क्या साइटिका से होने वाली तीव्र दर्द की वजह से आपको अपने बच्चों के संग समय व्यतीत करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है? क्या साइटिका की समस्या आपकी सामान्य दिनचर्या में भी बाधा डालती है? बहुत से लोग इस दर्द का सामना करने के लिए स्वतः ही रोग की पहचान अथवा उपचार करने लगते हैं, परंतु इसके भयंकर परिणाम हो सकते हैं। सौभाग्यवश, साइटिका के दर्द का निदान सुरक्षित और लाभप्रद योगासनों द्वारा संभव है।
हाल ही में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि साइटिका से निदान के लिए बताए गए योगासन पीठ के निचले भाग में होने वाले अनिर्दिष्ट दर्द, डिस्क में उभार या हर्निया जैसी स्थिति में लाभकारी होते हैं। इस लेख में हम साइटिका से मुक्ति के लिए 9 योगासनों और साइटिका के कुछ साधारण व्यायामों से आपका परिचय करवाएँगे जो आपको साइटिका से बचाव और राहत पाने में आपकी सहायता करेंगे।
साइटिका नाड़ी (तंत्रिका) क्या है?
साइटिका नाड़ी हमारे शरीर की सबसे लंबी और मोटी नाड़ी है और इसकी मोटाई आपकी तर्जनी उंगली के समान होती है। यह रीढ़ के निचले भाग से लेकर पांव के तलवे तक जाती है। साइटिक नाड़ी टाँगों की अनेक माँसपेशियों को नियंत्रित करती है और यह जंघाओं, पाँव तथा टाँगों में संवेदना उत्पन्न करती हैं।
साइटिका का दर्द क्या है?
साइटिका का दर्द उस दर्द को कहते हैं जो कमर के निचले हिस्से से शुरू होकर कूल्हे और पैर के नीचे तक जाता है। यह साइटिक नाड़ी के दबने या उसमें जलन होने के कारण होता है।
साइटिका के कारण हल्के से लेकर तीव्र स्तर तक का दर्द हो सकता है। दर्द आमतौर पर शरीर के एक ही तरफ होता है और यह हल्का और लगातार रहने वाला दर्द या असहनीय चुभने वाला दर्द हो सकता है। इन संवेदनाओं में धड़कता हुआ दर्द, गर्मी, पीड़ा, झुनझुनी और यहाँ तक कि बिजली के झटके जैसा महसूस हो सकता है। इन लक्षणों के कारण खड़े होना या चलना मुश्किल हो सकता है।
यह समझना महत्वपूर्ण है कि कमर का सारा दर्द साइटिका के कारण नहीं होता है। केवल तभी जब आपका दर्द प्रभावित साइटिक नाड़ी के कारण होता है, तो इसे साइटिका कहा जाता है।
साइटिका के सामान्य कारण
साइटिका मुख्यतः नाड़ी के दबने से, डिस्क में हर्निया से, स्पाइनल स्टेनोसिस, ऑस्टियोआर्थराइटिस अथवा रीढ़ की डिस्क के घिस जाने के कारण होती है। इसके कुछ अन्य कारण हैं, बीड़ी-सिगरेट का सेवन, मोटापा और अधिक देर तक बैठे या खड़े रहना।
चिंता की कोई बात नहीं। साइटिका योग से इसमें राहत मिल सकती है।
साइटिका के दर्द से राहत के लिए योगासन
1. शिशुआसन

शिशुआसन का अभ्यास करने के लिए इसे करने का क्रम सीखें।
लाभ:
- साइटिका के दर्द से राहत देता है।
- रीढ़ की हड्डी और कूल्हों में खिंचाव लाता है।
- स्नायु तंत्र को शांत करता है।
लक्ष्य: शरीर को विश्राम देने, कूल्हों, जंघाओं तथा पीठ के निचले भाग में तनाव को कम करने पर फोकस।
सुझाव: झुकने में आसानी के लिए आगे की ओर झुकते समय अपनी नाभि को अंदर की ओर खींचें; आप अपनी जांघों, छाती और माथे के नीचे कुशन या किसी अन्य सहारे का उपयोग भी कर सकते हैं।
2. सेतु बंधासन

