेशा नयी चीज़ की ओर दौड़ता है, और ह्रदय हमेशा पुरानी चीज़ों में रस लेता है, पुरानी चीज़ों पर फ़क्र करता है| यहाँ आपके पास दोनों हैं – नया भी और पुराना भी! मैंने प्राचीन शास्त्र और ग्रंथों की व्याख्या भी करी है, उनके ज्ञान को बताया है, और साथ ही आपको नयी तकनीकें भी दी हैं|
गुरुदेव, क्या लोगों के ऊपर पत्थर फेंककर उनकी हत्या करना वैध है? यदि कुछ लोग इस पर आपत्ति उठाते हैं तो इसे असहिष्णुता कहा जाता है| ये अंतर क्यों?
Sri Sri Ravi Shankar:
श्री श्री रविशंकर –
एक बात याद रखिये – जितने लोग हैं, उतने विचार हैं और उतनी ही मान्यताएं हैं| सब सही नहीं हैं, और न ही आप प्रत्येक व्यक्ति की धारणा को बदल सकते हैं| और लोगों को अपनी अज्ञानता प्रदर्शित करने का पूरा अधिकार है!
श्री मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने से पहले इस देश में कितना बड़ा तूफ़ान आ गया था! कितने सारे लोगों ने, यहाँ तक कि महान बुद्धिजीवियों ने भी यह कहा था कि यदि मोदी जी प्रधानमंत्री बन गए तो वे देश छोड़कर चले जायेंगे| ये सभी धारणाएं और समझ अदूरदर्शी हैं| मैं चाहता हूँ कि हमारे बुद्धिजीवियों को थोड़ा सहज बोध (intuition) भी हो| उससे वे ज्यादा प्रसन्न रहेंगे और उनकी बातों में थोड़ी बुद्धि झलकेगी| हमारी आगे आने वाली पीढ़ियों में यह सहज बोध विकसित होना चाहिए, सिर्फ बुद्धिजीवी बकबक नहीं! जहाँ सहज बोध होता है, वहां शब्दों में कुछ वजन होता है|
कुछ लोग प्रश्न कर रहे हैं कि गुरुदेव ने ऐसा क्यों कहा कि US डॉलर का रेट INR 40 हो जायेगा| ऐसा मैंने नहीं कहा था, ऐसा तो उस समय सारे बैंक कह रहे थे| सिटी बैंक ने ऐसी रिपोर्ट दी थी| मैंने कहा था, कि यदि एक वित्तीय विश्लेषक (Financial Analyst) ऐसा कह रहा है, तो यह देश के लिए अच्छा है| हाँ, अब ऐसी चीज़ें रातों-रात तो नहीं होती| लेकिन हम सही दिशा में जा रहे हैं, अभी तो देश को बहुत आगे जाना है| इस देश के बुद्धिजीवियों को राजनीति छोड़कर, आपस में मिलकर कुछ ठोस सुझाव देने चाहिए जिससे देश की स्थिति में सुधार आये|
आज हमें एक भ्रष्टाचार-मुक्त समाज चाहिए, हमें चाहिए कि हर क्षेत्र का विकास हो और समाज के पिछड़े हुए वर्गों को सहायता मिले| ऐसा सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व के हर हिस्से में होना चाहिए| हाँ, परिस्थिति पहले से काफी बेहतर है, लेकिन अभी और भी बहुत कुछ बाकी है|
आज सीरिया, ईजिप्ट और इराक़ में जो भी कुछ हो रहा है, वह सबके लिए चिंता का विषय है| हमें विश्व के इन भागों में और अधिक सहिष्णुता लाने की आवश्यकता है| वे सब लोग जो भारत देश में असहिष्णुता की बात कर रहे हैं, जो देश को छोड़कर जाना चाहते हैं, उन सबको ऐसे स्थानों में जाना चाहिए| वहां जाकर लोगों से बात करनी चाहिए और वहां सहिष्णुता सिखानी चाहिए! हम वहां उनके रहने और खाने-पीने की व्यवस्था कर देंगे; इन लोगों को वहां जाकर शान्ति, एकता और सहिष्णुता का सन्देश देना चाहिए, जिसकी आज इतनी आवश्यकता है|
झगड़ा पैदा करना बहुत आसान है, उसमें बिलकुल समय नहीं लगता| बल्कि, सिर्फ अनजाने में कहे गए कुछ शब्द आपके स्थाई शत्रु बना सकते हैं| आपकी कोई मंशा भी नहीं है, लेकिन आपने कुछ बकबक कर दिया है, और आपके कई दुश्मन बन जायेंगे| लेकिन मित्र बनाना एक बिलकुल अलग बात है, और आपको मालूम है कि उसके लिए क्या करना है|
गुरुदेव , यह मन संतों और धार्मिक नेताओं द्वारा गलत काम किये जा रहे हैं ,ऐसा सुनने पर परेशान हो जाता है। इस स्थिति को कैसे संभालें कृपया हमारा मार्गदर्शन करें ।
Sri Sri Ravi Shankar:
भारतवर्ष में हजारों संत और धार्मिक नेता हैं । इन में से , यदि दो या तीन अनुचित काम करते पाए जाते हैं या फिर वे अनुपयुक्त विचारों में उलझे हैं, तो इसके लिए आप को अपने मन को परेशान नहीं करना है और न ही नकारात्मक होना है । जो भी अनुचित काम कर रहा है, उसे निश्चित रूप से पछताना पड़ेगा और इसका मूल्य चुकाना पड़ेगा . ये उनके कर्म हैं और उनसे घृणा नहीं करनी चाहिये, क्योंकि उन्होंने जो भी भी किया, वो अज्ञानता वश और गलत शिक्षा के कारणवश किया ।
आप बस आगे बढिए ।
रामायण में लंका के राजा, रावण, ने भी साधू का वेश धारण करके देवी सीता का हरण किया था । उसी प्रकार, आज भी कुछ लोग ऐसे अवश्य होंगे, जिनकी सोच ऐसी ही होगी । इसमें कोई क्या कर सकता है ? यदि रावण ने साधु का वेश धारण नहीं किया होता तो आज रामायण भी न होती ।
समाज के हर वर्ग में ऐसे विधर्मी लोग पाये जाते हैं । ऐसे कुछ गलत काम करने वाले लोग अपने अनुचित कर्मों से पूरे क्षेत्र को बदनाम कर देते हैं ।
ऐसे समाचार आये थे कि कुछ डॉक्टर ऑपरेशन के समय अपने मरीजों की किडनी चुरा कर पैसा कमा रहे हैं । परंतु क्या इसका अर्थ यह है कि आप इस विषय में सोचते रहें और इतना डर जायें कि आप डॉक्टरों के पास जाना ही बंद कर दें?
इसी प्रकार, कुछ दुकानदार भी अनाज और चीनी में मिलावट करके धन कमाते हैं । वे दूध और मक्खन में भी मिलावट करते हैं । परंतु इसके कारण आप सभी दुकानें बंद कर देंगे तो समाज कैसे चलेगा ? यदि आप जीवन में हर चीज़ पर संदेह और अविश्वास करने लगेंगे, तो इसका कोई लाभ नहीं होगा । जब आप कुछ लोगों को ऐसा गलत काम करते देखते हैं, तो आपको उनके प्रति करुणा और दया अनुभव करनी चाहिये । आपको समझना चाहिए कि वह उचित मार्ग से भटक गये हैं ।
कभी-कभी ईमानदार और निर्दोष लोगों पर भी आपराधिक मामलों में झूठे आरोप लगा दिए जाते हैं । उदहारण के लिए , कांची मठ के शंकराचार्य पर एक आपराधिक मामले में झूठा आरोप लगाया गया था । अदालतों में नौ वर्ष तक कानूनी मुकदमा चला और इतने लम्बे मुक़दमे के बाद, अंततः उन्हें निदोष पाया गया । परंतु मीडिया ने इस निर्दोष पाये जाने और छूट जाने का समाचार मात्र आठ मिनट के लिए दिखाया । इस प्रकार, ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण चीजें अच्छे लोगों के साथ भी होती हैं , और आपको इसे उनके कर्मों का फल मानना चाहिये ।आपको इन घटनाओं से सबक लेना चाहिए कि आपको गलत कामों में संलिप्त नहीं होना । सबका सम्मान करें , उनकी अच्छी बातों को ग्रहण करें और अपने जीवन में धारण करें ।
संसार में आज आप जितनी भी अच्छी चीजें देख रहे हैं , सब ईश्वर की दी हुई हैं । और सभी बुरे गुण और आदतें ईश्वर को न जानने के कारण हैं । जब गलत ज्ञान के कारण या फिर अज्ञानतावश किसी की विचारधारा धूमिल और उलझन भरी हो जाती है , तब वो ऐसे गलत काम करता है । इसलिये इसे समझें और शांत हो जायें ।
मैं जानता हूँ कि यहाँ उपस्थित आप सबके मन में एक और प्रश्न है कि यह व्यक्ति का भाग्य है या उसके कर्म ,जोकि उसके जीवन में भूमिका निभाते हैं । आप में से कितने लोगों के मन में यह प्रश्न है ? ( श्रोताओं में से बहुत से लोगों ने हाथ उठाये )
जीवन आपके भाग्य और आपके प्रयासों का संयोजन है । मैं इसे एक साधारण उदाहरण से समझाता हूँ । एक आयु के बाद, आपका कद बढता है क्या ? चाहे पांच फुट हो या छः फुट , एक आयु के बाद आपका कद और नहीं बढता । आपका कद आपके भाग्य के समान है और आपका भार आपके प्रयासों के समान है । आप चाहें तो अपने भार को १० किलो बढ़ा सकते हैं या फिर २० किलो घटा सकते हैं , यह आप पर निर्भर करता है । यदि आप सोचते हैं कि आप अपने वजन को घटा या बढ़ा नहीं सकते ,तो आप गलत सोचते हैं ।
आप अपना वजन घटा या बड़ा सकते हैं, और यह आपकी स्वेच्छा है । भाग्य यह जान लेना है कि आप एक आयु के बाद अपने कद को बढ़ा या घटा नहीं सकते ।
बाहर वर्षा का होना, भाग्य है । भीगना या न भीगना आपका चुनाव है । यह आपका अपना प्रयास है । यदि आप छाता लेकर चलते हैं तो आप नहीं भीगेंगे , अन्यथा आप पूरी तरह से भीग जायेंगे । अध्यात्म के मार्ग पर चलने का अर्थ है अपने भाग्य और स्व-प्रयासों की गुणवता को बढ़ाना ।