मकर संक्रांति – ‘तिल गुड़ घ्या, अणि गोड़ गोड़ बोला’

मकर संक्रांति का महत्त्व सूर्य के उत्तरायण हो जाने के कारण है। शीतकाल जब समाप्त होने लगता है तो सूर्य मकर रेखा का संक्रमण करते (काटते) हुए उत्तर दिशा की ओर अभिमुख हो जाता है, इसे ही उत्तरायण कहा जाता है। एक फसल काटने के बाद इस दौरान दूसरी फसल के लिए बीज बोया जाता है।

एक वर्ष में कुल 12 संक्रांतियाँ आती हैं। इनमे से मकर संक्रांति का महत्त्व सर्वाधिक है, क्योंकि यहीं से उत्तरायण पुण्य काल (पवित्र/शुभ काल) आरम्भ होता है। उत्तरायण को देवताओं के काल के रूप में पूजा जाता है। वैसे तो इस सम्पूर्ण काल को ही पवित्र माना जाता है, परन्तु इस अवधि का महत्त्व कुछ ज्यादा है। इसी के बाद से सभी त्यौहार आरम्भ होते हैं।

मकर संक्रांति संदेश – श्री श्री रवि शंकर

मकर संक्रांति, पुणे एवं मेरा एक सम्बन्ध है। हर वर्ष इस समय आप लोग कुछ न कुछ खास कर बैठते हैं और मुझे यहाँ बुला लेते हैं। इसलिए मैं फिर से कहूँगा, ‘तिल गुड़ घ्या, अणि गोड़ गोड़ बोला’। आज मैंने देखा कि तिल ऊपर से काला है और अन्दर से श्वेत। यदि यह बाहर से सफेद और भीतर से काला होता तब बात कुछ और होती। आज तिल और गुड़ मिल कर देश को यह सन्देश दे रहे हैं कि भीतर से उज्जवल (शुद्ध) रहें।

यदि हम तिल को थोडा रगड़ें तो यह बाहर से भी सफेद हो जाता है। ब्रह्माण्ड या सृष्टि के परिप्रेक्ष्य में हम सभी तिल के ही समान हैं। यदि हम देखें तो, ब्रह्मांड/ सृष्टि में हमारा क्या महत्व है; जीवन क्या है? कुछ भी नहीं, तिल के समान; एक कण जैसा ! हम सभी अत्यंत सूक्ष्म हैं। हमें इस बात को याद रखना है।

हम लोग बेहद छोटे और मधुर हैं; जैसे कि तिल और गुड़। इसलिए छोटे और मीठे बने रहें, और इस तरह एक दिन हम वास्तव में बड़े बन जाएँगे। यदि हम सोचते हैं कि हम किसी क्षेत्र या स्थान पर बहुत बड़े हैं, तो जीवन में गिरावट आरम्भ हो जाएगी। यह अनुभव किया हुआ सत्य है। हम देखते हैं कि हजारों लोगों के जीवन में ऐसा ही होता है। जिस क्षण मद (घमंड) या यह भ्रम कि, ‘मैं कुछ हूँ’ आता है, अधोवनति आरम्भ हो जाती है। “मैं बहुत शक्तिशाली हूँ” – यही वह बात है, जहाँ से पतन आरम्भ होता है।

मकर संक्रांति को विभिन्न स्थानों पर लोहड़ी, पोंगल, बिहू आदि नामों से भी जाना जाता है। इसे भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है।

मकर संक्रांति और तिल के लड्डू

मकर संक्रांति का नाम सुनते ही मेरे दिमाग में कुछ ऊँगलिया चाटने वाली मिठाइयाँ आ जाती हैं। आज मैं आपके साथ उनमें से एक मिठाई की रेसिपी साझा करूँगा। चिंता न करें, इसमें चीनी का नहीं बल्कि गुड़ का उपयोग है। 

तो, मैं आज आपके साथ जिस मिठाई की रेसिपी साझा करने जा रहा हूँ, वह है हम सब के मनपसंद ‘तिल के लड्डू’। तिल के लड्डू बनाने में हमें 25 मिनट लगेंगे।

इसमें उपयोग होने वाली सामग्री है – 

⅓ कप तिल, ¼ कप मूंगफली, ¼ कप सूखा नारियल, ½ कप कद्दूकस किया हुआ गुड़, 3 बड़े चम्मच पानी, ¼ छोटा चम्मच इलायची पाउडर और 1 छोटा चम्मच तेल। 

तो चलिए अब इन्हें बनाना शुरू करते हैं। विधि कुछ इस प्रकार है:

  1. एक कड़ाही में तिल को धीमी आँच पर भूनें। धीरे धीरे जब उसका रंग बदलने लगे तो उसे निकाल कर रख दें।
  2. अब कुछ मूँगफली के दानों को धीमी आँच पर कुरकुरा कर लें और फिर उसे आँच से उतार कर ठंडा होने दें।
  3. अब कड़ाही में कसा हुआ नारियल डालें और तब तक उसे भूनें जब तक उसका रंग थोड़ा पीला न हो जाए।
  4. फिर उन मूंगफली के दानों को पीस लें और भुने हुए तिल व नारियल में इलायची पाउडर के साथ मिला दें।
  5. अब जो हमारा कद्दूकस किया हुआ गुड़ है उसको धीमी आँच पर पानी के साथ गरम करें। जब गुड़ पूरी तरह पानी में घुल जाऐ तो इसके अंदर हमारा भुना हुआ जो तिल का मिश्रण है उसे मिला लें।
  6. इसके बाद अपने हाथों में थोड़ा तेल लगाकर मिश्रण के गरम रहते ही छोटी-छोटी लोइयाँ या लड्डू बना लें।

तो भाइयों और बहनों लीजिए, तैयार है अलाव के सामने बैठकर, गप्पें मारते हुए खाने वाले तिल के लड्डू। आप सब को संक्रांति की ढेर सारी शुभकामनाएँ। और जैसा गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी कहते हैं “हम लोग बेहद छोटे और मधुर हैं; जैसे कि तिल और गुड़। इसलिए छोटे और मीठे बने रहें, और इस तरह एक दिन हम वास्तव में बड़े बन जाएँगे।”

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