भगवान इंद्र ने देवी माँ का आह्वान करने, अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए और उनका आशीर्वाद पाने हेतु महालक्ष्मी अष्टकम की रचना और उसका पाठ किया था। लक्ष्मी शब्द का उद्गम संस्कृत भाषा के शब्द ‘लक्ष्य’ से हुआ है, जिसका अर्थ है उद्देश्य या प्रयोजन। इसलिए, देवी लक्ष्मी की श्रद्धापूर्वक स्तुति और उनसे प्रार्थना करने से हमें अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता मिलती है। देवी महालक्ष्मी का अभिप्राय अष्टलक्ष्मी या आठ प्रकार की संपत्ति से है।
सुदर्शन क्रिया सीखें
विश्व की सबसे शक्तिशाली साँसों की तकनीक - सुदर्शन क्रिया सीखें, जो 4.5 करोड़ से अधिक लोगों की प्रिय तथा अभ्यास की जाने वाली प्रक्रिया है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि • तनाव से मुक्ति • संबंधों में सुधार • आनंदमय और उद्देश्यपूर्ण जीवन
महालक्ष्मी अष्टकम का महत्व
देवी माँ का आशीर्वाद पाने तथा एक समृद्ध और शांतिमय जीवन के लिए भक्तगण महालक्ष्मी अष्टकम का पाठ करते हैं। इसका पाठ सबसे पवित्र और मंगलकारी प्रार्थनाओं में से एक माना जाता है। इसके मंत्र हमारे भीतर मांगलिक गुणों को पोषित करते हैं और व्यक्ति को आत्मज्ञान की दिशा में आगे बढ़ाते हैं।
श्लोक एवं उनके अर्थ
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते ।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ १॥
हे महामाया, आप श्रीपीठ में निवास करने वाली तथा देवताओं द्वारा पूजित हैं, मैं आपको प्रणाम करता हूँ। जो देवी अपने हाथों में शंख, चक्र और गदा धारण करती है, मैं उस देवी महालक्ष्मी को नमन करता हूँ।
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि ।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ २॥
हे गरुड़ पर सवार होकर कोलासुर नाम के राक्षस का संहार करने वाली देवी, मैं आपको प्रणाम करता हूँ। हे महालक्ष्मी, सब पापों को हरने वाली देवी, मैं आपको नमन करता हूँ।
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्टभयङ्करि ।
सर्वदुःखहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ ३॥
जो सब कुछ जानने वाली हैं, सभी वरदानों की दात्री हैं, जिनके नाम से ही दुष्ट भयभीत हो जाते हैं, हे महालक्ष्मी, आप सभी दुःखों और पीड़ाओं को दूर करती हैं, मैं आपको नमन करता हूँ।
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि ।
मन्त्रमूर्ते सदा देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ ४॥ (मन्त्रपूते)
हे कौशल, बुद्धि, लौकिक सुखों और मोक्ष का दान देने वाली देवी, जो सदैव ही मंत्र स्वरूपा हैं, हे देवी महालक्ष्मी, मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि ।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ ५॥
वह देवी, जो अनंत हैं और आदिशक्ति, माहेश्वरी का प्रतिरूप हैं, जो योग से उत्पन्न हुई हैं और सभी योगियों के मन में जिनका वास है, हे महालक्ष्मी देवी, मैं आपको नमन करता हूँ।
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्ति महोदरे ।
महापापहरे देवि महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ ६॥
वह महान शक्ति, जो संपूर्ण ब्रह्मांड को अपने गर्भ में रख कर बचाती हैं, हे देवी, आप महान पापों को नाश करने वाली हैं, मैं उन महालक्ष्मी देवी को प्रणाम करता हूँ।
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणि ।
परमेशि जगन्माता महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ ७॥
हे पद्मासन मुद्रा में कमल पर विराजमान देवी, जिनका यह स्वरूप उस परम सत्ता का प्रतिनिधित्व करता है, हे परमपिता परमेश्वर और ब्रह्मांड की माता, महालक्ष्मी, मैं आपको नमन करता हूँ।
श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कारभूषिते ।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥ ८॥
जो श्वेत वस्त्र धारण करती है, रत्नों तथा आभूषणों से सुशोभित हैं, जो तीनों लोकों की रक्षा करती हैं, हे जगत माता देवी महालक्ष्मी, मैं आपको प्रणाम करता हूँ। हे सर्वव्यापिनी देवी माँ, समस्त सृष्टि की जननी, मैं आप महालक्ष्मी को नमन करता हूँ।
आर्ट ऑफ लिविंग के शिक्षक, स्वामी विश्वरूप द्वारा दी गई सूचनाओं और जानकारी पर आधारित।