भगवान शिव ने अपने आदिनाथ रूप में कई योगिक मूल और साधना को प्रकाशित किया। हठयोग प्रदीपिका, योगी का एक पौराणिक हिंदू विषय, में भगवान शिव कहते हैं कि भिन्न भिन्न मुद्राओं के अभ्यास से साधक को आठ तरह की देवीय संपत्ति प्रदान होती है, बुढ़ापे में विलंब मृत्यु पर विजय भी। यह मुद्रा सभी सिद्धों द्वारा बताई जाती हैं और इन्हें लंबे समय तक गुप्त रखा गया था।
प्राण मुद्रा – एक प्रकार की योग मुद्रा
इन मुद्राओ में से, योग मुद्राओं का नाम इसलिए ही नहीं रखा गया क्योंकि इनका संबंध शारीरिक योग क्रिया करने से है। लेकिन इन मुद्राओं ने पूर्ण रूप से योग सूत्रों के मूल को अनुसरण किया और जो भी इनका अभ्यास करता है उनके लिए हर तरीके से उपयोगी हैं। सभी योग मुद्राओ में से सबसे अधिक प्रमुख हैं प्राण मुद्रा।
प्राण को हिंदी में जीवन कहते हैं। किंतु संस्कृत में यह नाम शरीर में निहित प्राण ऊर्जा को दिया गया है। हठयोग के अनुसार, पाँच ऊर्जा, जो जीवन को संतुलन करने के लिए आवश्यक हैं, वे हैं अपान, व्यान, अमान, उदान और प्राण। इनमें से, प्राण मुद्रा का विशेष महत्व है और प्राण मुद्रा के अभ्यास से आप सरलता से अपने भीतर प्राण ऊर्जा को सक्रिय कर सकते हैं।
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पाँच उंगलियाँ पाँच तत्व
मुद्रा सहज ही ऊर्जा केन्द्रों को शरीर में संयुक्त करती हैं। प्राण मुद्रा के अभ्यास मे केवल तीन उँगलियाँ उपयोग होती हैं- अंगूठा, कनिष्ठा व अनामिका। यह सामान्य तौर पर ज्ञात नहीं है कि हमारी उँगलियाँ पांच तत्वों को दर्शाती हैं जिससे यह सृष्टि बनी है।
इन पाँच उंगलियों में से, हमारा अंगूठा अग्नि (आग), कनिष्ठ ऊँगली जल (पानी) को दर्शाती है और अनामिका उंगली पृथ्वी (भूमि) को दर्शाती है।
इन तीन तत्वों के असंतुलन से वात दोष शरीर में असंतुलित हो जाता। प्राण मुद्रा के नियमित अभ्यास से वात दोष का असंतुलन दूर हो जाता है और उसके प्रभाव आप अनुभव करते हैं।
प्राण मुद्रा कैसे करें?
प्राण मुद्रा को करना सहज हैं। एक साथ उंगलियों को सिरे से जोड़ लें, कनिष्ठा, अनामिका और अंगूठे को बाकी दो उंगलियों को ढीला और जोड़ से दूर कर दें। मुद्रा को अभ्यास करते समय आप घर के एक कोने में सुखद अवस्था में बैठ जाएँ। अपने दोनों हाथों को घुटनों पर रख दें और उंगलियों को मोड़कर मुद्रा करें। इसके अभ्यास के समय, अपनी श्वास की गति पर हल्का ध्यान ले जाएँ और स्वीकार करें इस ऊर्जा के सुखदाई प्रभाव को और शरीर व मन को शांत होने दें।
प्राण मुद्रा करने का सही समय क्या है?
