विजयदशमी का त्यौहार

विजयदशमी वह है, जब मन की सभी विकृतियाँ और नकारात्मक प्रवृत्तियाँ दूर हो जाती हैं। यह दिन साल भर में हमारे मन द्वारा एकत्रित सभी प्रकार के रागों और द्वेषों पर विजय का प्रतीक है।

इस दिन को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है। रावण के दस सिर हमारे भीतर के दस नकारात्मक गुणों के प्रतीक हैं और उनके पुतले को जलाना इन नकारात्मकताओं को जड़ से उखाड़ने की आवश्यकता बताता है। इन बुराईयों को त्याग कर हमारे भीतर की दिव्यता खिल उठती है।

विजयदशमी पर हम सभी प्रकार की नकारात्मक प्रवृत्तियों को दूर करने का प्रयास करते हैं और अपनी आंतरिक विजय का पर्व मनाते हैं। यह दिन हमें अपने भीतर के उस आनंद और पवित्रता का स्मरण कराते हैं, जैसा हमारे बचपन में हुआ करता था। यह समय अपनी उमंग को फिर से ऊर्जावान बनाने, सभी एकत्रित हुई नकारात्मकताओं को धो डालने तथा जीवन को निरंतर उत्सव रूप में जीने तथा ज्ञानोदय के मार्ग पर चलते रहने का संकल्प दोहराने का समय है।

उत्तर भारत में विजयदशमी पर रावण दहन किया जाता है, जो देवी और राम जी के पूर्ण मिलन का प्रतीक है। राम जी की अयोध्या वापसी एक ऐतिहासिक घटना के साथ साथ अपनी आंतरिक विजय का प्रतीक भी है।

चैत्र नवरात्रि के समय हम राम जी का जन्मोत्सव मनाते हैं, जबकि शारदीय नवरात्रि में उनकी अयोध्या वापसी का उत्सव मनाते हैं, जो यह दर्शाता है कि दिव्यता हमारे भीतर ही विराजमान है।

राम और अयोध्या का प्रतीकवाद

राम हमारी आत्मा, हमारे अंतःकरण का प्रतीक हैं और हमारा शरीर अयोध्या है। अयोध्या का अर्थ है “अजेय” अर्थात्‌ ऐसा शरीर जो न तो किसी को चोट पहुँचा सकता है और न ही कोई इसे। यही विजयदशमी का भी सार है – जब दिव्य चेतना अर्थात् हमारी आत्मा, अजेय शरीर में प्रवेश करती है, तो उसकी परिणीति विजय में होती है। यही आंतरिक विजय ही आत्मज्ञान या स्वयंबोध का सार है, और यह त्यौहार भी इसी व्यक्तिगत विजय को विशेष रूप से दर्शाता है।

रामायण की कहानी का गहरा अर्थ

रामायण के कथात्मक वर्णन के पीछे बहुत गहरा अर्थ है। “रा” का अर्थ है रश्मि, रोशनी, और “म” का अर्थ है, मेरे भीतर, इस प्रकार राम हमारे भीतर के प्रकाश को प्रकट करता है। राम का जन्म दशरथ और कौशल्या से हुआ; दशरथ का अर्थ है, जो दस रथों पर सवार हो अर्थात् पाँचों इंद्रियाँ और क्रिया के पाँच अंग। कौशल्या निपुणता या कौशल को प्रकट करती है, सुमित्रा संबंधों को दर्शाती है और कैकेयी उदारता को। ऋषियों के आशीर्वाद से दशरथ और उनकी तीन रानियों ने राम का इस संसार में स्वागत किया।

राम आत्मा है, अर्थात्‌ हमारे भीतर की दिव्य रोशनी का प्रतीक है। लक्ष्मण सजगता अर्थात् हमारे अस्तित्व के सदैव सतर्क रहने वाले रूप को दर्शाता है। शत्रुघ्न अर्थात् जिसके जीवन में कोई शत्रु न हो, और भरत प्रतिभा और योग्यता के अवतार हैं। अयोध्या अर्थात्‌ “वह जिसको पराजित या नष्ट न किया जा सके”, हमारे शरीर रूप में है।

हमारा शरीर अयोध्या है, और इस शरीर के राजा दशरथ हैं – दशरथ अर्थात्‌ पाँच इंद्रियाँ और उनके द्वारा संचालित पाँच क्रियाएँ। जब सीता, जिसका प्रतीक हमारा मन है, राम रूपी हमारी आत्मा से बिछुड़ गई, तो अहंकार रूपी रावण ने उसका हरण कर लिया। राम और लक्ष्मण के रूप में आत्मा और सजगता ने हनुमान, जो जीवनी शक्ति या ऊर्जा है, की सहायता से सीता (मन) को वापस घर लाने का प्रयास किया। यह वर्णन इस त्यौहार के पीछे छिपे हुए गहरे अर्थ को समझाता है – जो हमारी आंतरिक शान्ति को पुनः स्थापित करता है और हमारे भीतर की दिव्यता का उत्सव बन जाता है।

विजयदशमी के अवसर पर देवी की विजय का महत्व: आंतरिक संघर्षों पर विजय और हमारे दिव्य स्वभाव का प्रकटीकरण

नवरात्रि के इन नौ दिनों में हम महाकाली की पूजा करते हैं, जिन्होंने मधु और कैटभ नामक असुरों को परास्त किया। यह असुर, जो विश्रामरत विष्णु भगवान के कान के मैल से उत्पन्न हुए थे, राग और द्वेष के रूप में हैं। महाकाली द्वारा उनको पराजित करना हमारे भीतर के संघर्षों पर विजय का प्रतीक है। इसलिए यह दिव्य विजय अर्थात् अपने भीतर की नकारात्मक शक्तियों से पार जाकर अपने वास्तविक दिव्य स्वभाव को उजागर करना –  विजयदशमी के महत्व को समझने के लिए आवश्यक है।

ध्यान और उपवास की भूमिका

अपने भीतर इस दैवीय शक्ति को जगाने के लिए हम ध्यान और मंत्र जाप करते हैं। इस समय में सजगतापूर्वक उपवास करना चाहिए। बहुत से लोग उपवास में उच्च स्टार्च युक्त खाद्य पदार्थों, जैसे कि आलू और मिठाईयों का सेवन करते हैं, जो हमारी शुद्धिकरण प्रक्रिया में बाधक हो सकते हैं। इनकी अपेक्षा उपवास में हमें हल्के और शीघ्र पचने वाले खाद्य पदार्थों, जैसे कि फल और छाछ आदि पर ध्यान देना चाहिए, जो शरीर को शुद्ध कर के हमारी चेतना को ऊपर उठाने में सहायता करते हैं। यह प्रक्रिया इस त्यौहार के उद्देश्य के अनुरूप भी है, जो कि स्वयं को गहरी आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि तथा व्यक्तिगत उत्थान के लिए तैयार करना है।


अपने भीतर के दिव्य प्रकाश को पहचान कर हम जीवन के अनन्त उत्सव के साथ एक हो जाते हैं। अपने भीतर की नकारात्मकता और चिंताओं पर विजय पाने से हम इस ज्ञान के और निकट आ जाते हैं कि हमारा सच्चा स्वरूप शाश्वत और प्रकाशमान है। विजयदशमी का यही संदेश है कि हम अपने भीतर के वैभव को पहचानें, उसके साथ जुड़ें और जीवन के प्रत्येक पल में अपने सर्वोच्च स्वरूप का उत्सव मनाएँ।