पूरे विश्व में हिंदुओं ने सक्रिय रूप से अन्नकुट का जश्न मनाया जाता है और अक्सर, दीपावली समारोह के चौथे दिन गोवर्धन पूजा के साथ अन्नकुट उत्सव जोड़ा जाता है। यह लेख पाठकों को पूजा के बारे में सभी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है, जैसे विधी, समय और महूरत।
गोवर्धन पूजा का पर्व कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की प्रतिपाद तिथि को मनाया जाता है। श्री श्री रवि शंकर जी बताते हैं की दीपावली के उत्सव के चौथे दिन को वर्षप्रतिपदा और राजा विक्रम के राज्याभिषेक के नाम से जाना जाता है। इस दिन शाम के समय में विशेष रुप से भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है। इस दिन को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय लोकजीवन में इस पर्व का अधिक महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा संबंध दिखाई देता है। इस पर्व की अपनी मान्यता और लोककथा है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानि गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरुप भी कहा गया है। इसलिए गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है। इस दिन के लिए मान्यता प्रचलित है कि भगवान कृष्ण ने वृंदावन धाम के लोगों को तूफानी बारिश से बचाने के लिए पर्वत अपने हाथ पर ऊठा लिया था। अन्नकूट पूजा को अत्यधिक कृतज्ञता, जुनून और उत्सुकता के साथ मनाया जाता है। यह भारत के विभिन्न राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मथुरा, वृंदावन और बिहार के सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक है।
पूजा की तिथि और महूरत
इस साल गोवर्धन पूजा, 8 नवंबर को मनाई जाएगी।
गोवर्धन पूजा का प्रात:काल महूरत, 6:13 बजे से 8:18 बजे तक है।
गोवर्धन पूजा का स्याकालुल महूरत, 14:31 (2:31 पी.एम.) से 16:35 (4:35 पी.एम.) बजे तक है।
गोवर्धन पूजा 2019 - सोमवार, 28 अक्टूबर |
गोवर्धन पूजा 2020 - रविवार, 15 नवंबर |
गोवर्धन पूजा 2021 - शुक्रवार, 5 नवंबर |
गोवर्धन पूजा 2022 - बुधवार, 26 अक्टूबर |
गोवर्धन पूजा 2023 - मंगलवार, 14 नवंबर |
महोत्सव के पीछे की कथा:
पौराणिक कहानियों और हिंदू शास्त्रों के अनुसार, वृंदावन के लोगों ने बारिश और तूफान के देवता भगवान इंद्र को विस्तृत भोजन देने की प्रथा का पालन किया करते थे। उन्हें ऐसा करने के लिए पर्याप्त समय दिया गया था ताकि उन्हें समय पर वर्षा और अच्छी फसल के साथ आशीर्वाद मिले। हालांकि कृष्ण ने इस प्रथा पर सवाल उठाया क्योंकि वे मानते थे कि यह अभ्यास गरीब किसानों पर बोझ है क्योंकि इससे उन्हें भव्य भोजन तैयार करने के लिए भारी प्रयास करना पड़ता था। कृष्ण ने जल्द ही अपनी सूझबूझ से पूरे गांव को इन भेंटों को बंद करने के लिए आश्वस्त किया। श्री श्री रवि शंकर जी भी इसका समर्थन करते हुए कहते हैं की उन दिनों की धार्मिक गतिविधियों के खिलाफ कृष्ण ने भी विद्रोह किया था। आज भी यह अच्छी तरह से ज्ञात है कि पूरे समाज ने कृष्ण की सलाह पर, गायों की देखभाल (गोवर्धन पूजा) और स्वयं के ज्ञान का सम्मान करने के लिए, इंद्र को बलिदान करने वाली पूजा को समाप्त कर दिया है। उन्होंने अन्नकूट को भी प्रोत्साहित किया, जहां सभी के लिए भोजन है।
दुर्भाग्य से, खाद्य प्रसाद की कमी से इंद्र नाराज हो गए और उन्होंने वृक्षवन के क्षेत्र में मूसलाधार बारिश और तूफान को भेजा। तूफान कई दिनों तक चलता रहा और गांव जल्द ही पानी में डूबने लगा। तब लोगों ने कृष्ण से मदद की विनती की, जिन्होंने उन्हें गोवर्धन पहाड़ी की तरफ जाने की सलाह दी। एक बार वहां उन्होंने अपनी छोटी उंगली से पूरे पहाड़ी को उठाकर पहाड़ के नीचे आने के लिए हर किसी से आग्रह किया और तूफान के आश्रय से सबको बचा लिया।
अंततः इंद्र कृष्णा की ताकत से झुक गए और वृंदावन में सात दिनों तक पानी गिरने से रोक दिया। तब से, गोवर्धन पूजा लोगों द्वारा मनाई जाने लगी।
