आतंकवादी डरपोक होते हैं। जब भी विश्व के किसी भी भाग में आतंकवाद की कोई घटना होती है, तब हम सब लोगों से यही सुनते हैं कि यह एक कायरता का कार्य है। एक डरपोक व्यक्ति कार्य से तो भाग जाता है लेकिन अपने मन में नकारात्मक भावनाओं को भरे रहता है और चोरी-छिपे ऐसे कार्य करते रहता है।

भगवद गीता की शिक्षा

ठीक ऐसा ही अर्जुन के साथ भी हुआ। अर्जुन क्रोधित था। वह परेशान और दुखी था और युद्ध से भाग जाना चाहता था। भगवद गीता में, श्रीकृष्ण ने कहा, ‘कायर मत बनो!’ यह आतंकवाद का प्रतिषेधि है। श्रीकृष्ण ने कहा, ‘वीरता ही मार्ग है। जब युद्ध अपरिहार्य है, तब युद्ध का सामना करो और अपने कर्तव्य का पालन करो।’

एक आतंकवादी अपनी पहचान में अटक जाता है – वह उसे छिपाता है, उसका कोई तर्क नहीं होता और वह दुःख देता है। जबकि भगवद गीता एक व्यक्ति को उसकी पहचान के परे जाने का मार्ग दिखाती है, तर्क को बढ़ावा देती है और ज्ञान की प्रेरणा देती है। इस प्रकार से देखा जाए तो यह आतंकवाद का प्रतिषेधि है।

एक पुलिसकर्मी, एक सैनिक और एक राजा का यह कर्तव्य होता है कि वे देश के लिए निष्पक्ष हो जाएँ, न कि अपने शुभचिंतकों या परिवारजनों के लिए। आतंकवादी कभी भी निष्पक्ष नहीं होते। एक सैनिक वीर होता है और एक आतंकवादी डरपोक होता है। एक सैनिक रक्षा करता है और हिंसा को रोकता है। जबकि एक आतंकवादी दुःख और कष्ट देता है। भगवद गीता वीरता का ग्रन्थ है – ऐसी वीरता जो भौतिक और आध्यात्मिक दोनों स्तरों पर उपलब्ध है।

आतंकवाद घृणा से भरा हुआ होता है। भगवद गीता ऐसे कार्य के लिए प्रेरित करती है जिसमें घृणा नहीं है। भगवद गीता सही कार्य के लिए प्रेरित करती है – ऐसा कार्य जो न्याय परायण है, जो आत्मा का उत्थान करता है और एक ऐसा कार्य जिसे कठिन परिस्थितियों में करना चाहिए। 

भगवद गीता के पिछले 5149 सालों के इतिहास में, एक भी ऐसा उदाहरण नहीं है जिसमें इसके पढ़ने से कोई आतंकवादी बना हो। बल्कि, महात्मा गांधी ने भगवद गीता के ऊपर व्याख्यान लिखे हैं और यही उनके अहिंसा आन्दोलन की प्रेरणा थी। भगवद गीता एक अनूठा ग्रन्थ है, जो मानव विकास के पूरे क्रम की शिक्षा देता है, इस विशाल सृष्टि के प्रत्येक स्तर के ऊपर प्रकाश डालता है।

भगवद गीता हमें अपने कर्तव्य का पालन करने के दौरान समता और संतुलन बनाए रखने की शिक्षा देती है। श्रीकृष्ण प्रत्येक व्यक्ति को अस्त्र उठाकर लड़ने की प्रेरणा नहीं दे रहे हैं! लेकिन एक सैनिक बाजार में केले तो नहीं बेच सकता! एक सैनिक को अपने अस्त्र उठाकर अपने लोगों की रक्षा तो करनी ही होगी।

यदि भगवद गीता आतंकवादी ग्रन्थ है तो इसका अर्थ है कि पूरे विश्व में जितनी भी सेना की अकादमी हैं, वे सभी आतंकवादी संगठन हैं। यह सुनने में कुछ अजीब नहीं लगता? क्या कोर्ट ने लेनिन, मार्क्स और माओ सो-तुंग पर प्रतिबन्ध लगा दिया था क्योंकि इन्होंने पद पर रहने के लिए लाखों लोगों को कष्ट दिया था?