सेतु बंधासन का अभ्यास करने के लिए इन चरणों को पढ़ें।
लाभ:
- कूल्हों की फ्लैक्सर माँसपेशियों को खोलता और उनमें खिंचाव लाता है।
- शरीर के कोर (मुख्य) तथा पीठ की माँसपेशियों को सशक्त बनाता है।
- पीठ के निचले भाग में होने वाले दर्द से राहत प्रदान करता है।
लक्ष्य: आरम्भ में, अपनी पीठ, मूलाधार और जंघाओं को एक सीध में रख कर इस आसन को लगभग 10 सेकंड तक बनाए रखें और फिर धीरे धीरे इस समयावधि को बढ़ाते जाएँ।
सुझाव: अपनी सुविधानुसार आप अपने पीठ के नीचे के भाग को हाथों का सहारा दे सकते हैं।
3. विपरीतकरणी

लाभ:
- थकी हुई टाँगों और पाँवों को विश्राम मिलता है।
- कूल्हों और पीठ को विश्राम।
- इस आसन में चूँकि आप अपने घुटनों को उन पर पड़ने वाले बोझ से मुक्त करते हैं, यह घुटनों और एड़ियों की पीड़ा को कम करता है।
लक्ष्य: इस आसन में जिस प्रकार से आपके शरीर को गहरा विश्राम मिलता है, उसी प्रकार अपने मन को भी विश्राम दें।
सुझाव: अधिक आराम के लिए, अपने कूल्हों के नीचे कोई गोल तकिया रख सकते हैं।
4. पवनमुक्तासन

पवनमुक्तासन की विधि जानने के लिए इसे पढ़ें।
लाभ:
- पीठ और कूल्हों की माँसपेशियों को लचीला बनाता है।
- पीठ के निचले भाग की अकड़न को ढीला करता है।
- घुटनों के दर्द से राहत देता है।
लक्ष्य: इस आसन को उतने अधिक देर तक ही करें जितना आप आराम से कर सकते हैं: घुटना मोड़ने से थकावट दूर होगी।
सुझाव: यदि इस आसन को करने में आपको असुविधा हो तो अपना सिर न उठाएँ। दोनों टाँगों को मोड़ कर इस आसन को करने की अपेक्षा एक समय में एक टाँग को ही मोड़ें।
5. सुप्त कपोटासन
लाभ:
- साइटिक के दर्द से राहत देता है।
- कूल्हों और उनकी माँसपेशियों को खिंचाव दे कर उन्हें लचीला बनाता है।
- शरीर को विश्राम देता है।
लक्ष्य: अपना ध्यान गहरी साँस लेने, शरीर को ढीला छोड़ने और धीरे धीरे कूल्हों को खिंचाव देने पर केंद्रित करें।
सुझाव: यह आसन पूरी सजगता से करें, क्षमता से अधिक खिंचाव न दें और यदि आवश्यक हो तो कुशन आदि की सहायता लें ।
यदि आप यह आसन सुगमतापूर्वक कर पाते हैं तो इसका अगला स्तर एक पाद राजा कपोटासन है। अन्यथा आप उसे छोड़ सकते हैं।
6. अधोमुख श्वानासन

अधोमुख श्वानासन का अभ्यास करने के लिए इस को पढ़ें।
लाभ:
- पीठ की माँसपेशियों को खिंचाव दे कर उन्हें लचीला बनाता है।
- टाँगों और पैरों को सशक्त बनाता है।
- रीढ़ की हड्डी को लंबा करता है।
लक्ष्य: अपनी एड़ियों को फर्श की ओर दबाएँ और यदि संभव हो तो उन्हें फर्श पर टिकाएँ। इसका अभिप्राय अपने वजन को पीठ से हटा कर एड़ियों पर डालना है।
सुझाव: इस आसन में जाने से पहले एड़ियों और बाजुओं के कुछ हल्के फुलके वार्म अप व्यायाम अवश्य करें क्योंकि इस आसन में भुजाएँ और एड़ियाँ ही शरीर के वजन को संभालती हैं।
7. एकपाद राजकपोतासन
एकपाद राजकपोतासन के अभ्यास की विधि जानने के लिए इस को पढ़ें।

