नवरात्रि का समय हमारे लिए अपने मूल स्रोत से जुड़ने का समय होता है। ‘नवरात्रि’ का शाब्दिक अर्थ है ‘नौ रातें’; और इस अवधि में हमें वैसे ही विश्राम तथा नवीनता का अनुभव होता है, जैसे हमें नींद से प्राप्त होता है।
जिस प्रकार रात्रि हमें अपने स्वयं के भीतर ले जाती है और प्रातः हम तरोताजा उठते हैं, उसी प्रकार नवरात्रि का समय भी हमें गहन आंतरिक विश्राम का अनूठा अवसर प्रदान करता है। गहरे विश्राम की यह अवधि हमें दैनिक जीवन की चिंताओं से मुक्त करती है तथा हमारे अंदर सृजनात्मकता विकसित करने और शांति स्थापित करने को बढ़ावा देती है।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
भारत का सांस्कृतिक परिदृश्य भिन्न भिन्न रीति रिवाजों तथा त्यौहारों का एक जीता-जागता संगम है, जिसमें प्रत्येक भाग देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है। इसके अनेक राज्यों और धर्मों के कारण इनमें मनाए जाने वाले प्रत्येक त्यौहार का अपना अनूठा रस होता है, फिर भी इन सब में अनेकता में एकता और आध्यात्मिकता का समावेश ही होता है। विभिन्न पूजा पद्यतियों में अनेक भाषाओं और पहनावे के होते हुए, भारत के त्योहार इस समृद्ध बहुरूपता के होते हुए भी सभी श्रद्धा और सामंजस्य के एक सूत्र में पिरोए हुए हैं।
नवरात्रि का सार
नवरात्रि की नौ रातों और दस दिनों में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिनमें देवी का प्रत्येक रूप उनके विशेष गुणों को अभिव्यक्त करता है:
- पहला दिन: शैलपुत्री – पर्वतों की देवी, यह शुद्धता और भक्ति की देवी हैं।
- दूसरा दिन: ब्रह्मचारिणी – यह देवी आत्मसंयम, तपस्या और आत्मानुशासन का रूप हैं।
- तीसरा दिन: चन्द्रघंटा – साहस और बल की देवी हैं, जो निर्भयता का प्रतिनिधित्व करती हैं।
- चौथा दिन: कूष्मांडा – यह सृजनात्मकता की देवी हैं और इनका संबंध समृद्धि तथा ऊर्जा से है।
- पांचवा दिन: स्कन्दमाता – मातृत्व की देवी, जो सुरक्षा और पालन/ पोषण का स्वरूप हैं।
- छठा दिन: कात्यायनी – यह शौर्य की देवी हैं, जो विपत्ति को पार पाने की शक्ति को दर्शाती हैं।
- सातवाँ दिन: कालरात्रि – यह अंधकार की देवी हैं, जो अज्ञानता को दूर करने वाली हैं।
- आठवां दिन: महागौरी – पवित्रता की देवी, जो ज्ञान और शांति का स्वरूप हैं।
- नौवां दिन: सिद्धिदात्री – सिद्धियों की देवी, जो इच्छापूर्ति को दर्शाती हैं।
- दसवा दिन: विजय दशमी – यह तीन गुणों – रजस, तमस और सत्व पर विजय का प्रतीक हैं।
देश के विभिन्न भागों में नवरात्रि कैसे मनाई जाती है?
उत्तर भारत: दशहरा और कन्या पूजन

उत्तर भारत में देवी दुर्गा को ‘शेरां वाली माता’ के रूप में जाना और पूजा जाता है, और उसे आठ भुजाओं के साथ, जिसके प्रत्येक हाथ में एक अस्त्र है, शेर पर सवार हुए दिखाया जाता है। स्थानीय सामाजिक समूह पूरी रात धार्मिक गाने बजाने के उत्सव मनाते हैं, जिन्हें जागरण कहा जाता है। नवरात्रों के आठवें और नौवें दिन कंजक या कन्या पूजा की जाती है, जिसमें नौ देवियों के रूप में नौ कन्याओं को सम्मानित किया जाता है। शोभिता शर्मा, जो दिल्ली की रहने वाली एक आर्किटेक्ट हैं, अपनी पुरानी यादें ताजा करते हुए बताती हैं कि , “नवरात्रि के विषय में मेरी सबसे प्यारी यादें वह हैं, जब हमारे पड़ोसी एक देवी के रूप में मेरी पूजा करते थे और उसमें हमें मिठाइयाँ और कुछ रुपए भी दिए जाते थे, जो उस उत्सव का एक अभिन्न अंग होता था।”
उत्तर भारत में नवरात्रि का समापन दशहरे से होता है, जो भगवान राम द्वारा रावण पर विजय का त्यौहार है। इन दिनों में जगह – जगह रामलीला का मंचन किया जाता है, जिसमें रामायण को एक नाटक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है और जिसमें गाने, नृत्य तथा कठपुतलियों के खेल आदि दिखाए जाते हैं। त्योहारों के अंतिम (दसवें) दिन रावण और उसके सहयोगियों के पुतले जलाए जाते हैं, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
पश्चिमी भारत: गरबा और डांडिया रास
गुजरात में नवरात्रि अपने गरबा और डांडिया रास के लिए प्रसिद्ध है। गरबा में एक बर्तन में जलते हुए दीये के चारों ओर गोलाकार परिधि बना कर नृत्य किया जाता है, जिसमें दीया गर्भ में पल रहे भ्रूण का सूचक है। डांडिया रास में लोग दो दो के जोड़े बनाकर बाँस की लकड़ी से बनी विशेष सजावट वाली, घुंघरू लगी डांडिया छड़ियों के साथ विभिन्न आकृतियाँ बनाते हुए लयबद्ध नृत्य करते हैं।
इस त्यौहार के विषय में बताते हुए गुजरात निवासी जीनाक्षी कहती हैं, “गुजरात में हम रात्रि के 9 बजे से प्रातः के 4 बजे तक नृत्य करते हैं। वहाँ हर शहर, कस्बे का अपना विशेष स्टाइल है और इस अवसर पर नए वस्त्र पहनना आवश्यक है। गुजरात के त्यौहारी भाव को समझने के लिए नवरात्रि का समय एकदम उत्तम है।”

