आयुर्वेद

आयुर्वेदिक शुद्धिकरण आहार | Ayurvedic Detoxification Diet in Hindi

यह एक विशेष प्रकार का आहार है जो हमारे शरीर में संचित विषाक्त द्रव्यों को बाहर निकाल कर उसे शुद्ध करता है। यह सुपाच्य होता है। इसके सेवन से हमारे पाचन तन्त्र को विश्राम मिलता है और वह विजातीय द्रव्यों के पाचन और शरीर से उसके निष्कासन में सक्रिय हो जाता है। यह आहार हमारे पूरे शरीर को विजातीय द्रव्यों से मुक्त करने में सहायक है।

शरीर को इन विषाक्त द्रव्यों (आंव या टोक्सिन) से मुक्त करने की आवश्यकता क्यों पड़ती है?। Why is it essential to remove toxins from the body?। शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालना क्यों आवश्यक है?

क्योंकि हमारे वातावरण में विभिन्न प्रकार के विषाक्त पदार्थ उपस्थित रहते हैं। विभिन्न प्रकार के भोजन भी हमारे शरीर में इस विष को उत्पन्न करते है। हम हमेशा स्वस्थ जीवन चर्या नहीं अपना पाते और स्वास्थ्य के अनुकूल भोजन नहीं कर पाते। इसके अतिरिक्त वातावरण में उपस्थित विकिरण तथा मानसिक तनाव का भी शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव होता है। साधारणतया हमारा शरीर तन्त्र इस विष संचयन को निष्काषित करने में सक्षम होता है और यह एक दैनिक प्रक्रिया के रूप में स्वत: निष्काषित होता रहता है। पर कभी कभी यह ठीक से हो नहीं पाता या हम इस शुद्धिकरण की प्रक्रिया के प्रति उदासीन हो जाते हैं। अगर हम अपने शरीर की जैविक घड़ी के अनुसार चले और प्राकृतिक जीवन जियें तो यह विजातीय द्रव्य निष्काषित होता रहता है। अगर हम पर्याप्त मात्रा में पानी पियें और योग व व्यायाम करते रहे तो शरीर से मल व पसीना निकलता है जो शरीर के शुद्धिकरण में सहायक होता है। आयुर्वेद की अवधारणा कुछ अलग है। जैसे अगर आप अच्छी मात्रा में भोजन करते है तो यह वात के शमन में सहायक होता है।

 

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इस प्रक्रिया को कितने अन्तराल में दुहराते रहना चाहिए?। How often can you detox your body? ।  कितनी बार आप अपने शरीर detox कर सकते हैं?

यह आपके शरीर में संचित विषाक्त पदार्थो की मात्रा पर निर्भर करता है। साधारणतया इसे हर तीन महीने बाद एक बार करना चाहिए। कुछ लोगो के लिए इसे वर्ष में एक बार करना भी पर्याप्त होता है।

क्या यह विभिन्न प्रकृति (जैसे वात, पित और कफ) के लिए अलग अलग होता है? इसके सेवन को तय करने का क्या आधार है?

शुद्धिकरण आहार दो प्रकार का होता है। इसमें पहला आहार साधारणतया सभी लोगों के लिए लाभप्रद होता है तथा इसे हर व्यक्ति ले सकता है। दूसरा आहार-लोगों के शरीर में उपस्थित विजातीय द्रव्य ( जिसे आयुर्वेद में “आंव” कहा जाता है). की मात्रा व शरीर के किस अंग में उसका जमाव व प्रभाव है, इस के आधार पर तय किया जाता है। इसके लिए व्यक्ति के शरीर की प्रकृति ( वात-आंव, कफ-आंव व पित-आंव) को भी ध्यान में रखा जाता है। यह जानने के लिए कि शरीर में किस प्रकार का आंव संचित है तथा उसकी क्या मात्रा है, एक विशेषज्ञ (आयुर्वेदिक डॉक्टर ) नाड़ी परीक्षा तथा अन्य तरीकों से जांच करता है।

इसमें किस प्रकार का भोजन लेना होता है?।  What kind of food can one eat during detox process।  डिटॉक्स प्रक्रिया के दौरान किस तरह का खाना खा सकता है

जीर्ण रोगों से ग्रस्त लोगों के लिए एक साधारण भोजन शैली से लाभ नहीं होता। उनके लिए विशेषज्ञ द्वारा एक विशिष्ट आहार तय किया जाता है। विषाक्त पदार्थो के निष्कासन के लिए एक उपचार पद्धति है जिसे पंचकर्म कहते है। इस पद्धति में भी विभिन्न आहारों को सम्मिलित किया जाता है पर इसमें आहार से अधिक संचित मल के निष्कासन पर जोर दिया जाता है। मधुमेह रोगियों के लिए उचित है कि वे किसी विशेष आहार प्रणाली को अपनाने से पहले अपने डाक्टर से परामर्श अवश्य करे व उनके द्वारा सुझायी गयी आहार तालिका को अपनाये।

यहाँ हम जो आहार बता रहे है वह बहुत ही सुरक्षित है एवं उसे कोई भी व्यक्ति अपना सकता है। अपनी व्यक्तिगत शारीरिक दशा के अनुसार आप इसमें थोड़ा परिवर्तन भी कर सकते है।

इस आहार में पहले तीन दिन फल, फलों का रस, तरकारी व तरकारी के रस का सेवन करना चाहिए. ये सभी कच्चे होते है (पकाने की आवश्यकता नहीं)। ये हलके व सुपाच्य होते हैं तथा विजातीय द्रव्यों के निष्कासन में सहायक है। तीन दिन के पश्चात फलों, तरकारियों व इनके रसो के साथ आप धीरे धीरे पक्वाहार पर आते है। इसमें आप सूप, मूंग दाल का सूप तथा दाल के सेवन से शुरू करे। इसके साथ साथ खिचड़ी भी सम्मिलित कर सकते है। यह १० दिन के लिए एक संतुलित आहार तालिका है जिसे कोई भी व्यक्ति अपना सकता है।

मधुमेंह के रोगी फलों के स्थान पर सिर्फ तरकारियाँ व तरकारी के रस का सेवन करें, तथा अपने डाक्टर के परामर्श से कुछ अन्य भोज्य पदार्थ भी ले सकते है। अपने शरीर की आवश्यकताओं को आप बेहतर समझते हैं अत: अगर आपको प्रत्येक ३ घंटे के बाद कुछ खाने की आवश्यता पड़े तो आप उस हिसाब से अपने आहार को व्यवस्थित कर सकते हैं।

दूसरी प्रकार की आहार तालिका पूरी तरह से व्यक्तिगत होती है जिसके लिए किसी योग्य आहार विशेषज्ञ से परामर्श कर तय किया जाता है।

इस आहार को कितने समय तक तथा कितने अन्तराल में पुन: अपनाना चाहिए.

इसे प्रत्येक तीन महीने के बाद १० दिन के लिए लिया जाना चाहिए। अर्थात एक वर्ष में चार बार हम इसे प्रत्येक ऋतु परिवर्तन के दौरान ले सकते है। ऋतु परिवर्तन के समय हमारे शरीर में कई परिवर्तन होते है। भोजन में भी कुछ बदलाव होता है। इस समय शरीर में विषाक्त तत्वों के संचयन की सम्भावना अधिक होती है।

इस आहार के सेवन के बाद क्या हम पुन: अपनी पारम्परिक भोजन शैली पर आ सकते हैं?

बेहतर है कि हम धीरे धीरे अपनी पुरानी भोजन शैली पर लौट आयें। पर साथ ही यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि हम सदैव स्वास्थ्य-वर्धक भोज्य पदार्थो का सेवन करे। हमारा शरीर कई प्रकार के भोजन को पचा नहीं पाता है। अपने आहार का चयन करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखे कि वह स्थानीय उपज हो, प्राकृतिक हो, अच्छी तरह से पका हो, ताज़ा हो और रसायन मुक्त हो। अगर हम इन बातों को ध्यान में रख कर भोजन लेते है तो हमारा स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। आज कल लोग इस तरह के आहार को अपना रहे हैं। भारत एक ऐसा देश है जिसमे साल भर ताज़ा भोजन उपलब्ध है। हमे डिब्बा बंद भोजन खरीदने की आवश्यकता नहीं होती। इसके विपरीत अनेक देशो को भोजन आयात करना होता है।

इस प्रकार के भोजन को अपनाने से क्या क्या लाभ हैं?

आपकी पाचन शक्ति में सुधार होता है। नींद अच्छी आती है। त्वचा साफ़ सुन्दर और स्निग्ध हो जाती है। शरीर में ऊर्जा का स्तर बढ़ जाता है।

जीर्ण रोगियों में में कई बार एक ऐसी अवस्था देखी गयी है जिसमें शरीर उपचार से लाभान्वित नहीं होता। ऐसी स्थिति में आहार चिकित्सा करते समय सावधानी बरतनी चाहिए एवं विशेष निगरानी रखनी चाहिए। वैसे यह नगण्य स्थिति है। और ऐसा होने पर रोगी को पुन: उसके नियमित सामान्य आहार पर ला सकते हैं।

यह कैसे पता चले कि आपके शरीर को इस उपचार की आवश्यकता है : अगर आपको अपच की शिकायत हो, नींद ठीक से न आती हो, त्वचा रोग हो, पेट फूलता हो, कमर या जोड़ों में दर्द हो, बाल झड रहे हो या आँखों में समस्या हो तो आप डाक्टर के पास जाते हैं। डाक्टर कह सकता है की आपको कोई रोग नहीं है। फिर भी अगर आप इन समस्याओं से परेशान है तो यह एक स्पष्ट संकेत है की आपके शरीर में विषाक्त तत्व संचित हो गए है।

