संसार भर में लोग इस समय प्रकाश का पर्व “दिवाली” मनाने की तैयारी कर रहे हैं। पूर्व के सबसे बड़े त्यौहारों में से एक “दिवाली” का त्यौहार बुराई पर अच्छाई के, अंधकार पर प्रकाश के और अज्ञानता पर ज्ञान के विजय का सूचक है।

दीपक का महत्व

तेल के दीपक को प्रज्ज्वलित करने के लिए बत्ती को तेल में डुबाना पड़ता है परन्तु यदि बत्ती पूरी तरह से तेल में डूबी रहे तो यह जल कर प्रकाश नहीं दे पाएगी, इसलिए उसे थोड़ा सा बाहर निकाल के रखते हैं। हमारा जीवन भी दीपक की इसी बत्ती के सामान है, हमें भी इस संसार में रहना है फिर भी इससे अछूता रहना पड़ेगा। यदि हम संसार की भौतिकता में ही डूबे रहेंगे, तो हम अपने जीवन में सच्चा आनंद और ज्ञान नहीं ला पाएँगे। संसार में रहते हुए भी, इसके सांसारिक पक्षों में न डूबने से हम, आनंद एवं ज्ञान के द्योतक बन सकते हैं।

जीवन में ज्ञान के प्रकाश का स्मरण कराने के लिए ही “दिवाली” मनाई जाती है। “दिवाली” केवल घरों को सजाने के लिए नहीं, बल्कि जीवन के इस गूढ़ रहस्य को उजागर/संप्रेषित करने के लिए भी मनाई जाती है। हर दिल में ज्ञान और प्रेम का दीपक जलाएँ और हर एक के चेहरे पर मुस्कान की आभा लाएँ।

प्रकाश की पंक्तियाँ

“दिवाली” को दीपावली भी कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘प्रकाश की पंक्तियाँ’। जीवन में अनेक पक्ष एवं पहलू आते हैं और जीवन को पूरी तरह से अभिव्यक्त करने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम उन सब पर प्रकाश डालें। प्रकाश कि ये पंक्तियाँ हमें याद दिलाती हैं कि जीवन के हर पहलू पर ध्यान देने और ज्ञान का प्रकाश डालने की आवश्यकता है।

प्रत्येक मनुष्य में कुछ अच्छे गुण होते हैं और हमारे द्वारा प्रज्ज्वलित हर दीपक, इसी बात का प्रतीक है। कुछ लोगों में सहिष्णुता होती है, कुछ में प्रेम, शक्ति, उदारता आदि गुण होते हैं जबकि कुछ लोगों में, लोगों को जोड़ के रखने का गुण होता है। हमारे भीतर के यह छिपे हुए गुण, एक दीपक के समान है। केवल एक ही दीपक प्रज्ज्वलित कर के संतुष्ट न हों जाएँ : हजारों दीपक जलाएँ! अज्ञानता के अन्धकार को दूर करने के लिए हमें अनेक दीपक जलाने की आवश्यकता है। ज्ञान के दीपक को जला कर एवं ज्ञान अर्जित कर के हम अपने अस्तित्व के सभी पहलुओं को जागृत कर देते हैं। जब ये प्रकाशित एवं जागृत हो जाते हैं, तब ही “दिवाली” है।

दिवाली – पटाखे, मिठाई एवं उपहार

“दिवाली” में पटाखे जलाने का भी एक गूढ़ अर्थ है। जीवन में अक्सर अनेक बार हम भावनाओं, निराशा एवं क्रोघ से भरे पड़े होते हैं, पटाखों की तरह फटने को तैयार। जब हम अपनी भावनाओं, लालसाओं/ऐषणाओं, विद्वेष को दबाते रहते हैं तब यह एक विस्फोट बिंदु तक पहुच जाते हैं। पटाखों को जलाना /विस्फोट करना, दमित भावनाओं को मुक्त करने के लिए हमारे पूर्वजों द्वारा बनाया गया एक मनोवैज्ञानिक अभ्यास है। जब हम बाहरी दुनिया में एक विस्फोट देखते हैं तो अपने भीतर भी एक इसी प्रकार की, समान संवेदना महसूस करते हैं। विस्फोट के साथ ही बहुत सा प्रकाश फैल जाता है। जब हम अपनी इन भावनाओं से मुक्त होते हैं तो गहन शांति का उदय होता है।

