पितृगण को याद करने से क्या होता है ?
जब आप यह शरीर छोड़ते हो तो देवता आपको एक अलग संसार की ओर राह दिखाते हैं। पुरुरवा, विश्वेदेव - ये इनके नाम हैं। यह आकर आपको एक स्तर से दूसरेे स्तर की ओर मार्गदर्शित करते हैं।
जैसे टेलीविजन देखते हुए आप जब चैनल चलाते है तब बाकी सारे चैनल उस वक्त तरंगो के रूप में उपस्थित होते है। एक चैनल बदलने के बाद हम दूसरे चैनल पर जाते है। इसी तरह से जब मृत्यु हो जाती है तब आत्मा सब जगह व्याप्त हो जाती है। अब जो भी लोगों को हम कृतज्ञता पूर्वक याद करते है तब उनकी तरंग हमें महसूस होती है फिर वह ब्राह्मणों के द्वारा या गाय या कौवे के द्वारा हो सकती है। जिसको याद करके जब हम कुछ करते है तो उसका फल हमें मिलता है।
पित्रुओं की याद में भूखे लोगों को भोजन कराने से आशीर्वाद प्राप्त होता है। जो खाये हुए है उन्हें खिलाने की जरुरत नहीं है। जिनको भी याद करना है उन्हें श्रद्धा से याद करें। बात यह है की अच्छा काम करें। किसी का दिल न दुखाये। लोगों को प्रसन्न करें।
श्रद्धा मतलब हम जानते है और मानते है, हमें देखने को नहीं मिलता वह इन्द्रियगोचर नहीं है। जब हम मानते है की ऐसा करने से कुछ अच्छा होनेवाला है।
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तर्पण का अर्थ क्या है और उसका महत्व क्या है ?
तर्पण में बच्चे अपने पुरखों को ज्ञान देते है और कहते है "आपके मन में अगर कुछ इच्छा है तो उसे छोड़ दे, वह तील के बराबर है। हम उस इच्छा को देखेंगे आप तृप्त हो जाईये ऐसे ३ बार कहते है। आप तृप्त हो जायेंगे तो हमें ख़ुशी मिलेगी। " अतृप्त व्यक्ति किसी को आशीर्वाद नहीं दे सकता।
महालय अमावस्या के दिन आप दिवंगत आत्माओं का स्मरण कर उन्हें धन्यवाद देते हैं और उनकी शांति के लिए प्रार्थना करते हैं। एक प्रचलित प्राचीन प्रथा है, जिसमें परिवारजन तिल, अक्षत और जल लेते हैं और पूर्वजों को याद कर ३ बार यह कहते हैं, "आप तृप्त हो जाएं, आप तृप्त हो जाएं, आप तृप्त हो जाएं"।
ऐसा तीन बार कहने के बाद, तिल को जल के साथ छोड़ते हैं। इस प्रथा का अभिप्राय दिवंगत आत्माओं को यह बताना है - यदि मन में अभी कुछ इच्छाएं बाकी हैं हैं तो वह तिल के समान छोटी हैं। वह महत्वपूर्ण नहीं हैं, उन्हें छोड़ दें। हम उनका ध्यान रख लेंगे। आप मुक्त, आनंदित और तृप्त हो जाओ।
आपके सामने एक व्यापक ब्रह्मांड है। ब्रह्मांड अनंत है, इसलिए आगे देखो और बढ़ो, उसे छोड़ दो जो भी आपको पीछे खींच रहा है। इसको ही तर्पण कहते हैं। तर्पण का अर्थ है - दिवंगत आत्माओं में तृप्ति और संतोष लाना। यह उनको तृप्त होने और आगे बढ़ने का संदेश देने के लिए किया जाता है।
महालय अमावस्या (पितृ पक्ष अमावस्या) का महत्व
यह अमावस्या दिवंगत आत्माओं के लिए है।
जल प्रेम का प्रतीक है। किसी को जल देने का अर्थ है प्रेम देना। संस्कृत में आप: का अर्थ जल होता है और इसका अर्थ प्रेम भी होता है। जो आपके प्रिय हो उसको संस्कृत में आप्त द्वारा संबोधित करते हैं। सो, आप उनकी स्मृति में, उनको जल प्रेम और जीवन के प्रतीक के रूप में देते हो, इसीलिए इसको महालय अमावस्या कहते हैं। इस दिन आप अपने सभी पूर्वजों का समरण करते हैं।
वैदिक पद्धति में, माता और पिता की ओर की तीन पीढ़ियों का स्मरण किया जाता है, और सभी मित्र, संबंधियों और वे लोग लोग इस संसार को पार दूसरी ओर जा चुके हैं, उनको भी याद किया जाता है। उन सभी का स्मरण कर उनको तृप्त रहने के लिए बोलते हैं। प्रायः उनकी स्मृति में रहता है कि लोग दान करते हैं- मानवों और जानवरों को भोजन देते हैं।
क्या महिलाएं श्राद्ध कर सकती है ?