गोवर्धन पूजा की विधि :
इस दिन प्रात: गाय के गोबर से गोवर्धन बनाया जाता है। अनेक स्थानों पर इसके मनुष्याकार बनाकर पुष्पों, लताओं आदि से सजाया जाता है। सन्ध्या को गोवर्धन की पूजा की जाती है। पूजा में धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल, फूल, खील, बताशे आदि का प्रयोग किया जाता है। गोवर्धन में ओंगा (अपामार्ग) अनिवार्य रूप से रखा जाता है। पूजा के बाद गोवर्धनजी की सात परिक्रमाएँ उनकी जय बोलते हुए लगाई जाती हैं। परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा व अन्य खील (जौ) लेकर चलते हैं। जल के लोटे से पानी की धारा गिरती हुई तथा अन्य जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी करते हैं। गोवर्धनजी गोबर से लेटे हुए पुरुष के रूप में बनाए जाते हैं। इनकी नाभि के स्थान पर एक कटोरी या मिट्टी का दीपक रख दिया जाता है। फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, शहद, बताशे आदि पूजा करते समय डाल दिये जाते हैं और बाद में इसे प्रसाद के रूप में बाँट देते हैं। अन्नकूट में चन्द्र-दर्शन अशुभ माना जाता है। यदि प्रतिपदा में द्वितीया हो तो अन्नकूट अमावस्या को मनाई जाती है। इस दिन पूजा का समय कहीं प्रात:काल होता है तो कहीं दोपहर और कहीं पर सन्ध्या के समय गोवर्धन पूजा की जाती है। इस दिन सन्ध्या के समय दैत्यराज बलि का पूजन भी किया जाता है। गोवर्धन गिरि भगवान के रूप में माने जाते हैं और इस दिन उनकी पूजा अपने घर में करने से धन, धान्य, संतान और गोरस की वृद्धि होती है। आज का दिन तीन उत्सवों का संगम होता है। इस दिन दस्तकार और कल-कारखानों में कार्य करने वाले कारीगर भगवान विश्वकर्मा की भी पूजा करते हैं। इस दिन सभी कल-कारखाने तो पूर्णत: बन्द रहते ही हैं, घर पर कुटीर उद्योग चलाने वाले कारीगर भी काम नहीं करते। भगवान विश्वकर्मा और मशीनों एवं उपकरणों का दोपहर के समय पूजन किया जाता है।
गोवर्धन पूजा की विधि :
इस दिन प्रात: गाय के गोबर से गोवर्धन बनाया जाता है। अनेक स्थानों पर इसके मनुष्याकार बनाकर पुष्पों, लताओं आदि से सजाया जाता है। सन्ध्या को गोवर्धन की पूजा की जाती है। पूजा में धूप, दीप, नैवेद्य, जल, फल, फूल, खील, बताशे आदि का प्रयोग किया जाता है। गोवर्धन में ओंगा (अपामार्ग) अनिवार्य रूप से रखा जाता है। पूजा के बाद गोवर्धनजी की सात परिक्रमाएँ उनकी जय बोलते हुए लगाई जाती हैं। परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा व अन्य खील (जौ) लेकर चलते हैं। जल के लोटे से पानी की धारा गिरती हुई तथा अन्य जौ बोते हुए परिक्रमा पूरी करते हैं। गोवर्धनजी गोबर से लेटे हुए पुरुष के रूप में बनाए जाते हैं। इनकी नाभि के स्थान पर एक कटोरी या मिट्टी का दीपक रख दिया जाता है। फिर इसमें दूध, दही, गंगाजल, शहद, बताशे आदि पूजा करते समय डाल दिये जाते हैं और बाद में इसे प्रसाद के रूप में बाँट देते हैं। अन्नकूट में चन्द्र-दर्शन अशुभ माना जाता है। यदि प्रतिपदा में द्वितीया हो तो अन्नकूट अमावस्या को मनाई जाती है। इस दिन पूजा का समय कहीं प्रात:काल होता है तो कहीं दोपहर और कहीं पर सन्ध्या के समय गोवर्धन पूजा की जाती है। इस दिन सन्ध्या के समय दैत्यराज बलि का पूजन भी किया जाता है। गोवर्धन गिरि भगवान के रूप में माने जाते हैं और इस दिन उनकी पूजा अपने घर में करने से धन, धान्य, संतान और गोरस की वृद्धि होती है। आज का दिन तीन उत्सवों का संगम होता है। इस दिन दस्तकार और कल-कारखानों में कार्य करने वाले कारीगर भगवान विश्वकर्मा की भी पूजा करते हैं। इस दिन सभी कल-कारखाने तो पूर्णत: बन्द रहते ही हैं, घर पर कुटीर उद्योग चलाने वाले कारीगर भी काम नहीं करते। भगवान विश्वकर्मा और मशीनों एवं उपकरणों का दोपहर के समय पूजन किया जाता है।
