मनसा देवी, शक्ति का स्वरुप हैं | मनसा देवी के भक्त बहुत ही प्रेम और भक्ति  से देवी की पूजा-अर्चना करते हैं| ऎसी मान्यता है कि देवी के इस स्वरुप का ध्यान करने से मन शांत रहता है तथा भक्तों की मनचाही कामना पूरी होती है | माता के इस स्वरुप को भगवान शिव की मानस पुत्री कहा जाता है| इस प्रकार देवी के इस स्वरुप को मनसा कहा जाता है | महाभारत में ऐसा वर्णन मिलता है कि इनका वास्तविक नाम “जरत्कारु” है और इनके पति का नाम भी मुनि जरत्कारु है | माँ मनसा के पुत्र आस्तिक नाम से जाने जाते हैं | 

कमल का फूल है देवी का आसन :

मनसा देवी कमल पर विराजित हैं | माता का यह रूप मुख्यत: सर्पों से आच्छादित रहता है जिसमे 7 नाग उनके मुकुट रूप में  सदैव विद्यमान रहते हैं। कई बार देवी के चित्रों में उन्हें एक बालक के साथ दिखाया जाता है, वह बालक देवी के पुत्र आस्तिक हैं ।

नागमाता के रूप में पूजी जाती हैं मनसा देवी :

इन्हें नागराज वासुकी की बहन के रूप में पूजा जाता है| कुछ ग्रंथों में ऐसा वर्णन मिलता है कि नाग वासुकी ने भगवान शिव की कठोर तपस्या की और एक बहन की इच्छा व्यक्त की | इस पर भगवान शिव नें उन्हें बहन के रूप में एक कन्या का भेंट दिया | वासुकी इस कन्या का तेज सह नहीं पाए और उन्होंने मनसा देवी के पालन पोषण की ज़िम्मेदारी नागलोक के तपस्वी “हलाहल” को सौंप दी। 

ग्रीस देश में भी मिलते हैं मनसा देवी के प्रसंग :

ग्रीस देश में भी मनसा नामक देवी का प्रसंग आता है| वहां मनसा देवी नागमाता के रूप में प्रसिद्ध हैं | कई लोग इन्हें विष की देवी के रूप में भी मानते हैं| वहाँ ऎसी मान्यता प्रचलित है कि देवी ने  ही भगवान शिव को हलाहल विष के प्रकोप से बचाया के था| हिन्दी और बांग्ला पंचांग के अनुसार, भाद्रपद महीने में झारखंड, बिहार और बंगाल के कई क्षेत्रों में धूमधाम से विष देवी की स्तुति की जाती है ।

महाभारत और पुराणों में मिलते हैं प्रमाण :

राजा युधिष्ठिर ने महाभारत के युद्ध में विजयी होने के लिए माता मनसा की पूजा की थी| जहाँ युधिष्ठिर ने पूजन किया वहीं सालवन गाँव में भव्य मंदिर का निर्माण किया गया था ।

विष्णु पुराण

विष्णु पुराण के चतुर्थ भाग में एक नागकन्या का वर्णन है, जो आगे चलकर मनसा के नाम से प्रचलित हुई|

ब्रह्मवैवर्त पुराण

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार,  एक नागकन्या भगवान शिव तथा कृष्ण की अनन्य भक्त थी। उसने कई युगों तक तप किया तथा भगवान शिव से आशीर्वाद के रूप में कृष्ण मंत्र का ज्ञान प्राप्त किया जिसे  “कल्पतरु मंत्र” भी कहते हैं। नागकन्या ने पुष्कर में तप कर भगवान कृष्ण के दर्शन प्राप्त किए तथा उनसे वरदान मांगा कि पूरे संसार में हमेशा नागकन्या की पूजा हो। 

उत्तराखंड के हरिद्वार और हरियाणा के पंचकुला में देवी के मंदिर स्थापित हैं|

मनसा देवी मंदिर, हरिद्वार:

हरिद्वार से 3 किमी दूर स्थित माता का यह मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है। यह एक शक्तिपीठ है और ऎसी मान्यता है कि देवी का यह रूप अपने भक्तों के सभी दुख दूर करता है| इस मंदिर परिसर में एक पेड़ है जिसपर भक्त मनोकामना पूर्ति के लिए एक पवित्र धागा बांधते है।

मनसा देवी मंदिर, पंचकुला :

माता मनसा देवी का एक मंदिर पंचकुला में शिवालिक पर्वत मालाओं के मध्य भी  स्थित है |

कालसर्प दोष के लिए करते हैं मनसा देवी पूजा :

पुराणों में ऎसी मान्यता है कि इनके जरत्कारु, जगद्गौरी, मनसा, सिद्धयोगिनी, वैष्णवी, नागभगिनी, शैवी, नागेश्वरी, जरत्कारुप्रिया, आस्तिकमाता और विषहरी सहित देवी के सात नामों के जाप से सर्प का भय नहीं रहता। 

ज्योतिष में विश्वास रखने वाले लोग कुण्डली में उपस्थित कालसर्प नामक दोष के निवारण के लिए मनसा देवी की पूजा करते हैं | मनसा देवी को नाग देवी के रूप में भी पूजा जाता है | कई ज्योतिषी ऐसा बताते हैं कि मनसा देवी की पूजा करने से कालसर्प दोष दूर होता है |

नवरात्रि में होती है विशेष पूजा :

शारदीय नवरात्रि के दिनों में देवी भक्त, मनसा देवी के रूप की  विशेष पूजा और आराधना करते हैं| नवरात्रि में देवी के इस स्वरुप का ध्यान करने से भक्त सभी चिंताओं और भय से मुक्त हो जाते हैं | मानसिक और शारीरिक किसी भी प्रकार के विष (अशुद्धियों) से मुक्त होने के लिए, देवी भक्त नवरात्रि के नौ दिनों में उपवास रखते हैं तथा श्रद्धा और समर्पण भाव से ध्यान और जप करते हैं | भारत के कई स्थानों में नवरात्रि में कन्या पूजन का प्रचलन है | माता मनसा के भक्त, इन नौ दिनों में भजन, कीर्तन, जप, देवी कथा तथा देवी महात्म्य और ललिता सहस्रनाम का पाठ करते हैं और सुनते हैं |

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