एक आतंकवादी डरपोक होता है और दूसरों को कष्ट देता है। जबकि एक सैनिक अपने खुद के जीवन का त्याग कर लोगों की रक्षा करता है और उन्हें शान्ति पहुंचाता है। यह दोनों ही बन्दूक उठाते हैं लेकिन इनकी मंशा एक दूसरे से बिलकुल विपरीत होती है।

भगवद गीता तर्क और संवाद को बढ़ावा देती है जबकि आतंकवादी किसी भी तर्क की परवाह नहीं करते और किसी भी तरह के संवाद के विरोध में रहते हैं। यह बहुत रोचक बात है कि पूरे विश्व में हर सेना अकादमी में सैनिकों को सिखाया जाता है कि वे अपने शत्रु को एक खतरनाक वस्तु की तरह देखें जिसका उन्हें विनाश करना है। ऐसी शिक्षा के पीछे जो मनोवैज्ञानिक बात है, वह यह है कि यदि वे अपने शत्रु को एक मनुष्य के रूप में देखेंगे तो वे अपने अस्त्र नहीं उठा पाएंगे। इसी प्रकार की और बहुत सी तकनीकें होती हैं ताकि सैनिक किसी भी भावनाओं से ग्रसित न हों।   

अर्जुन के साथ भी ऐसी ही परिस्थिति हुई।

तब भगवान कृष्ण सीढ़ी दर सीढ़ी गए और पहले अर्जुन की भावनाओं को संभाला, फिर उसके अहंकार को, फिर मन के विभिन्न विचारों और धारणाओं को। अंत में उन्होंने अर्जुन की आध्यात्मिक चेतना की प्रकृति के ऊपर प्रकाश डाला। उसे सबसे उच्चतम ज्ञान का बोध कराया और उसके अविनाशी रूप से परिचित कराया। इन सब से ही अर्जुन के भीतर एक अभूतपूर्व शक्ति का उदय हुआ जिससे वह अपने सांसारिक कर्तव्य पूरे करने के लिए प्रेरित हुआ।

एक डॉक्टर को हम एक डाकू नहीं कह सकते, जबकि वे दोनों ही मरीज का पेट काटते हैं।

भगवान कृष्ण कहते हैं, ‘ऐसे व्यक्ति को कोई पाप नहीं लगता जिसकी बुद्धि निर्लिप्त हो और राग द्वेष से मुक्त हो। ऐसा व्यक्ति यदि पूरे विश्व का विनाश भी कर देगा तो उसे कोई पाप नहीं लगेगा।’

अब एक ऐसी बुद्धि जो राग-द्वेष से मुक्त है, वह स्वयं ही आतंकवाद की प्रतिषेधि है। आतंकवाद होता ही तब है जब बुद्धि बहुत आसक्त है और द्वेष से भरी हुई है। भगवद गीता में जिन उदाहरणों का प्रयोग किया गया है और मानवीयता के जिन उत्कृष्ट मानकों का परिचय दिया गया है – वह अद्वितीय है!

ईसा मसीह ने भी कहा था, ‘मैं यहाँ शान्ति लाने के लिए नहीं आया हूँ, बल्कि तलवार उठाने के लिए आया हूँ। क्योंकि मैं यहाँ मनुष्य को उसके पिता के विरोध में खड़ा करने आया हूँ, बेटी को उसकी माँ के विरोध में, बहु को उसकी सास के विरोध में और हर व्यक्ति का शत्रु उसके अपने ही परिवार में होगा।’

कुरान में भी बहुत से छंद हैं, जिनमें कहा गया है कि काफिरों के मन में डर पैदा करना है और उनकी उंगलियाँ काट देनी हैं।

इन सबके बाद यदि आप अब भी भगवद गीता को आतंकवाद का ग्रन्थ कहते हैं तो उसके पहले आपको बाईबल और कुरान के इन छंदों को भी दोहराना चाहिए। वास्तविक बात यह है, कि कोई भी ग्रन्थ आतंकवाद नहीं फैलाते। बल्कि जब किसी मनुष्य के मन में अज्ञान और तनाव हो जाता है – तब वह अपने गलत कार्यों को छिपाने के लिए ग्रंथों का उद्धरण करता है।

गीता के विरोध में रूसी अदालत में चल रहे एक मुकदमे के बीच यह लेख दिसंबर 2011 में लिखा गया था। प्रतिबंध को लेकर चला मुकदमा रूसी अदालत ने खारिज कर दिया।

    Hold On! You’re about to miss…

    The Grand Celebration: ANAND UTSAV 2025 

    Pan-India Happiness Program

    Learn Sudarshan Kriya™| Meet Gurudev Sri Sri Ravi Shankar Live

    Beat Stress | Experience Unlimited Joy

    Fill out the form below to know more:

    *
    *
    *
    *