Wisdom

मोक्ष या निर्वाण क्या है? | Meaning of Nirvana or Moksha

संतुलन को लाना और इच्छा का न होना निर्वाण है। इच्छा का अर्थ अभाव है। जब आप कहते हैं मुझे कुछ नहीं चाहिए, मैं संतुष्ट हूं, वह निर्वाण हैं। यहां तक ज्ञानोदय की तृष्णा भी ज्ञानोदय में बाधा है। सभी भावनाएं लोग, वस्तुओं और घटनाओं से जुड़ी होती हैं। वस्तु, लोग और संबंध में फंसे रहना मोक्ष और मुक्ति मिलने में बाधा हैं। जब मन सभी आवृत्तियों और अवधारणाओं से मुक्त हो जाता है तो आप को मोक्ष प्राप्त हो जाता है। कुछ भी नहीं या शून्य की अवस्था को निर्वाण, ज्ञानोदय, समाधि कहते हैं। मैं से स्वयं में जाना निर्वाण है। "मैं कौन हूं" जानना निर्वाण है। 

सब कुछ बदल रहा है

जब आप स्वयं के गहन में जाते हैं, तो आप अलग अलग परतों को पाते हैं, वह निर्वाण है। यह एक प्याज को छीलने के जैसे है। आप प्याज के केंद्र में क्या पाते हैं? कुछ नहीं। जब आप समझ जाते हैं कि सारे संबंध, लोग, शरीर, भावनाएं, सब कुछ बदल रहा है – तो फिर वह मन जो दुखों में जूझ रहा होता है, वह एकदम अपने स्वयं में वापस आ जाता है। मैं से स्वयं में वापसी आपको संतोष प्रदान करते हुए दुःख से मुक्ति देती है। उस संतोष की अवस्था का विश्राम, निर्वाण है।

 

             

 

मोक्ष, प्रयास से या बिना किसी प्रयास के प्राप्त होता है?

 

श्री श्री रविशंकर : दोनों से ! 

यह एक ट्रेन को पकड़ने के जैसे है। आप ट्रेन को पकड़ने तक दौड़ते हैं। परंतु, जब आप किसी ट्रेन में बैठ जाते हैं तो फिर आपको विश्राम करना होता है। पूरे समय आपको यह नहीं सोचना होता है कि मुझे इस स्टेशन पर उतरना है। आपको सिर्फ विश्राम करना होता है। फिर आपको कुछ नहीं करना होता। सिर्फ बैठ कर विश्राम करना होता है।

 

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