मंत्र – ध्वनि की ऐसी तरंगें जो हमारे अस्तित्व के कण कण में व्याप्त हो कर हमारे मन को गहरे विश्राम में ले जाती हैं। किंतु यह तरंगें होती क्या हैं? वह हमें क्या बताती हैं, क्या समझाती हैं? उनका उद्गम क्या है? इन प्राचीन शब्दांशों को लेकर बहुत से प्रश्न हमारे मन में उठते हैं। इन मंत्रों के विषय में बात करने का मतलब है उन प्राचीनतम रहस्यों से पर्दा उठाना जिनको युगों युगों से पवित्र माना जाता रहा है; वे रहस्य जो सभी प्रकार की परिस्थितियों से ऊपर उठ कर, सदैव ही मानवता के लिए कल्याणकारी रहे हैं।

मंत्र क्या हैं?

मंत्र चेतना के संवेग, उसकी लय और ताल हैं। इनसे हमारी चेतना में तरंगें उत्पन्न होती हैं। किंतु उनके प्रभाव, उनकी रीति और वे कैसे कार्य करते हैं, यह सब रहस्य है।

संस्कृत में मंत्र की परिभाषा है, “मननात् त्रायते इति मंत्रः।” मंत्र वह शक्ति है जो हमें पुनरावर्तन से बचाती है। यदि कोई विचार बार बार मन में आ रहा है तो यह चिंता का विषय है। मंत्र चिंताओं से मुक्त होने में हमारी सहायता करते हैं। हम प्रायः अचंभित होते हैं कि हम ऐसे राग क्यों अलाप रहे हैं जिनके अर्थ ही हम नहीं जानते? क्या कुछ ऐसा भी है जो हमारी समझ से परे जाकर हमारी सहायता कर सके?

प्रत्येक मंत्र का अर्थ है ‘अनंतता’। यह एक ऐसा नाद है जो हमारे मन की अनुभूत क्षमता से परे है। जब मन किसी चीज को अनुभव नहीं कर सकता तो वह उसमें विलीन हो कर ध्यानस्थ अवस्था में चला जाता है।

मंत्रों का हमारे मन पर प्रभाव

मंत्र किसी बीज की तरह होते हैं। जिस प्रकार से प्रत्येक बीज एक वृक्ष का आकार लेने में सक्षम है, उसी प्रकार से इन ध्वनि तरंगों में सृष्टि की सभी संभावनाऐं छिपी हुई होती हैं। कुछ मंत्र बीज रूप में होते हैं, इसलिए इन्हें बीजमंत्र कहा जाता है। कुछ मंत्र ऐसे होते हैं जो पूर्णतः व्यक्त होते हैं, अर्थात् उनका प्रतिफल भी व्यक्त होता है, जैसे कि गायत्री मंत्र।

मंत्र रहस्यमयी होते हैं। जो कुछ भी रहस्यमयी होता है, वह हमारे अवचेतन मन को सचेत करता है। मंत्रों का प्रभाव चेतना के स्तर पर होता है। जैसे किसी बीज को हम प्रस्फुटित करना चाहते हैं तो उसे मिट्टी में दबाना होता है, छिपाना होता है, अर्थात् रहस्य। यदि इसे ऐसे ही बिखेर देंगे तो पक्षी उसे खा सकते हैं। यद्यपि हम पुस्तकों तथा इंटरनेट के माध्यम से मंत्रों को पढ़ और सीख सकते हैं, किंतु वह केवल बुद्धि के स्तर का ज्ञान होगा, वह अनुभव में कदापि नहीं आएगा।