आयुर्वेद चिकित्सा में रोग निदान हेतु नाड़ी परीक्षा की एक अनूठी विधा प्रयोग में लाई जाती है जिससे यह पता लग जाता है कि विषाक्त पदार्थो के जमाव से शरीर के किस अंग पर उसका प्रभाव पड़ रहा है। अत: यह अति आवश्यक है कि नाड़ी परीक्षा करवाई जाये ताकि शरीर में होने वाले रोगों से बचा जा सके।

प्रश्न: आयुर्वेद को अपना कर हम कैसे स्वस्थ रहे? कृपया इस के बारे में कुछ बताइए।

स्वस्थ जीवन के लिए तीन बातें जरुरी है: भोजन, स्वस्थ जीवन शैली एवं मन की स्थिति।

भोजन:

स्वस्थ रहने के लिए भोजन की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। अत: यह आवश्यक है की हम ऋतु अनुसार हो रही स्थानीय ऊपज का अधिक प्रयोग करे, ताज़ा व रसायन मुक्त भोजन पाचनतंत्र के लिए हल्का व स्वास्थ्य के लिए उतम होता है।

स्वस्थ जीवन शैली:

प्रकृति में एक लय है। दिन का समय काम के लिए व रात्रि विश्राम के लिए है। हमारे शरीर में एक जैविक घड़ी है जो सूर्य की स्थिति का अनुसरण करती है। हमारा शरीर यह जानता है कि कब हमें काम करना चाहिए तथा कब विश्राम। दिन में हमारा शरीर पोषण प्राप्त करता है और रात्रि में विषाक्त पदार्थो के पाचन व निष्कासन में क्रियाशील रहता है। विशेष कर हमारा लीवर (यकृत) व गौल ब्लेडर (पित थैली) रात्रि में ही सफाई का काम करते हैं। अगर कोई व्यक्ति रात्रि में ठीक से नहीं सोता तो उसके शरीर से विषाक्त पदार्थों का उन्मूलन नहीं होता है। इसलिए जैविक घड़ी के अनुसार जीवन जीना आयुर्वेद शास्त्र का एक प्रमुख विषय है जिसे “दिनचर्या” कहते है।

कुछ लोग अपनी व्यावसायिक स्थितियों के कारण जैविक घड़ी के अनुसार नहीं चल पाते। वे इससे होने वाली क्षति से बचने के लिए विशेष मार्गदर्शन को अपना सकते हैं।

मन की अवस्था:

स्वस्थ जीवन शैली में व्यक्ति की मानसिक अवस्था की महत्व पूर्ण भूमिका है। जो भी सुखद या दुखद घट रहा है उस पर किसी का कोई वश नहीं चलता। पर अप्रिय घटनाओं पर आपकी प्रतिक्रिया सदैव एक जैसी नहीं होती।

जब आप शांत होते है तो आप इन घटनाओ पर क्रोधित या परेशान नहीं होते। पर अगर आप अशांत है तो आप का अपने मन पर नियंत्रण नहीं रहता। क्रोध की अवस्था में आपके शरीर का तापमान बढ़ जाता है जबकि दुःख की अवस्था में आपका तापमान गिर जाता है।

यह एक प्रमाणित सत्य है कि मन शरीर को प्रभावित करता है l मन की भिन्न भिन्न स्थितियों से शरीर में दिनभर में अनेक शारीरिक परिवर्तन होते रहते है और आप नहीं जानते की अपने मन को कैसे संभाले और इसमें उठ रही विभिन्न भावनाओं से कैसे मुक्त हो।

हम अपने शरीर और मन के साथ जन्म लेते है। शरीर के बारे में तो फिर भी हमें थोड़ा बहुत सिखाया गया है कि हम इसे कैसे स्वस्थ रखें, स्वच्छता बनाये रखे व अस्वस्थ होने पर कैसे उपचार करे। पर अपने मन के बारे में हमें उचित ज्ञान नहीं मिला। चूंकि मन का शरीर पर बहुत प्रभाव पड़ता है, हमरे लिए यह अत्यावश्यक है कि हम अपने मन को सँभालने के बारे में जाने।

योग और ध्यान मन को कुशलता से सञ्चालन का प्रशिक्षण प्रदान करते है। आज कल अधिकांश लोग समय का अभाव, ऊर्जा में कमी और काम की अधिकता की समस्या से ग्रस्त है। काम की अधिकता और समय की कमी- ये दोनों हमारे नियंत्रण में नहीं है, पर हम योग और ध्यान के द्वारा अपने ऊर्जा के स्तर में वृद्धि कर सकते है, अपनी मानसिक और भावनात्मक अवस्था को उच्चता प्रदान कर, हमतनाव व क्रोध को कम कर सकते है। इस प्रकार हम अपने जीवन को अधिक स्वस्थ व सुखकर बना सकते है।

द्वारा : डॉ निशा मनिकंठन, आर्ट ऑफ लिविंग आयुर्वेदिक विशेषज्ञ

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