एक प्रेरणा स्त्रोत होना….तुम पहले से हो

एक व्यक्ति के रूप में हम विभिन्न लोगों से प्रेरित होते हैं, चाहे अपने कृत्यों से अथवा शब्दों , हमें उत्प्रेरित करने वाले एवं सहायता करने वाली विभूतियां हमारा जीवन में मार्गदर्शन करती हैं ।जब हम गुम हो जाते हैं या बुरे समय में संघर्ष कर रहे होते हैं यह लोग हमारे विश्वास को पुनः जागृत करते हैं और यह आश्वस्त भी करते हैं सब कुछ ठीक हो जाएगा ऐसे प्रेरणादाई व्यक्ति एक बहुमूल्य रत्न की तरह होते हैं जो हमारे ऊपर अविस्मरणीय छाप छोड़ जाते हैं ।

हम पाते हैं, एक या कुछ ही पलों में कोई जनसाधारण हमारे गुरु या मार्गदर्शक बन जाते हैं । आध्यात्मिक शिक्षक गुरुदेव श्री श्री रविशंकर जी व्याख्या करते हैं, गुरु केवल कोई व्यक्ति है जो नि:शर्त प्रेम एवं सहयोग हेतु उपलब्ध रहता है।

हमारे इर्द-गिर्द कई जनसामान्य उपलब्ध होते हैं, जो चुनौतीपूर्ण समय में हमारा मार्गदर्शन करते हैं कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो जीवन को अच्छे से समझने में हमारी मदद करते हैं, हमारा पथ प्रदर्शन करते हैं । विद्वान लोग जीवन के बारे में ज्यादा जानकार होने के अलावा इसके रहस्य और चेतना के अनजाने लोक को ज्यादा अच्छे से जानते हैं । हमारी अति प्राचीन परंपरा के अनुसार जिसमें शिक्षित या अनुभवी व्यक्तियों का आदर होता है, उन्हें आध्यात्मिक गुरु या सद्गुरु के रूप में पहचाना जाता है । एक सद्गुरु, किसी को अपने अंदर और अन्य सभी में भगवान खोजने में सहायता करते हैं ।

सद्गुरु और तमाम उन लोगों का जिन्होंने जीवन में कभी भी मार्गदर्शन किया था, का आभार प्रकटीकरण हमें न केवल विनयी बनाता है वरन हमारे अस्तित्व को आनंद से परिपूर्ण कर देता है।

गुरु पूर्णिमा का दिन गुरुओं के प्रति आश्चर्य पूर्ण एवं आभार युक्त भावनाओं को गुरुओं के प्रति समर्पित करने के लिए उल्लेखनीय होता है ।

जिस प्रकार गलियों के बिना शहर, राजकोष के बिना राजा, व्यापार के बिना व्यापारी, नाक के बिना चेहरा, ज्ञान के बिना जीवन एवं गुरु के बिना जीना, यह सब एक समान है।

- गुरुदेव श्री श्री रविशंकर

बिना गलियों वाला शहर, बिना खजाने वाला राजा, बिना व्यवसाय वाला व्यापारी, बिना नाक वाला चेहरा, ज्ञान और गुरु के बिना जीवन सभी को एक समान माना जाता है।

~ गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर