जल संरक्षण की दिशा में अनूठा कदम, संरक्षित किया गया पानी खेतों तक पहुंचा रहे सुभाष

3rd of सितम्बर 2019

 

मैंने देखा है कि करीब 30 साल में हमारे गांव में मानसून के दौरान कभी अच्छी बारिश नहीं हुई है, साथ ही जल संरक्षण न हो पाने के चलते सारा पानी बह जाता था। गांव के बूढ़े लोग बताते हैं कि गांव की मिट्टी ज्वार और गन्ना जैसी फसलों के लिए आदर्श मानी जाती थी, लेकिन अच्छी मिट्टी होने के बाद भी पानी के अभाव में लोग खेती नहीं कर पा रहे थे। 

मैं जयगांव का रहने वाला हूं, जो महाराष्ट्र के सतारा जिले में पड़ता है। मैं केवल चार साल का था, जब पापा का निधन हुआ। बचपन से ही मैंने अपने गांव के लोगों को सूखे से संघर्ष करते हुए देखा है। धीरे-धीरे उम्र के साथ जिम्मेदारियां बढ़ीं, तो मैं और मेरे कई साथी गांव छोड़कर रोजगार के सिलसिले में मुंबई चले गए। चूंकि मैंने गांव में वाहन चलाना सीखा था, तो यहां आकर मुझे काम ढूंढ़ने में ज्यादा परेशानी नहीं उठानी पड़ी। मैंने ट्रैवल एजेंसियों में कारों, बसों में ड्राइवर के तौर पर काम करना शुरू किया। 

मुझे काम में मजा आ रहा था, साथ ही बचत भी ठीक-ठाक हो रही थी। धीरे-धीरे मैं मुंबई में जम गया। इस दौरान मुझे एक दिन आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम 'खुशी' में भाग लेने का अवसर मिला। मैं वहां कई ऐसे लोगों से मिला, जो समाज में बदलाव लाने के प्रयास में लगे थे। वहीं से मेरे विचार बदल गए। मुझे लगा कि आजकल युवा बड़े शहरों में रहने लगे हैं, मगर उनके गांवों की स्थिति क्या होती होगी। वहां की स्थितियों में तो और अधिक असंतुलन आ जाता होगा। 

 

Courtesy: Amar Ujala