पूर्वी भारत: दुर्गा पूजा

पश्चिम बंगाल और उत्तरपूर्वी भारत में नवरात्रि के अंतिम पाँच दिन दुर्गा पूजा के रूप में मनाए जाते हैं। देवी दुर्गा को दस भुजाधारी, शेर पर सवार और सब प्रकार की नकारात्मकता का नाश करने के लिए अस्त्र धारण किए हुए रूप में सजाया जाता है। मंदिरों और अनेक स्थानों पर बने पंडालों में महिषासुर राक्षस का वध करती दिखने वाली दुर्गा माता की आदमकद मिट्टी की मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं और इन मूर्तियों को विजय दशमी के दिन जल में समर्पित करने के साथ ही यह महोत्सव समाप्त होता है।
कोलकाता निवासी, जानकी अपना अनुभव साझा करते हुए बताती हैं, “दुर्गा पूजा का समय विश्राम और पारिवारिक मिलन का समय होता है। यहाँ हर एक पंडाल का अपना एक रूप रंग/ थीम होता है, और देवी दुर्गा का दर्शन ही अपने आप में एक मंत्रमुग्ध करने वाला अनुभव होता है। महिलाएँ सुंदर बंगाली साड़ियाँ पहन कर निकलती हैं और ढाक की ताल पर होने वाली महाआरती मुख्य आकर्षण होती है।”
दक्षिण भारत: कोलू और यक्षगान
दक्षिणी भारत में नवरात्रि का पर्व कोलू के साथ मनाया जाता है, जिसमें हाथ से बनी गुड़ियाँ और अन्य आकृतियों को सीढ़ीनुमा मंचों पर प्रदर्शित किया जाता है। कन्नड़ में बाँबे हब्बा, तमिल में बोम्मई कोलु, मलयालम में बोम्मा गुल्लु और तेलुगू में बोम्मला कोलुवु के नाम से विख्यात इन प्रदर्शनियों में प्रायः देवी – देवताओं की आकृतियाँ रखी जाती हैं और वह सामाजिक संदेश देती हैं।
कर्नाटक में नवरात्रि अथवा दशहरा में यक्षगान होता है, जो लोक कथाओं पर आधारित नृत्य और नाटक के रूप में रातभर चलने वाला कार्यक्रम है। मैसूर के शाही परिवार के नेतृत्व में मनाया जाने वाला विश्व विख्यात मैसूर दशहरा एक भव्य आयोजन है। इसके अतिरिक्त महानवमी के दिन की जाने वाली आयुध पूजा में उपकरणों, पुस्तकों तथा वाहनों की भी पूजा की जाती है। केरल में नवरात्रि के दसवें दिन, मनाया जाने वाला विद्यारंभ छोटे बच्चों की शिक्षा के आरंभ रूप में मनाया जाता है।

आध्यात्मिक सम्बंध
सूक्ष्म जगत को संचालित करने वाले 64 प्रकार के आवेग होते हैं। इनसे ही सभी प्रकार के भौतिक तथा आध्यात्मिक लाभ पुनः स्थापित/ प्राप्त होते हैं। साधारण शब्दों में यह व्यक्ति की जागृत चेतना का ही अंग होते हैं। नवरात्रि की यही नौ रातें उन दैवीय आवेगों को पुनः जागृत करने और हमारे जीवन की गहनतम गहराईयों को प्रकट होने के अवसर के रूप में मनाई जाती हैं।
– गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर
अंत में, नवरात्रि का समय अपनी उच्चतर आध्यात्मिक अवस्था से मिलन का समय होता है। देश के कोने कोने में विविध रीति रिवाजों और महोत्सवों के रूप में मनाया जाने वाला यह पर्व हमें अपने आध्यात्मिक नवीकरण का अवसर प्रदान करता है, और हमें स्वयं को और अपने प्रियजनों को अधिक गहराई से जानने और उनसे मिलने तथा जीवन की आनंदमयी प्रवृत्ति को समझने में सहायता करता है।











