यदि आप आने वाले नवरात्रों में उपवास करने की योजना बना रहे हैं, भले ही आप यह पहली बार कर रहे हों या इस में अनुभवी हों, दोनों ही परिस्थितियों में इस चुनौती में आपके दृढ़ संकल्प तथा इच्छाशक्ति की परीक्षा होने वाली है।

हमारे शरीर और मन के बीच तथा मन और भावनाओं के बीच घनिष्ठ संबंध है। जब उपवास से हमारे शरीर की शुद्धि होती है तो इस प्रक्रिया में हमारा मन भी शुद्ध हो जाता है। यह स्थिर, निर्मल और शांतिपूर्ण हो जाता है। हमारा मन और शरीर रूपी व्यक्तित्व संतुलन और गहराई के एक नए आयाम को प्राप्त करता है और बोल उठता है: ‘हम साथ साथ हैं’!

उपवास के दौरान शरीर और मन में कुछ बेचैनी हो सकती है। परंतु यह वास्तविकता कि आपने निश्चित रूप से अपनी स्वाद ग्रंथियों को वश में किया हुआ है और भूख की पीड़ा को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया, आपको अपने आप में अच्छा महसूस करवाता है। कुछ हल्के फुलके योगासनों, खिंचावों, घुमावों तथा प्राणायाम से इस बेचैनी को नियंत्रित किया जा सकता है और उस उपलब्धि की भावना को स्थिर रखा जा सकता है।

उपवास के साथ योग करने के लाभ

  • योग शरीर को शुद्ध करने और उसे ऊर्जावान बनाने की प्रक्रिया में सहायक है।
  • गहरी साँसे लेने और विश्राम से तनावग्रस्त तंत्रिका तंत्र ठीक होने की स्थिति में आने लगता है।

अपने उपवास में योग को सम्मिलित करें।

प्राणायाम

  • आँखें बंद तथा रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए आरामदायक स्थिति में बैठ जाएँ।
  • लंबी गहरी श्वास लें। साँस लेते हुए अपने पेट को फुलाने का प्रयास करें।
  • श्वास को चंद सेकंड तक अंदर रोकें।
  • नासिकाओं से श्वास को धीरे धीरे छोड़ें तथा पेट को अपनी सामान्य अवस्था में वापस आने दें। यह अभ्यास 10 से 15 बार करें।

सुझाव: प्राणायाम का अभ्यास दिन में दो से तीन बार करना उत्तम है।

शीतकारी प्राणायाम

इस यौगिक प्रक्रिया के परिणामस्वरूप शरीर को ठंडक मिलती है।

  • एक आरामदायक स्थिति में सीधे बैठ जाएँ और आँखें बंद कर लें।
  • अपने दाँतों की ऊपरी पंक्ति को नीचे के दाँतों पर कस कर रख दें।
  • दोनों होंठों को खोल दें ताकि दाँत दिखाई देने लगें।
  • जीभ को सीधा लिटा कर अथवा मोड़ कर ऊपरी कोमल तालू को छुआ दें।
  • धीरे धीरे अपने दाँतों के बीच से सीत्कारी ध्वनि करते हुए साँस लें।
  • जब पूरी साँस भर जाए तो अपना मुँह बंद कर लें और साँस को 10 सेकंड तक अंदर रोक कर रखें। तत्पश्चात साँस को नाक से छोड़ दें।
  • यह अभ्यास प्राणायाम के उपरांत अथवा दिन में किसी भी समय किया जा सकता है।

सुझाव: यदि आपका शरीर बहुत ठंडा है तो इस अभ्यास को रोक दें। यदि आप जुकाम, खाँसी या बुखार से पीड़ित हैं तो भी यह योगिक अभ्यास न करें।

शरणागत आसन

इस आसन से पीठ की माँसपेशियों को खिंचाव तथा मेरुदंड को विश्राम मिलता है। अभ्यासकर्ता के शारीरिक तथा मानसिक, दोनों स्तरों पर शांतिदायक प्रभाव पड़ता है।

  • आरामदायक अवस्था में सीधे हो कर बैठ जाएँ और आँखें बंद कर लें।
  • अपनी हथेलियों को आकाश की ओर खुला रखते हुए दोनों जंघाओं पर रख दें।
  • लंबी गहरी साँस लें और अपनी भुजाओं को सिर से ऊपर उठाएँ।
  • साँस छोड़ते हुए अपने कूल्हों से आगे की ओर झुकते हुए दोनों भुजाओं को सामने की ओर फर्श पर फैला दें।
  • अपने माथे को फर्श पर टिकाने का प्रयास करें।
  • इस अभ्यास को पाँच बार करने की सलाह दी जाती है।

सुझाव: यदि आपका शरीर बहुत ठंडा है तो इस अभ्यास को रोक दें। यदि आप जुकाम, खाँसी या बुखार से पीड़ित हैं तो भी यह योगिक अभ्यास न करें।

मेरुदंड का खिंचाव

यह आसन जकड़न, अकड़न तथा ऊर्जा प्रवाह में किसी प्रकार के भी अवरोध को दूर कर पूरे शरीर को पुनः ऊर्जावान बनाने में सहायता करता है।

  • आराम से वज्रासन में बैठ जाएँ, पीठ को सीधा रखें।
  • दोनों भुजाओं को सिर से ऊपर ले जाकर हथेलियों को आपस में मिला लें। दोनों हाथों की उंगलियों को आपस में इंटरलॉक करें और हथेलियों को आकाश की ओर खुला रखें।
  • अब साँस लेते हुए अपनी पीठ तथा हाथों को ऊपर की ओर खींचें।
  • साँस को लगभग 10 सेकंड तक रोकें।
  • साँस छोड़ते हुए दोनों हाथों को नीचे लाएँ। 
  • इस अभ्यास को तीन बार दोहराएँ।

पवनमुक्तासन

यह आसन अम्लता और गैस से मुक्त करता है तथा कब्ज से छुटकारा दिलाने में सहायक है।

  • सीधे लेट जाएँ, दोनों पाँव एक साथ हों और दोनों भुजाएँ शरीर के बगल में।
  • गहरी लंबी साँस भरें और दोनों घुटनों को एक साथ मोड़ते हुए छाती के समीप लाएँ। अपने हाथों की उंगलियों को आपस में पिंडलियों के पास रखते हुए इंटरलॉक करें तथा दोनों टाँगों को क्षमतानुसार छाती की ओर दबाएँ।
  • साँस छोड़ते हुए अपने सिर और छाती को फर्श से ऊपर उठाएँ और अपनी नाक को दोनों घुटनों के बीच लाएँ।
  • इसी अवस्था में कुछ देर बने रहें, लंबी गहरी साँसें लेते और छोड़ते रहें।
  • इस अवस्था में आप शरीर को 3 से 5 बार तक ऊपर नीचे या दाएँ बाएँ हिला सकते हो। उसके पश्चात केंद्र में आ जाएँ।
  • साँस लेते हुए अपना सिर नीचे लाएँ। 
  • साँस छोड़ते हुए दोनों टाँगों को भी सीधा कर लें और विश्राम करें।