लाभ:
- शरीर के निचले भाग में अच्छे से खिंचाव दे कर दर्द कर रही माँसपेशियों को आराम देता है।
- कूल्हों के क्षेत्र को अधिक लचीला बनाता है।
- शरीर के अंग विन्यास (मुद्रा/ पॉस्चर) को उत्तम बनाता है।
लक्ष्य: अपने शरीर को संतुलित करने पर ध्यान केंद्रित करें, और एक बार यह हो जाए तो शांत अनुभव करने पर।
सुझाव: भले ही आपको दर्द एक कूल्हे में हो, अपना ध्यान दोनों कूल्हों पर केंद्रित रखें।
8. अर्द्धमत्स्येन्द्रासन

अर्द्धमत्स्येन्द्रासन सीखने के लिए यह पढ़ लें।
लाभ:
- रीढ़ की हड्डी में लचीलापन ला कर उसे कोमल बनाता है।
- पीठ की माँसपेशियों में खिंचाव लाता है।
- कूल्हों की अकड़न जकड़न को कम करता है।
लक्ष्य: अपने शरीर को दोनों ओर एक समान घुमाव देने पर ध्यान दें।
सुझाव:
- उतना ही घुमाव दें जितना आपके लिए सुविधाजनक हो।
- घुमाव देते समय पीठ का निचला भाग उठाने के लिए आप किसी कुशन पर बैठ सकते हैं।
9. गोमुखासन

