पुरातन काल से यह मान्यता चली आ रही है कि चरित्र की सुदृढ़ता अत्यावश्यक है। षट् संपत्ति छ: प्रकार के गुण हैं, जिनका हमारे चरित्र को महान बनाने में बहुत गहरा योगदान है – इसलिए इनको धन या संपत्ति कहा गया है। इस लेख में गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी इन छ: गुणों  का वर्णन कर रहे हैं।

1. शम

शम का अर्थ है, मन में गहरी शांति का होना। शांति शब्द का उद्गम “शम” शब्द से ही हुआ है। यह एक अतिमहत्वपूर्ण गुण है। यह ऐसा धन है, जिसे धारण करना हर एक व्यक्ति का लक्ष्य होना चाहिए।

जब हमारा मन शांत नहीं होता है, तो हमारी बुद्धि भी मंद और धुंधली हो जाती है और सामने वाला क्या कह रहा है, उसे हम सुन और समझ नहीं पाते हैं। बुद्धि को तीक्ष्ण बनाने के लिए पहले अपने मन को शांत करने की आवश्यकता है।

यदि आपके सामने कोई किसी नियम को तोड़ रहा हो और उसे देख कर यदि आपको क्रोध आ जाए, तो आप स्वयं को ही दुखी कर रहे हैं। इसके बजाय अपने मन को शांत और स्थिर रखें। और यदि आवश्यक हो, तो उस व्यक्ति को उनकी गलती के विषय में अवगत कराएँ। फिर भी यदि वह सुनने समझने के लिए तैयार नहीं हैं,तो उसे अनदेखा करके आगे बढ़ जाएँ। आप क्रोधित होकर किसी को सुधार नहीं सकते। किसी भी परिस्थिति में अपने मन को शांत रखने की क्षमता ही शम है।

2. दम

दूसरी प्रकार का धन है, दम, जिसका अर्थ है कि आपकी इन्द्रियाँ आपका आदेश मानती हैं।

जब लोग किसी आरामदायक बस अथवा हवाई जहाज़ में अगली सुबह कुछ आवश्यक कार्य करने के उद्देश्य से रात्रि में यात्रा कर रहे होते हैं, तो ऐसा बहुत बार होता है कि उस बस अथवा जहाज़ में कोई फिल्म चल रही होती है। उस समय यद्यपि वे चाहते हैं कि उन्हें सोना चाहिए, फिर भी वे उस फिल्म को ही देखने में लगे रहते हैं।
और फिर एक ऐसा क्षण आता है, जब वे स्वयं से कहते हैं, “ओह, मैंने तो यह मूवी पहले भी देखी हुई है। यह वही बकवास फ़िल्म है। इसमें दोबारा देखने वाला है भी क्या?”  फिर भी आँखें कहती हैं, “नहीं, मुझे यह देखना है कि क्या चल रहा है।” आपकी अपनी आँखें ही आपका समर्थन नहीं करती। आपकी बुद्धि कुछ कह रही होती है, किंतु आपकी आँखें उसकी अवज्ञा करती हैं और कुछ और करने लगती हैं।
दम होने का अर्थ यह है कि आपके मन और इन्द्रियों के बीच सम्पूर्ण तालमेल है, वे समरसता में हैं।

3. तितिक्षा

तितिक्षा का अर्थ है, सहनशीलता। इसका अर्थ है कि जो चीज आपकी पसंद अनुसार नहीं है, उसे भी सहन करने की क्षमता। अब ऐसा तो हो नहीं सकता कि हर चीज आपकी रुचि के अनुसार ही घटित हो। जब कभी भी कुछ चीजें आपकी अपेक्षा अनुसार नहीं होतीं और आप अपनी मानसिक शांति और सुध बुध खो देते हैं, तो इसका अर्थ यही है कि आपमें तितिक्षा की कमी है।

तितिक्षा होने का अर्थ ही है धैर्यवान और सहनशील होना। जीवन में अप्रिय घटनाएँ होने पर भी संतुलन बनाए रखना और सहनशील बने  रहना, यह इस बात का संकेत है कि आपमें तितिक्षा है।

मान लो कोई व्यक्ति आपको बहुत अप्रिय है। यदि आपमें तितिक्षा की कमी होगी, तो यह बात आपके मन को झँझोड़ देगी और आपको असंतुलित कर देगी। तितिक्षा के साथ आप अपना संतुलन बनाए रखते हुए आगे बढ़ जाएँगे।