हाँ महिलाये श्राद्ध कर सकती है। एक कहानी के अनुसार स्वयं माता सीता ने विष्णुगया में अपने पिता राजा जनक का श्राद्ध किया था। भारत में स्री या पुरुष में कोई भेद नहीं देखा गया था। स्री का स्थान ऊँचा ही रहा। उनको सबसे ऊँचा दर्जा और सम्मान दिया गया जैसे पहले आप स्री और उसके बाद पुरुष आता है। बाकि देशों में मिस्टर (Mr) और मिसेस (Mrs) होता है पर यहाँ सीता - राम, सिया राम, राधे श्याम या गौरी शंकर कहा जाता है। देश में परतंत्र आने के बाद महिलाओं को सम्मान देने की यह परंपरा बदल गयी।
बाहरी संस्कृतियों में पितृ सम्मान
लगभग पूरे विश्व में, हर कोई जो पौराणिक सभ्यताओं से हैं, इस प्रथा को मानता है | ये सभी संस्कृतियों में है।
- मैक्सिको: मैक्सिको में, हर वर्ष 2 नवंबर को, लोग अपनी पुरखों की याद में मनाते है।
- चीन: चीनी संस्कृति में, एक दिन होता है जब वह सभी पूर्वजों को याद करते हैं, और उनको जो-जो पसंद था उसे बनाते हैं और उनको समर्पित करते हैं।
- सिंगापुर: सिंगापुर वैसे तो बहुत ही साफ-सुथरा है, परंतु वर्ष में एक दिन कुछ घंटों के लिए वह बहुत ही गंदा हो जाता है, क्योंकि वहां के लोग इसे सड़कों पर मनाते हैं। वे कार्डबोर्ड की बड़ी-बड़ी कार, घर आदि बनाते हैं और सड़कों पर जाकर उन्हें जलाते हैं जिससे वह उनके पूर्वजों तक पहुँच जाए। वह नकली नोट भी खरीदते हैं और जलाते हैं जिससे उनके पूर्वजों को यह मिल जाये और वह उन्हें आशीर्वाद दें।
- ईसाई धर्म में भी, एक दिन होता है - "ऑल सोल्स डे" (all soul's day), जिस दिन सभी पूर्वजों को याद किया जाता है। उस दिन लोग उनकी कब्र जाकर उनके लिए प्रार्थना करते हैं।
यह प्रथा यह याद करने के लिए की जाती है कि जीवन अस्थायी है, कितने वर्ष ये लोग इस धरती पर रहे और अब चले गए। हम भी इस संसार में आएं है और एक दिन हम भी चले जायेंगे। उनके लिए शांति की प्रार्थना करें और धन्यवाद दें। इस प्रथा के पीछे यही विचारधारा है।
- गुरुदेव श्री श्री रवि शंकरजी के ज्ञान वार्ता से संकलित