मंत्र और ध्यान

जब भी हम मंत्रोच्चरण करते हैं अथवा उनका श्रवण करते हैं तो हमारे मन तथा वाणी में शुद्धता आती है। यह हमें ध्यान के लिए तैयार करता है। मंत्रों द्वारा उत्पन्न ध्वनि तरंगों से हमारे मन में बने विभिन्न स्वरूप, विभिन्न पूर्वाग्रह पुनर्व्यवस्थित होने लगते हैं जिससे मन शांत होने लगता है। उदाहरण के तौर पर, जब हम हंसते हैं तो हमारा आनंद बढ़ जाता है। जब हम रोते हैं तो हमारे दुःख का बोझ कम हो जाता है। आप इस पर विचार करोगे तो पाओगे कि हंसी और रोने की ध्वनि ने ही ऐसा किया है। मंत्र भी उसी प्रकार कार्य करते हैं। मंत्रों को बार बार दोहराने से कुछ ऐसी मनोवैज्ञानिक या मानसिक प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न होती हैं जो अति गहरी हैं और जिन्हें शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता,  इसको केवल अनुभव किया जा सकता है। शब्दों की सीमा अभिव्यक्ति तक ही है, उससे आगे अनुभव के स्तर तक वे नहीं पहुँच सकते।

जब मन शांत और केंद्रित होता है तो यह अंतर्मुखी होने लगता है। केवल अंतर्मुखी मन ही उस दिव्य चेतना की सुंदरता और उसकी अनंतता का अनुभव कर सकता है। जब हमारा मन बाह्यमुखी हो कर भौतिक जगत और इंद्रियों पर केंद्रित होता है तो वह सब ओर बिखरा हुआ तथा किसी न किसी इच्छा के पीछे ही भागता रहता है। हमारी शारीरिक इंद्रियाँ बाह्य जगत के विषय में ही सब जानने में कार्यरत रहती हैं। ध्यान आंतरिक अन्वेषण के लिए एक साधन है।

अंतर्मुखी सदा सुखी – अर्थात् जिसका मन अंतर्मुखी है वह सर्वदा आनंदित ही रहता है। मंत्र ऐसे साधन हैं जो मन को विलीन होने और स्वयं में स्थित होने में सहायक होते हैं।

हम स्वयं में स्थित क्यों हों? यह हमारे नित्य-प्रतिदिन के जीवन में कैसे सहायक है?

जब नदी शांत होती है तो उसमें दिखने वाली परछाई स्पष्ट होती है। इसी प्रकार जब मन शांत होता है तो हम सुस्पष्ट ढंग से स्वयं को व्यक्त कर पाते हैं। हमारी अवलोकन क्षमता, धारणाओं तथा व्यक्तता में गुणात्मक सुधार होता है। परिणाम स्वरूप हम प्रभावशाली ढंग से और स्पष्टता से संवाद कर सकते हैं।

हमारे जीवन में अधिकांश मिथ्याबोध यथोचित ढंग से संवाद न कर पाने के कारण ही उत्पन्न होते हैं। जब हमारा मन उन्माद रहित होता है तो हमारा परस्पर संवाद और संचार करने का तरीका भी रुचिकर और प्रभावशाली हो जाता है। संबंधों को मधुर बनाने के लिए हमारे प्रयासों में संवादहीनता के कारण होने वाली अनबन जैसी बाधाएँ नहीं आती। इससे हमारे दृष्टिकोण में बहुत सकारात्मकता आती है और जीवन में उन्नति होती है।

मंत्र वायु की भाँति सूक्ष्म हैं, और वायु जब किसी जल स्त्रोत के ऊपर से बहती है तो पानी में लहरें उत्पन्न कर देती है। वायु सर्वव्यापक होने के साथ साथ किन्हीं विशिष्ट क्षेत्रों को समय समय पर प्रभावित भी करती है। मंत्रों का आयाम भी ऐसा ही है। यह भी सर्वव्यापक तो हैं, किंतु जो इनका अभ्यास करता है, उसे अधिक प्रभावित करते हैं।

(लेखिका श्रीमती भानुमति नरसिम्हन, गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी की बहन तथा आर्ट ऑफ लिविंग के महिला तथा बाल कल्याण कार्यक्रमों की निर्देशिका हैं।)