4. श्रद्धा

श्रद्धा का अर्थ है,उस पर विश्वास करना, उसकी आराधना करना, जिसे आप पूरी तरह से जानते भी नहीं हैं। आप उस चीज को पूर्णतः जानते नहीं हैं, फिर भी आपको लगता है कि उसमें कुछ तो अनोखा है तथा  उसके विषय में और अधिक जानने में आपकी गहरी रुचि है। जिस चीज को आप पहले से जानते हैं, उसमें आपको विश्वास करने की कोई आवश्यकता नहीं होती। विश्वास उसी चीज पर किया जाता है जिसे आप जानते नहीं हैं, परंतु फिर भी उस अज्ञात से कुछ सम्बन्ध अनुभव करते हैं।

जीवन में श्रद्धा के बिना आप एक कदम भी आगे नहीं चल सकते हैं। आपके डाक्टर आपको कोई दवा लेने को कहते हैं। आप दवा इसलिए लेते हैं क्योंकि आपको डाक्टर पर विश्वास है। यदि आपके मन में डाक्टर पर विश्वास न हो, तो आप उस दवा को छुओगे भी नहीं। इसलिए हमारा जीवन विश्वास पर ही चलता है।
आपके शहर या राज्य का विद्युत बोर्ड आपको विद्युत आपूर्ति इस विश्वास के साथ करता है कि महीने के अंत में आप बिल का भुगतान कर देंगे। अपने कार्य का प्रतिफल प्राप्त होने से पहले ही कदम आगे बढ़ा देने को ही श्रद्धा कहते हैं।

5. उपरति

उपरति का अर्थ है, प्रत्येक कार्य, चाहे वह कितना भी छोटा हो, उसे करने में आनंद लेना। इसका अर्थ है कि आप जो कुछ भी करते हैं,  उसे जोश और उत्साह की भावना से करते हैं।
जब उपरति का अभाव हो, तो निराशा की भावना घर कर लेती है, कोई रुचि या उत्साह नहीं होता। उपरति की कमी के रहते आपको कोई भी कार्य करना अच्छा नहीं लगता। जिस व्यक्ति में कोई उत्साह, कोई जोश न हो, वह कुछ नया या सृजनात्मक कार्य कर ही नहीं सकता। उपरति का अर्थ है, हर काम को पूरे दिल से, आनंदपूर्वक और उसमें पूरी रुचि लगा कर करना।

6. समाधान

समाधान का अर्थ है संतोष। यह भी एक उपहार है – एक सच्ची दौलत। एक संतोषी व्यक्ति में उसकी भीतरी गहराई से आनंद का फव्वारा प्रस्फुटित होता हुआ प्रतीत होता है। उस व्यक्ति में से कुछ विशेष सकारात्मक तरंगें निकलती रहती हैं, जो हर कोई पाना चाहता है।

अधीर और अशांत व्यक्ति कभी कोई अविष्कार कर ही नहीं सकता। न्यूटन पूरा जीवन संघर्ष ही करता रहा। परंतु जब वह घोर निराशा में दब गया, जब उसका दिमाग सोच सोच कर और गणना कर कर के थक गया, तो वह एक पेड़ के नीचे विश्राम करने के लिए बैठ गया। और जब उसे कुछ पल का विश्राम मिला, उसके सामने एक सेब पेड़ से गिरा और उसने गुरुत्वाकर्षण की खोज कर दी।

जब आप इस पृथ्वी पर होने वाले प्रत्येक अविष्कार पर गहरी समझ से दृष्टि डालेंगे, तो पाएँगे कि यह तभी संभव हुए हैं, जब वे लोग अपनी बेचैनी, निराशा और खिन्नता से उबरे हैं। ऐसा तभी संभव हुआ, जब वे बिल्कुल टूटने के कगार पर पहुंच कर विश्राम की स्थिति में गए हैं। गहन विश्राम और संतोष के उन पलों में ही सृजनात्मकता उनके पास आई है।

संतोष का अर्थ आलस्य नहीं है। संतोष को आलस्य समझने की भूल न करें। संतोष सृजनात्मक गुण है और हमारे भीतर सृजनात्मकता तभी खिलती है, जब समाधान का गुण हमारे पास है।

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गुरुदेव का कालातीत ज्ञान

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इस प्रकार यह छ: प्रकार के धन हैं। इनमें से हर एक को संपत्ति कहा गया है क्योंकि किसी भी अन्य धन या संपत्ति की भाँति उनमें से कुछ तो हमारे जीवन में सुगमता से प्राप्त हो जाती हैं, जबकि कुछ अन्य को प्राप्त करने के लिए हमें प्रयास करने पड़ते हैं। कुछ संपत्तियों को बनाए रखना आवश्यक है, अन्यथा वे खो जाएँगी।

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