अभ्यंग (मालिश) शरीर और मन की ऊर्जा का संतुलन बनाता है, शरीर का तापमान नियंत्रित करता है और शरीर में रक्त प्रवाह और दूसरे द्रवों के प्रवाह में सुधार करता है, इस प्रकार प्रतिदिन अभ्यंग करने से हमारा स्वास्थ्य बना रहेता है।
प्रत्येक मनुष्य को नियमित अभ्यंग आवश्यक है। हालाँकि प्रतिदिन का स्व-अभ्यंग पर्याप्त है लेकिन सभी को समय समय पर एक अच्छी अभयंग मालिश लेनी चाहिए। अभ्यंग त्वचा को मुलायम बनाता है और वात के कारण त्वचा के रूखेपन को कम कर वात को नियंत्रित करता है। इसकी लयबद्ध गति जोड़ों और मांसपेशियों की अकड़न को कम करती है और पूरे शरीर में ऊर्जा का संचार करती है। अभयंग मालिश से शरीर में रक्त परिसंचरण बढ़ता है और शरीर के सभी विषैले तत्त्व बहार निकल जाते हैं। व्यायाम करने से पहले यह मालिश करना बहुत अच्छा है।
यदि आपके शरीर का पाचन तंत्र अच्छे से काम कर रहा है तो आपकी त्वचा अपने आप कोमल व रोगहीन बन जाएगी। वैसे ही जब त्वचा की सारी अशुद्धियाँ दूर हो जाती हैं तब हमारा पाचन तंत्र ठीक हो जाता है।
सरसों का तेल य त्वचा के लिए श्री श्री आयुर्वेद का तेल प्रयोग में ला सकते हैं, विशेष आवश्यकताओं के लिए भिन्न तेल चुने जा सकते हैं।
वात प्रकृति वालों के लिए
वात प्रकृति के लोगों को पित्त और कफ प्रकृति वालों से अभ्यंग की अधिक आवश्यकता होती है क्योंकि स्पर्श की संवेदना वात प्रकृति के लोगो में अधिक होती है। वात प्रकृति के लोग ज्यादातर शुष्क और ठंडी प्रकृति के होते हैं; इसलिए प्रतिदिन सुबह तेल से अभ्यंग करना चाहिए या फिर शाम को गर्म पानी से स्नान से पूर्व गर्म तेल से शरीर की मालिश करनी चाहिए। वात प्रकृति के लिए तिल का तेल अच्छा रहता है। वात असंतुलन के समय धन्वन्तरम तेल, महानारायण तेल, दशमूल तेल, बल तेल भी प्रयोग में लाये जा सकते हैं। हाथों की गति धीमी या मध्यम पर लयबद्ध होनी चाहिए और जो शरीर के बालों की दिशा में हो और तेल की अधिकतम मात्रा शरीर पर रहे।
पित्त प्रकृति वालों के लिए
पित्त प्रकृति के लोगों की प्रकृति गरम और तैलीय होती है और इनकी त्वचा अधिक संवेदनशील होती है। पित्त प्रकृति के लोगों के लिए शीतल तेलों का प्रयोग अधिक उपयोगी होता है। नारियल तेल, सूरजमुखी का तेल, चन्दन का तेल का प्रयोग कर सकते हैं। पित्त असंतुलन में चंदनादि तेल, जतादि तेल, इलादी तेल का अभ्यंग के लिए प्रयोग कर सकते हैं। हाथों की गति धीमी या मध्यम (व्यक्तिगत चुनाव के अनुसार) होनी चाहिए और जो शरीर के बालों की दिशा में और विपरीत दिशा में बदलते हुए हो।
कफ प्रकृति वालों के लिए
कफ प्रकृति के लोगो की प्रकृति ठंडी और तैलीय होती है। तेल के स्थान पर आयुर्वेदिक पाउडर प्रयोग कर सकते हैं। सरसों या तिल का तेल सबसे अच्छा रहता है। कफ के असंतुलन की विशेष स्थिति में विल्व और दशमूल का तेल उपयोग में लाया जा सकता है। हाथो की गति तेज और गहरी होनी चाहिए, शरीर के बालों की दिशा के विपरीत। कम के कम तेल शरीर पर प्रयोग करें।
प्रतिदिन अभ्यंग के लाभ
- वृद्धावस्था रोकता है