सबसे अच्छी बात यह है कि मुद्रा को कहीं भी और किसी भी समय पर किया जा सकता है – चाहे आप घर पर है, ऑफ़िस में ब्रेक पर हैं या फिर ट्रैवेलिंग पर। हालांकि, ऐसे कुछ उपाय हैं जिन्हें करने से आप मुद्रा अभ्यास के अनुभवों में वृद्धि कर सकते हैं।
- प्राण मुद्रा करने का सबसे सही समय सुबह है, खाली पेट। अगर आप दिन मैं किसी भी समय कर रहे हैं तो यह सुनिश्चित करें कि आप खाना खाने के 1 घंटे बाद करें।
- प्रण मुद्रा का अभ्यास सुखद अनुभव है। यद्यपि इसका स्फूर्तिदायक स्वरूप अधिक बेहतर काम करता है, जब मन पहले से शांत हो। इसलिए, ध्यान करना और तत्पश्चात मुद्रा प्राणायाम का अभ्यास उच्चतम परिणाम देता है। आप गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी द्वारा निर्देशित ध्यान की सूची प्राप्त कर सकते हैं जो कि प्राण मुद्रा के साथ की जा सकती हैं।
- अगर आपके पास ध्यान करने का समय नहीं है, तो मुद्रा प्रारंभ करने से पूर्व शरीर व मन को शांत करने के लिए कुछ गहरी साँसें लें।
- प्राण मुद्रा दिन में तीन बार करनी चाहिए, एक बार में 10 मिनट। अगर बार बार प्रयास करना संभव न हो, तब एक बार में 20-30 मिनट का भी कर सकते हैं।
- प्राण मुद्रा अभ्यास करते समय आप कोई मंत्र भी लगा सकते हैं, जिसे आप आरामदायक समझते हैं। यद्यपि वह ॐ मंत्र, ॐ नमः शिवाय मंत्र, राम मंत्र या कोई और मंत्र जिसके प्रति आपका झुकाव है, हो सकता है।
- मुद्रा अभ्यास करने के लिए कोई आसन निर्धारित नहीं किया है। आप सुखासन, वज्रासन या फिर पद्मासन में कर सकते हैं।
- मुद्रा अभ्यास की सफलता दो बातों पर निर्धारित है- आपके मन की शांति और शवास की गति में शिथिलता। इसलिए ध्यान के बाद इसे अभ्यास करने के श्रेष्ठ परिणाम है।
प्राण मुद्रा करने के लाभ
तीन तत्व जो प्राण मुद्रा के साथ जुड़े हुए हैं वे रीढ़ की हड्डी के मूल से भी जुड़े हुए हैं। चक्रों के अनुसार प्राण मुद्रा सीधे तौर पर मूलाधार (मूल चक्र या रूट चक्र) पर प्रभाव डालती है। यह मूल चक्र को सक्रिय कर देती है, शरीर में गर्माहट ऊर्जा उत्पन्न करती है। क्योंकि चक्रों का स्वभाव है, इसलिए प्राण मुद्रा के अभ्यास से कई लाभ इससे जुड़े हैं। हम सबसे पहले शरीर पर होने वाले विशेष लाभ सम्मिलित करेंगे और फिर मुद्रा प्राणायाम की अभ्यास के बाद अन्य सामान्य सकारात्मक अनुभवों की सूची बना लेंगे।
1. सुगम स्वास्थ्यप्राद (हीलिंग)
हमारे शास्त्र कहते हैं कि हमारे शरीर का बीमारी से ग्रसित होने का पहला लक्षण, हमारी ऊर्जा या प्राण का स्तर कम हो जाना है। यह एक लक्षण है और कभी शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति को कम करने का कारण है जो कि शरीर में बीमारियाँ आमंत्रित करता है। प्राण मुद्रा के अभ्यास से हमारे शरीर में प्राण की वृद्धि होती है, इस प्रकार शरीर को स्वयं ही सवस्थ होने का अवसर मिलता है। तो, किसी भी समय आपको लगे आपकी ऊर्जा कम हो रही है, बस इसका कुछ देर अभ्यास कर लें और आप महसूस करेंगे प्राण फिर से ऊपर की ओर बढ़ते हैं।
