नरक चतुर्दशी (काली चौदस, रूप चौदस, छोटी दीवाली या नरक निवारण चतुर्दशी के रूप में भी जाना जाता है) यह हिन्दुओं का त्यौहार है, जो हिंदू कैलेंडर के अश्विन महीने की विक्रम संवत् को कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (चौदहवें दिन) पर होता है। यह दीपावली के पाँच दिवसीय महोत्सव का दूसरा दिन है।
हिन्दू साहित्य में बताते हैं कि असुर (राक्षस) नरकासुर का वध कृष्ण, सत्यभामा और काली द्वारा इस दिन पर हुआ था। यह दिन धार्मिक अनुष्ठान, उत्सव और उल्लास के साथ मनाया जाता है।
नरक चतुर्दशी कथा
मैंने भागवत नहीं पढ़ी है। मैं इस विषय में ज्यादा नहीं जानता परन्तु मैंने सुना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने एक देश जो कि वर्तमान में ईराक है, को मुक्त कराया था। नरकासुर नामक एक राक्षस उस समय ईराक पर शासन करता था। उसकी 16000 उपपत्नियाँ थीं और वह सभी को सताया करता था। उस देश की समस्त जनता परेशान थी। उसके पुत्र का नाम भागदत्त था और भागदत्त के कारण ही उस शहर को बग़दाद के नाम से जाना जाता है। अतः कहा जा सकता है कि ईराक आज जो सह रहा है, वह 5000 वर्ष पहले भी ईराक में इसी प्रकार की शासन व्यवस्था थी। जब मैं ईराक गया था, तो कुर्दिस्तान में लोगों ने मुझे बताया कि वहाँ सैकड़ों गाँव ऐसे हैं, जिनमें एक भी पुरुष नहीं हैं क्योंकि सद्दाम हुसैन ने सभी पुरुषों को मरवा दिया है। उन सैकड़ों गाँवों में लोग अत्यंत कष्ट में थे। हमने कुछ ग्रामीणों से बात की और वे सब की सब महिलायें थीं। वे सामने आ कर अपनी दुःखभरी कहानी सुना रही थीं।
यह बहुत ही निराशाजनक है कि इस युग में भी ऐसी आसुरी प्रकृति की सोच विद्यमान हो सकती है। आपने युगांडा में भी इसी प्रकार की घटनाओं के विषय में सुना होगा। किसी ने फ्रिज में बहुत सारी खोपड़ियाँ इकट्ठी कर रखी थीं। नहीं सुना है क्या इसके बारे में? हाँ! और कम्बोडिया में भी लाखों लोग सताए जाते हैं, यहाँ तक कि आज भी वहाँ इस प्रकार की ज्यादतियाँ देखने को मिल जाती हैं। कम्बोडिया में एक कम्युनिस्ट जनरल ने सभी को खेती करने के लिए कहा। उन लोगों को खेती करना नहीं आता था। जो लोग व्यापारी थे, खेती के बारे में कुछ नहीं जानते थे, उसने उनपर जबरदस्ती की। जिसने भी उसकी बात मानने से इनकार किया जनरल ने उसे मार दिया। लाखों लोग मारे गए। कम्बोडिया की एक तिहाई जनता एक आदमी के हाथों मारी गई।
अतः ऐसी आसुरी मानसिकता 5000 वर्ष पहले भी विद्यमान थी। नरकासुर ने 16000 स्त्रियों से जबरदस्ती विवाह किया और उन्हें बंदी बना के रखा और अपना दास बना लिया। अतः जब वह श्रीकृष्ण के हाथों मारा गया तो उन सभी स्त्रियों का उद्धार हो गया। श्रीकृष्ण ने उन्हें मुक्त कर दिया। इसके बाद उन 16000 स्त्रियों ने कहा कि हम सभी आत्महत्या कर लेंगे। वे सभी सामूहिक आत्महत्या करना चाहती थीं क्योंकि उन दिनों स्त्रियों को बिना पति के रहना वर्जित था। विशेषकर उस समय एक आसुरी प्रकृति वाले व्यक्ति की पत्नी को वह सम्मान नहीं मिलता था। इसलिए उन सभी ने श्रीकृष्ण से कहा कि ‘इस व्यक्ति के साथ रहने के कारण अब हमारा परिवार हमें नहीं अपनाएगा और ये संसार भी हमें स्वीकार नहीं करेगा क्योंकि हम उस आसुरी प्रकृति वाले व्यक्ति, जिसने लाखों लोगों के जीवन का विनाश किया है, उसकी पत्नियाँ हैं। इसलिए अच्छा है कि हम सब मर जाएँ।’
इस पर श्रीकृष्ण ने उनसे कहा, ‘नहीं! मैं तुम सब को अपना उपनाम दूंगा। तुम्हें अपने आपको “यह या वह” अथवा नरकासुर की पत्नी कहलवाने की आवश्यकता नहीं है।’ श्रीकृष्ण उस काल में एक बहुत ही सम्मानीय एवं जाने – माने पुरुष थे। ऐसा करने पर वे सभी स्त्रियाँ मर्यादा के साथ रह सकती थीं, इसलिए उन्होंने कहा कि वे उन स्त्रियों को अपना नाम दे कर अथवा उनके स्वामी बन कर या उन्हें अपनी पत्नी मान कर, मर्यादा प्रदान कर रहे हैं। यह एक कथा है, एक पक्ष है। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने नरकासुर की उन सभी 16000 उपपत्नियों को अपना नाम दे कर एक सम्मान जनक जीवन प्रदान किया। ऐसा कर के उन्होंने कितना अच्छा काम किया ना?
इस प्रकार श्रीकृष्ण ने उन्हें एक नया जीवन दिया परन्तु उनकी वास्तविक पत्नियाँ तो रुक्मिणी, सत्यभामा एवं जाम्बवती ही थीं।
गुरुदेव श्री श्री रविशंकर के ज्ञान वार्ता से संकलित