- नेत्र ज्योति में सुधार
- शरीर का पोषण
- आयु बढ़ती है
- अच्छी नींद आती है
- त्वचा में निखार
- मांसपेशियों का विकास
- थकावट दूर होती है
- वात संतुलन होता है
- शारीरिक व् मानसिक आघात सहने की क्षमता बढ़ती है
ध्यान देने योग्य बातें
- स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए नियमित अभ्यंग करना चाहिए।
- अभ्यंग खाने के १-२ घंटे बाद ही करें। कभी भी अधिक भूख या प्यास में अभ्यंग न करे।
- जब आप पूरे शरीर का अभ्यंग करे तो सिर को कभी न छोड़े। हमेशा सिर की चोटी से तेल लगाना आरम्भ करें।
- स्नान से पूर्व ही अभ्यंग करे।
- १०-२५ मिनट के लिए तेल को शरीर पर रहने दें। अभ्यंग के बाद तेल को शरीर पर ठंडा न होने दें। धीरे धीरे हाथ से मालिश करते रहे या कुछ शारीरिक व्यायाम करते रहे।
- अभ्यंग के बाद गर्म पानी से स्नान करें।
अभ्यंग नहीं करना चाहिए
- खांसी, बुखार, अपच, संक्रमण के समय
- त्वचा में दाने होने पर
- खाने के तुरंत बाद
- शोधन के उपरांत जैसे वमन, विरेचन, नास्य, वस्ति
- महिलाओं में मासिक धर्म के समय
अभ्यंग क्रम
- सर की चोटी
- चेहरा, कान और गर्दन
- कंधे और हाथ
- पीठ, छाती और पेट
- टांगे और पैर
- सर : सिर की चोटी पर तेल लगाए। दोनों हाथों से पूरे सिर की धीरे धीरे मजबूती से मालिश (मसाज) करे
- चेहरा : ४ बार नीचे की ओर, ४ चक्कर माथे पर, ४ चक्कर आँखों के पास, ४ बार धीरे धीरे आँखे पर, ३ चक्कर गाल, ३ बार नथुनों के नीचे, ३ बार ठोड़ी के नीचे आगे पीछे, ३ बार नाक पर ऊपर नीचे, ३ बार कनपटी और माथा आगे पीछे, ३ बार पूरा चेहरा नीचे की ओर
- कान : ७ बार कर्ण पल्लव को अच्छे से मसाज करे, कान के अंदर न जाये
- छाती : ७ बार दक्षिणावर्त और ७ बार वामावर्त मसाज करे
- पेट : ७ बार धीरे धीरे दक्षिणावर्
- उरास्थि: अंगुलाग्र से ७ बार ऊपर नीचे
- कंधे : ७ बार कन्धों पर आगे पीछे
- हाथ : ४ चक्कर कंधे के जोड़ पर, ७ बार बाजु ऊपर नीचे, ४ चक्कर कोहनी, ७ बार नीचे का हाथ ऊपर नीचे, ४ बार हथेलिया ऊपर नीचे खींचे
- पीठ: ८ बार ऊपर नीचे ऊँगली के जोड़ों से
- टांगे : हाथों की तरह
- पंजे : ७ बार ऊपर नीचे तलवे, ७ बार ऊपर नीचे एड़ियां, उँगलियों के बीच में मसाज करे और उँगलियों को खींचे
मालिश के बाद १०-२० मिनट के लिए तेल रहने दें और गरम पानी से साबुन या उबटन के साथ स्नान करें। बालों में शैम्पू कर सकते हैं।
सिर और बालों में तेल लगाएं
दोषों के संतुलन के लिए सिर की चोटी पर तेल लगाना बहुत जरूरी है।
सिर की हलकी मसाज स्नान से पूर्व और स्नान के समय न केवल बालों की बढ़त में सहयोगी है बल्कि आँखों की शक्ति बढ़ने में भी बहुत मददगार है। ये तनाव मुक्ति देकर रात्रि में गहरी नींद देता है। इससे शरीर का तापमान भी नियंत्रण में रहता है।
शीतल प्रभाव वाले तेल का प्रयोग सिर के लिए सामान्यता करते हैं जैसे नारियल तेल, तिल का तेल, जैतून का तेल, बादाम का तेल
ब्राह्मी, भृंगराज, एलो वेरा, करी लीफ, मेहंदी, आँवला, नीलिका आदि औषधियां बालों के विकास के लिए उपयोगी हैं।