क्या आप जानते हैं कि 19 साल की उम्र में गुरु गोबिंद सिंह ने तीन राजाओं के गठबंधन के विरुद्ध लड़ाई लड़ी और विजयी हुए? नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर के पुत्र, गुरु गोबिंद सिंह केवल एक किशोर थे जब उन्होंने भंगानी की लड़ाई में फतेह खान, भीम चंद और शिवालिक पहाड़ियों के राजाओं की संयुक्त सेना को हराया था।

गुरु गोबिंद सिंह सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु थे, इससे पहले उन्होंने पवित्र ग्रंथ – गुरु ग्रंथ साहिब को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था, न कि किसी इंसान को। दुनिया भर के सिख इस पुस्तक का उसी तरह सम्मान करते हैं, जैसे वे गुरु का करते हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि अपने ज्ञान और उपदेशों से गुरु गोबिंद सिंह ने सिख धर्म को हमेशा के लिए बदल दिया।

खालसा पंथ के संस्थापक, गुरु गोबिंद सिंहजी के जीवन में बहुत सी शिक्षाएँ हैं जिनका हम अपने दैनिक जीवन में अभ्यास कर सकते हैं और खुशहाल जीवन जी सकते हैं।

गुरु गोबिंद सिंह की शिक्षाओं से हम सभी, यह 7 बातें सीख सकते हैं

1. योद्धा बनो, और संत बनो

 गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर इस शिक्षा का बहुत ही सटीक वर्णन करते हैं।

उन्होंने दृढ़ता और कोमलता का यह दुर्लभ संयोजन स्थापित किया है कि आपको गतिशील होना चाहिए, और फिर भी हृदय में कोमल होना चाहिए। आपको अंदर से आध्यात्मिक होना चाहिए, एक संत होना चाहिए, लेकिन साथ ही एक सैनिक भी होना चाहिए। आप केवल एक संत बनकर यह नहीं कह सकते कि, ‘ठीक है, जो हुआ, होने दो!’ आपको अन्याय के विरोध में खड़ा होना चाहिए, और साथ ही, एक संत की तरह अपने अंदर करुणा भी रखनी चाहिए।

गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

2. प्रेम की शक्ति

गुरु गोबिंद सिंह ने इस बात पर समर्थन किया और कई कविताएँ लिखीं कि केवल वे ही दिव्यता प्राप्त कर सकते हैं जिन्होंने प्रेम किया है। वह एक सच्चे भक्त थे और उनका मानना ​​था कि ईश्वर का कोई निशान नहीं है, कोई रंग नहीं है, और कोई जाति नहीं है और वह अवर्णनीय है। ईश्वर कोई मनुष्य नहीं है, और वह सचमुच सभी जीवित प्राणियों में मौजूद है। उसने ईश्वर और उसकी सृष्टि के प्रति प्रेम को मोक्ष का मार्ग माना।

3. मानवता की सेवा करें

उन्होंने अपना जीवन लोगों की खुशी के लिए जिया और समाज की सेवा के लिए कई त्याग किए। वे ‘स्वयं से पहले सेवा’ के सिद्धांत पर चलते थे और मानते थे कि लोगों की मदद करने के लिए हर संभव साधन का इस्तेमाल करना चाहिए। हथियार उठाना अंतिम विकल्प होना चाहिए, लेकिन यदि ऐसा करना आवश्यक हो तो इसमें संकोच नहीं करना चाहिए।

4. सब बराबर हैं

वह सभी को समान मानते थे, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति या पंथ से संबंधित हों। वह सभी धर्मों का बहुत सम्मान करते थे और मानते थे कि अंतर केवल मनुष्यों द्वारा ही पैदा किया जाता है।.

5. विनम्र रहें

वे स्वयं को भगवान का सेवक मानते थे और जो कोई उन्हें भगवान मानता था, उसके सख्त खिलाफ थे। वे यह स्वीकार करने में कभी नहीं झिझके कि उन्हें गुरु का दर्जा उन लोगों की वजह से मिला है जो उन पर विश्वास करते थे, अन्यथा दुनिया में उनके जैसे कई अज्ञात लोग हैं जो इसके हकदार हैं।

6. आदर्श मानव बनें

सबसे बढ़कर, गुरु गोबिंद सिंह के 52 हुकुमों (या निर्देशों) में से अधिकांश एक साधारण गृहस्थ को नैतिक जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। उदाहरण के लिए: “चोरी, व्यभिचार, धोखाधड़ी, छल, ठगी और लूटपाट से दूर रहें”, “अपनी कमाई का दसवां हिस्सा दान करें”, “पुण्य कार्य करने से पीछे न हटें”, “मदिरा पीने में लिप्त न हों”, “ईमानदारी से जीवन व्यतीत करें” आदि।

7. अपनी वाणी पर ध्यान दें

वे शब्दों की शक्ति को जानते थे और हमेशा अपने अनुयायियों को दूसरों से बात करते समय अतिरिक्त सावधान और सम्मानजनक रहने की शिक्षा देते थे। उन्होंने एक विशेष हुकुम बनाया था कि एक आदमी अपनी पत्नी को गाली या मौखिक दुर्व्यवहार का शिकार नहीं बनाएगा। वह किसी भी तरह की गपशप के खिलाफ थे और उन्होंने लोगों को सिखाया कि दूसरों की निंदा न करें या निजी तौर पर भी दूसरों के बारे में कड़वी बातें न करें। उन्होंने लोगों को झूठे बयान न देने और हर कीमत पर अपने वादे निभाने के लिए भी प्रोत्साहित किया।

आइए, हम अपने भीतर गुरु गोबिंद सिंह की महान शिक्षाओं की भावना को प्रज्वलित करें तथा उनकी शिक्षाओं और उनके जीवन द्वारा दिखाए गए सेवा और भक्ति के मार्ग पर ध्यान लगाएँ।

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