“दिवाली” के दौरान एक और परंपरा है, मिठाइयों और उपहारों का आदान प्रदान। एक दूसरे को मीठा और उपहार देने का अर्थ है, भूतकाल की सभी खटास को मिटा कर आने वाले समय के लिए मित्रता को नवजीवन प्रदान करना।

ज्ञान और प्रकाश

कोई भी उत्सव सेवा भावना के बिना अधूरा है। ईश्वर से हमें जो भी मिला है, वह हमें दूसरों के साथ भी बाँटना चाहिए क्योंकि जो बाँटना है, वह हमें भी तो कहीं से मिला ही है और यही सच्चा उत्सव है। आनंद एवं ज्ञान को फैलाना ही चाहिए और ये तभी हो सकता है, जब लोग ज्ञान में साथ आएँ।

“दिवाली” का अर्थ है वर्तमान क्षण में रहना, अतः भूतकाल के पश्चाताप और भविष्य की चिंताओं को छोड़ कर इस वर्तमान क्षण में रहें। यही समय है कि हम साल भर की आपसी कलह और नकारात्मकताओं को भूल जाएँ। यही समय है कि जो ज्ञान हमने प्राप्त किया है उस पर प्रकाश डाला जाए और एक नई शुरुआत की जाए। जब सच्चे ज्ञान का उदय होता है, तो उत्सव को और भी बल मिलता है।

अध्यात्मिक ज्ञान और दिवाली

आत्मा का स्वाभाव है उत्सव। प्राचीन काल में साधु-संत हर उत्सव में पवित्रता का समावेश कर देते थे ताकि विभिन्न क्रिया-कलापों की भागदौड़ में हम अपनी एकाग्रता न खो दें। रीति रिवाज एवं धार्मिक अनुष्ठान ईश्वर के प्रति कृतज्ञता या आभार का प्रतीक ही तो हैं। यह हमारे उत्सव में गहराई लाते हैं। “दिवाली” में परंपरा है कि हमने जितनी भी धन संपदा कमाई है उसे अपने सामने रख कर प्रचुरता (तृप्ति) का अनुभव करें। जब हम अभाव का अनुभव करते हैं तो अभाव बढ़ता है, परन्तु जब हम अपना ध्यान प्रचुरता पर रखते हैं तो प्रचुरता बढ़ती है। चाणक्य ने अर्थशास्त्र में कहा है, “धर्मस्य मूलं अर्थः” अर्थात सम्पन्नता धर्म का आधार होती है।

जिन लोगों को अध्यात्मिक ज्ञान नहीं है, उनके लिए “दिवाली” वर्ष में केवल एक बार आती है, परन्तु ज्ञानियों के लिए हर दिन और हर क्षण “दिवाली” है। हर जगह ज्ञान की आवश्यकता होती है। यहाँ तक कि यदि हमारे परिवार का एक भी सदस्य दुःख के तिमिर में डूबा हो तो हम प्रसन्न नहीं रह सकते। हमें अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य के जीवन में, और फिर इसके आगे समाज के हर सदस्य के जीवन में, और फिर इस पृथ्वी के हर व्यक्ति के जीवन में, ज्ञान का प्रकाश फैलाने की आवश्यकता है। जब सच्चे ज्ञान का उदय होता है, तो उत्सव को और भी बल मिलता है।

यजुर्वेद में कहा गया है, “तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु” – “हमारे इस मन से सद अर्थात मंगलकारी इच्छा प्रकट हो।” यह “दिवाली” ज्ञान के साथ मनाएँ और मानवता की सेवा करने का संकल्प लें। अपने ह्रदय में प्रेम का; घर में प्रचुरता/तृप्ति का दीपक जलाएँ। इसी प्रकार दूसरों की सेवा के लिए करुणा का; अज्ञानता को दूर करने के लिए ज्ञान का और ईश्वर द्वारा हमें प्रदत्त उस प्रचुरता के लिए कृतज्ञता का दीपक जलाएँ। 

गुरुदेव श्री श्री रविशंकर जी की ज्ञान वार्ता से संकलित

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