हालांकि मुद्रा के नित्य उचित अभ्यास से आप शरीर में अधिक गहरे बदलाव दिखते है, अन्य बीमारियाँ अगर कोई हैं तो वह छूट जाती हैं। कुछ ऐसी बीमारियाँ जिन्हें प्राण मुद्रा ठीक करने में सहायक हो सकती है, निम्नलिखित हैं:
- उच्च रक्तचाप, जोड़ों की अस्थिरता, अलसर
- उच्च संवेदनशीलता और पेट व गले में जलन
- त्वचा पर रैश, त्वचा में प्रौढ़ता, पेट में अम्ल रोग (एसिडिटी)
- मानसिक तनाव और थकान
- अधीरता, चिड़चिड़ापन, निराशा में वृद्धि
यह सब शरीर व मन के विषयों से राहत मिल सकती है प्राण मुद्रा के अभ्यास से। आप सहजता से रोग से ऊर्जा, आराम और नवीकृत हो शांति की भावना प्राप्त कर सकते हैं। सहज ही मुद्रा के अभ्यास करने का उद्देश्य रखें।
2. आँखों के लाभ
मुद्रा प्राण अभ्यास करने वालों ने यह दर्ज किया है कि प्रतिदिन अभ्यास से उनकी आँखों की रौशनी संबंधित समस्या कम हो गई है और यहाँ तक कि कई बार ठीक हो जाती है। आप भी अपने चश्मे का नंबर कम कर सकते हैं और इस मुद्रा के लगातार अभ्यास से साफ दृष्टि प्राप्त करें। जिनकी आँखों की दृष्टि कमजोर और अच्छा परिणाम देखना चाहते हैं तो कम से कम 15-20 मिनट प्रतिदिन करें। मुद्रा कर के मनचाहे लाभ प्राप्त करने के बाद भी यह अभ्यास करते रहना चाहिए।
3. अन्य सामान्य लाभ
- हमारा शरीर कभी मरोड़ व जंगाह में दर्द का अनुभव करता है क्योंकि उन जगहों में रक्त का संचार कम हो जाता है और प्रवाह को रोक देता है। इस मुद्रा के अभ्यास से रक्त के दोष दूर होते हैं, रक्त प्रवाह व प्रचुरता बेहतर होता है और अति उत्कृष्ट स्वास्थ्यप्राद लाभ प्रदान होते हैं।
- प्राण मुद्रा आपके शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली को बेहतर करती है और यह आपके मन को स्थिर करती है। कई बार, कुछ मनोदैहिक मुद्दे जैसे अधीरता, चिड़चिड़ापन, कमजोरी और मानसिक थकान शरीर में कई तरह की समस्या पैदा करती हैं। प्राण मुद्रा इन मुद्दों को सकारात्मकता जोश, आनंद, हर्ष व खुशी में बदल देती है।
- मुद्रा से मन पर आरामदायक व स्फूर्तिदायक प्रभाव पड़ता है जिससे जागरूकता, एकाग्रता और उत्पादकता बढ़ती है, जिससे आपको कोई भी कार्य करने में सहायता मिलती है।
- मुद्रा के आरामदायक प्रभाव से घबराहट कम होती है और आत्मविश्वास बढ़ाने में भी सहायता होती है।
- प्राण मुद्रा मन में अधिक संतुलन में स्थिरता लाती है। किसी भी निद्रा व भोजन संबंधित विकार को जिससे आप ग्रसित थे ठीक करती है।
- इस मुद्रा के अभ्यास से कोई भी आवश्यक विटामिन (ऐ-के) से हुई कमियाँ कम या कभी कभी समाप्त हो जाती हैं।
जैसा कि आप देख सकते हैं, प्राण मुद्रा करने के लाभ और जिस सरलता से आप यह अभ्यास कर सकते हैं, यह दर्शाता है कि यह श्रेष्ठ अभ्यास है जो आप अपने दिनचर्या में जोड़ सकते हैं। ऐसे अन्य आसनों के बारे में जानकारी के लिए, जो आप इसके साथ जोड़ सकते हैं, आर्ट ऑफ लिविंग की ऐप से प्राप्त की जा सकती है।