गोमुखासन का अभ्यास करने के लिए इसे पढ़ें।
लाभ:
- रीढ़ की हड्डी को लंबा करता है, और शरीर की मुद्रा को ठीक करता है (दोषपूर्ण शारीरिक मुद्रा पीठ दर्द का मुख्य कारण है।)
- पीठ और कूल्हों की माँसपेशियों को सशक्त बनाता है।
लक्ष्य: अपने दोनों हाथों को शरीर के पीछे एक दूसरे से मिलाने का प्रयास करें और स्वयं पर कठोर हुए बिना इस आसन में उतनी देर तक बने रहें जितना आप रह सकते हों।
सुझाव: आरंभ में, यदि दोनों हाथ पीछे एक दूसरे से न मिल पाएँ तो कोई बात नहीं। निरंतर अभ्यास से यह होने लगेगा।
एक अध्ययन के अनुसार साइटिका की तरह ही, पीठ के निचले भाग में दर्द से निदान के लिए योगाभ्यास कम से कम उतना प्रभावी उपाय तो है ही जितना फिजियोथेरेपी।
साधारण साइटिका व्यायाम
साइटिका के दर्द से राहत के लिए योग के अतिरिक्त आप नीचे दिए गए कुछ साधारण व्यायाम भी कर सकते हैं।
I. घुटने के ऊपर टाँग रखना
अपने पाँवों को योगा मैट पर सपाट टिकाएँ और घुटनों को मोड़ कर, पीठ के बल लेट जाएँ। अपने दाएँ पाँव को उठाएँ और दायीं एड़ी को बायीं जंघा पर रखें। अब घुटने को एक बार में 5 सेकंड तक थोड़ा नीचे की ओर दबाएँ। इस प्रक्रिया को अपनी सुविधानुसार 3-4 बार दोहराएँ। तत्पश्चात इसे दूसरी टाँग से भी दोहराएँ।
II. पूरे शरीर को खिंचाव देना
अपनी पीठ पर लेट जाएँ; हाथों को सिर से ऊपर ले जा कर पीछे की ओर तथा पाँवों के पंजों को सामने की ओर रखते हुए दोनों टाँगों को आगे की ओर खींचें। अपने हाथों और पाँवों को विपरीत दिशा में खींचे। अब विश्राम करें। यह प्रक्रिया 4-5 बार दोहराएँ।
III. लेट कर शरीर को घुमाव देना
अपनी पीठ के बल लेट कर दोनों घुटनों को मोड़ते हुए बाजुओं को दोनों दिशाओं में खिंचाव दें। अब दोनों घुटनों को दायीं ओर तथा धड़ तथा चेहरे को बायीं ओर घुमाएँ। कूल्हों से ऊपर और नीचे के शरीर को विपरीत दिशा में खींचे। इस मुद्रा को लगभग 15 सेकंड तक बनाए रखें और तत्पश्चात मूल स्थिति में लौट आएँ। अब यही प्रक्रिया दूसरी दिशा में करें।
योगाभ्यास करने के पश्चात प्राणायाम और ध्यान करने से उसके उत्तम परिणाम मिलते हैं।
साइटिका से बचाव के लिए 3 सुझाव
- न केवल साइटिका का दौरा पड़ने के दौरान अपितु उसके पश्चात भी पर्याप्त विश्राम लेना अति आवश्यक है। अपने शरीर से अत्यधिक श्रम न करवाएँ, विशेष रूप से अधिक देर तक खड़े रहने या भारी वजन उठाने जैसे कार्य।
- वरिष्ठ आयु के लोगों को साइटिका के लिए योगाभ्यास कराते समय उनकी आवश्यकतानुसार आसनों में परिवर्तन कर सकते हैं और जब उचित हो, उसमें विश्राम दें ताकि उनकी पीड़ा को विकट होने से बचाया जा सके।
- पैदल चलने जैसे कम प्रभावशाली व्यायाम और तैराकी और पानी के एरोबिक्स जैसे पानी के व्यायाम भी पीड़ा को बढ़ने से रोकने में सहायता करते हैं।
साइटिका पीड़ितों के लिए वर्जित योगासन
बैठ कर या खड़े होकर आगे की ओर झुकने वाले अधिकतर आसन, जैसे कि हस्तपादासन, और सर्वांगासन जैसा कोई भी आसन, जो पीठ के निचले भाग पर दबाव डालता हो, करने से बचना चाहिए क्योंकि वह श्रोणी भाग (पेल्विस) और पीठ के निचले भाग पर और अधिक दबाव डाल कर स्थिति को बदतर बना सकते हैं। इसलिए साइटिका के व्यायाम करते समय अपने शरीर को सुनना अतिआवश्यक हैं। कोई भी ऐसा आसन या व्यायाम, जो असुविधा अथवा पीड़ा का कारण बने, उसको नहीं करना चाहिए। साइटिका का दौरा चल रहा हो तो योगाभ्यास करने से पहले उस दौरे के समाप्त होने की प्रतीक्षा करें और अपने डाक्टर से परामर्श करने के पश्चात ही अभ्यास आरम्भ करें।
एक विशेषज्ञ योग प्रशिक्षक आपकी सीमाओं अथवा चोट को ध्यान में रख कर आसनों में आवश्यक परिवर्तन कर सकता है अथवा उनके विकल्प सुझा सकता है।
वी ० नरेश कुमार, एक स्कूल अध्यापक हैं, जो आन्ध्र प्रदेश से आते हैं, अपना अनुभव साझा करते हुए कहते हैं, “श्री श्री योग प्रोग्राम करने के पश्चात मेरा साइटिका का दर्द, गर्दन का दर्द और शरीर के दर्द गायब ही हो गए।”
क्या आप भी साइटिका से राहत के लिए योग के लाभ स्वयं अनुभव नहीं करना चाहोगे?
श्री श्री योग प्रोग्राम में भाग लें।
निष्कर्ष
सार यह है कि साइटिका के लिए योगाभ्यास करने से अनेक लाभ होते हैं। इन आसनों और खिंचाव देने वाले व्यायामों को अपनी दिनचर्या में शामिल करके आप अपनी पीड़ा कम कर सकते हो, गतिशीलता में सुधार कर सकते हैं और भविष्य में होने वाले साइटिका के दौरों से स्वयं को बचा सकते हैं।
स्मरण रहे, योगाभ्यास किसी दवा का विकल्प नहीं है। अपने स्वास्थ्य चिकित्सक तथा प्रशिक्षित योग विशेषज्ञ से परामर्श कर खिंचाव देने वाले और सुदृढ़ता प्रदान करने वाले व्यायामों का नियमित अभ्यास करना न भूलें।
(यह लेख श्री प्रमोद टिम्सिना, फैकल्टी, श्री श्री स्कूल ऑफ योगा , से प्राप्त सुझावों पर आधारित है।)