तत्र निरतिशयं सर्वज्ञत्वबीजम्

चैतन्य की इस अवस्था में, ईश्वर में सब कुछ जानने का बीज है। यह बहुत महत्त्वपूर्ण है। इस चेतना में सब कुछ जानने का बीज एक विशेष तरह से है।

क्या कृष्ण को सब कुछ पता था?

यहाँ लोग भ्रमित हो जाते हैं, वे कहते हैं कि यदि भगवन कृष्ण को सब कुछ पता होता तब वह युद्ध को रोकने के लिए दुर्योधन के पास संधि प्रस्ताव ले कर क्यों जाते, जब उन्हें पता ही था कि युद्ध होना ही है।

कृष्ण कभी भी भविष्य को लेकर सही उत्तर देते हुए नहीं दिखते हैं, उन्होंने कहीं भी नहीं कहा कि युद्ध का परिणाम ऐसा होगा। उन्होंने अर्जुन को भी कभी नहीं कहा कि युद्ध होना है और तुम जीतने वाले हो। उन्होंने तो कहा कि यदि तुम यह युद्ध जीतोगे तब तुम इस जगत पर राज करोगे। यदि तुम युद्ध हारते भी हो तब भी तुम स्वर्ग ही जाओगे। लोग कह सकते हैं कि यदि कृष्ण को सच में पता था तो उन्होंने बताया क्यों नहीं?

पतंजलि कहते हैं सब कुछ जान पाने का बीज उस चैतन्य में है। जैसे तुम्हारे पास घर में कोई शब्दकोष हो, जब भी तुम्हारी इच्छा हो उसी क्षण तुम कोई भी शब्द ढूंढ़कर उसका अर्थ देख सकते हो। परन्तु तुम्हे सारे शब्दों को हमेशा स्मृति में रखने की आवश्यकता नहीं है, न ही तुम्हें हमेशा यह मालूम होने की आवश्यकता है कि शब्दकोष में कौन कौन से शब्द हैं।

ईश्वरीय चेतना के सर्वज्ञ होने का रहस्य

जब तुम स्वयं को चेतना के उस उच्चतम स्तर तक उठाते हो, तब वहाँ सब ज्ञान प्रकट होता है। जो भी जीव जहाँ भी, जितने क्रिया कलाप कर रहे हैं, तुम उन सब को महसूस कर सकते हो, जान सकते हो। कितने करोड़ों लोग हैं, उनमें से कुछ सुबह उठ रहे होंगे, कुछ कहीं चल रहे होंगे, कुछ स्नान रहे होंगे, कुछ सो रहे होंगे।

केवल इसी क्षण में कितने सारे लोग खर्राटे भर रहे होंगे, कितने लोग खा रहे होंगे, कितने लोग काम कर रहे होंगे, झगड़ा कर रहे होंगे और इसी क्षण में यह सब तो मात्र लोगों का है। कल्पना करो कि कितने जीव हैं, कितने मुर्गों के चूजे हो रहे होंगे, कितनो को काटा भी जा रहा होगा, कितनी गाय भैंस घूम ही होंगी, बहुत सारे बन्दर इधर उधर उछलते कूद रहे होंगे जिनको पता नहीं क्या करना है। इतनी चीटियां, मच्छर, कीट पतंगे, अमीबा, करोड़ों जीवाणु कीटाणु क्या क्या नहीं कर रहे होंगे। एक क्षण मात्र में ही असीम गतिविधियाँ चल रही हैं। इन गतिविधियों में से किसी एक गतिविधि को चुनना ही बड़ी बात है। इसका कुछ मूल्य तो नहीं, पर यह संभव है।

इन सब असंख्य गतिविधियों में से, तुम छाँटते हो, फलां व्यक्ति क्या कर रहे हैं? यह देखना कि विपिन या रमेश क्या कर रहे हैं? यह भारी काम है और इसका कोई मूल्य भी नहीं है, पर यह संभव है।

कभी कभी लोग मुझसे पूछते हैं कि गुरुदेव, आपको हमारे गहन से गहन रहस्य कैसे पता चलता है। मैं उनसे कहता हूँ कि मुझे पता नहीं कैसे, पर मुझे पता चल जाता है। कभी कभी यह भी होता है कि मैं अपनी चाबियाँ ही खोजता हूँ। लोगों कहते हैं कि गुरूजी कभी आप को अपनी ही कंघे और चाबी खोजनी पड़ती है पर आप को वह सब रहस्य पता होते हैं जो शायद हम किसी को भी नहीं बताते। यह कैसे संभव हैं?

जैसे तुम्हें पता है कि तुम्हारे सर पर बाल है पर यह नहीं पता कि कितने बाल हैं। यहाँ ज्ञान और अज्ञान साथ साथ है। परन्तु तुम्हारा यदि एक भी बाल खींचा जाता हैं तो तुम्हें पता चल जाता है कि कौनसा बाल खींचा जा रहा है। इसलिए कहा गया है “तत्र निरतिशयं सर्वज्ञत्वबीजम्”

सब ज्ञान का बीज चैतन्य की उस अवस्था में है। यह आश्चर्यजनक है।

 पूर्वेषाम् अपि गुरुः कालेनानवच्छेदात

यही चैतन्य, यही गुरु उन सभी का भी मार्गदर्शक है जो पहले कभी रह चुके हैं। उनके लिए समय का कोई संधर्भ नहीं है। कृष्ण कहते हैं कि मैंने ही इक्ष्वाकु और मनु को सिखाया है। ऐसा सुनकर अर्जुन ने पूछा कि यह कैसे संभव है? तुम यहाँ मेरे साथ खड़े हो, तुम इस समय से 5000 वर्ष पहले के लोगों के गुरु कैसे हो सकते हो?

कृष्ण कहते है, “सुनो, तुम मुझे पहचानते नहीं हो, मैं यहाँ कई बार आया हूँ और तुम भी कई बार आए हो। मुझे सब स्मृति है परन्तु तुम भूल चुके हो। मैंने पहले भी तुम्हें सिखाया है और मैं आगे भी तुम्हे सिखाता रहूँगा। “

वह गुरुतत्त्व, मैं, वही बना रहता है। उसके लिए समय से कोई अंतर नहीं है, वह सतत है। जीसस आज भी लगातार बने हुए है, ऐसा नहीं हैं कि जीसस हुए और चले गए। कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि जीसस फिर कभी भविष्य में आएंगे।

यही चेतना उन सभी के लिए भी गुरु है, जो पहले कभी रहे थे।

इस ईस्वरीय चेतना का नाम क्या है? ॐ क्या है?

    Hold On! You’re about to miss…

    The Grand Celebration: ANAND UTSAV 2025 

    Pan-India Happiness Program

    Learn Sudarshan Kriya™| Meet Gurudev Sri Sri Ravi Shankar Live

    Beat Stress | Experience Unlimited Joy

    Fill out the form below to know more:

    *
    *
    *
    *