सबीज समाधि का अनुभव तुम बाहरी कार्यकलाप के दौरान करते हो। जब तुम एक बच्चे थे, तब तुम यही अनुभव कर रहे होते थे। बच्चे इधर उधर उतावले होकर नहीं देखते हैं उनकी नजर में बड़ी स्थिरता होती है। छोटे बच्चे टकटकी लगाकर देखते हैं, उनकी आँखों में गहराई होती है। उनकी आँखों से उनकी स्थिर और शांत आत्मा प्रदर्शित होती है। 

आँखें तुम्हारे और संसार के बीच खिड़की के समान हैं। जैसे तुम आँखों से संसार को देखते हो वैसे ही संसार के लिए तुम्हारी आँखें आत्मा की स्थिरता और शांति को प्रदर्शित करती हैं। यदि कोई बहुत ही लालची और महत्त्वाकांक्षी है तो उनकी आँखें इसका संकेत दे देंगी। यदि कोई बहुत दयावान और करुणामयी हो तो उनकी आँखों से पता चल जाता है, उनके चेहरे और व्यवहार से दिख जाता है।

तुम्हारा रूप, व्यवहार, बातें और चाल-चलन, तुम्हारा पूरा जीवन यह दर्शा देता है कि तुम अपने भीतर क्या हो। यह इन्द्रियों का ही काम है। इन्द्रियाँ तुम्हें संसार की जानकारियां देती हैं और साथ साथ तुम्हारे बारे में संसार को जानकारी देती हैं। और जैसे जैसे हम अपने आप को ध्यानपूर्वक खाली और व्योमवत बनाते जाते हैं, हम स्फटिक जैसे होते जाते हैं। तुम्हारी आत्मा ईश्वर को प्रतिबिंबित करने लगती है।  इन्द्रियाँ तुम्हारी आत्मा के इस ईश्वरीय सत्ता को बाहर दिखलाती हैं। ऐसी समाधिस्थ अवस्था में तुम एक फूल को देखते भर हो पर उस समय तुम उससे देखते मात्र नहीं, बल्कि उसे महसूस कर रहे होते हो, सुन रहे होते हो, सूंघ रहे होते हो और उस फूल के साथ एक हो जाते हो।

तुम्हारी सभी इन्द्रियाँ पूरी तरह से सक्रिय हो जाती हैं। इन्द्रियाँ एक स्फटिक के जैसे होकर भीतर के उस एक ईश्वरीय तत्त्व को प्रतिबिंबित करती हैं और तरह तरह की सभी विषय वस्तुएँ एक दिव्य चेतना को ही अभिव्यक्त करती हैं। यही सबीज समाधि है। ऐसे में तुम यदि एक पहाड़ को देखते हो तो वह भी तुम्हें उस चेतना की याद दिलाता है। तुम एक फूल को देखते हो तो वह भी तुम्हें विशुद्ध चेतना की याद दिलाता है। बहते हुए पानी को देखकर उस अप्रकट दिव्यता के लिए भक्ति का भाव उमड़ता है। तुम सूरज, चाँद, नदी, कुछ भी देखो, इस सब को देखकर तुम्हें अप्रकट चैतन्य और ऊर्जा का ही भाव होता है, जिससे यह सब बना है। ऐसे क्षण में तुम्हें समाधि का अनुभव होता है। ऐसे क्षणों में तुम समाधि में ही होते हो।

तुम किसी सूर्यास्त को देखते हो और समाधि का अनुभव करते हो, क्योंकि तुम्हारी इन्द्रियाँ स्थिर हो जाती हैं। इसी स्थिरता में ही तुम्हारी गरिमा है। इसी स्थिरता में ही शक्ति है। यही स्थिरता ही वैराग्य है। तुम यह प्रयोग कर सकते हो, कुछ क्षणों के लिए अपने शरीर को स्थिर करो, आँखों को भी स्थिर करो और देखो तुरंत ही मन स्थिर होने लगता है। मन उसी क्षण में रुक जाता है, श्वास भी संतुलित हो जाती है। इस समाधि में ही समय रुक जाता है, काल ठहर जाता है और अमरत्व की शुरुआत होती हैं।

इससे पहले कि काल तुम्हें निगल ले, यह पृथ्वी तुम्हें खा जाए, तुम जाग जाओ और समय को ठहरा दो, तब वह समाधि है। समाधि ऐसी अवस्था है जिसमें तुम्हें लगे कि तुम इसी तरह लाखों वर्ष रह सकते हो। समाधि ऐसी अवस्था है जिसमे मन स्थिर हो कर फ्रीज हो जाए, जैसे सब्जियों को फ्रीजर में रखने से वह जैसी हैं वैसे ही जम जाती हैं। समाधि तुम्हारे जीवन का प्रशीतन हैं, रेफ्रिजरेशन है।  समाधि में ही युवा रह पाने का रहस्य है। इसी में जीवन के उत्साह का रहस्य है। समाधि और स्थिरता में ही जीवन के नयेपन का रहस्य है।

परन्तु लोगों ने समाधि के लिए सब गलत समझ और धारणाएँ पाल रखी हैं। समाधि के लिए समाज से दूर चले जाओ और कुछ खाओ पियो नहीं, पूरे शरीर पर भस्म लपेट के बैठो, कंकाल से बन जाओ। यह सब समाधि के बारे में बड़ी हास्यपूर्ण धारणाएँ हैं।

समाधि से सब कुछ ही विशेष बन जाता है, तुम्हारे इंद्रियों के सभी अनुभव पूर्ण और गहरे होने लगते हैं। जैसे जब तुम प्रसन्न होते हो तब भीतर एक विस्तार महसूस होता है, तुम्हें लगता है जैसे तुम खुशी से फूल के कुप्पा हो गए हो।  जब भी तुम प्रसन्नता से फूले नहीं समाते हो, तब तुम्हें शरीर का पता नहीं रहता और चेतना में एक विस्तार होने का भाव बना रहता है।  इसी तरह जब तुम दुखी और परेशान होते हो तब तुम्हें बंधा बंधा महसूस होता है, जैसे तुम सिमट गए इसी प्रकार जब भी चेतना में विस्तार और फैलाव महसूस होता है, तब निद्रा में जाने की संभावना रहती है और जब तुम्हें किसी काम के लिए बड़ी एकाग्रता चाहिए, तब तुम थोड़े से मन से सिमट जाते हो।

देखो यदि तुम्हें एक सुई में धागा पिरोना हो तो इसमें बड़ी सजगता लगती है।  कोई नशे या नींद में पड़ा हुआ व्यक्ति यह काम नहीं कर सकता है, किसी धागे में यदि छोटे छोटे मोती पिरोने हो, तो वह काम ऐसे नशे में कोई नहीं कर सकता है। कोई भी बारीक काम करने के लिए तुम्हें एकाग्रता चाहिए ही होती है। बहुत सारे लोग ऐसे कई कढ़ाई, स्वर्णकारी के बारीक काम करते हैं, कुछ लोग एक चावल के दाने पे लिखाई किया करते हैं, ऐसे सभी लोगों की चेतना लगातार एकाग्र बनी रहती है।  

प्रायः जब चेतना में एकाग्रता हो, तब विश्राम और विस्तार नहीं रहता है और यदि चेतना में बहुत विस्तार और विश्राम हो, तब एकाग्रता नहीं बनी रहती है। सबीज समाधि है, इन दोनों का सही सही मिश्रण, जिसमें तुम पूरी तरह से प्रसन्न, विस्तृत और विश्राम में हो पर साथ साथ पूरी तरह से एकाग्र और जागरूक हो। इससे तुम्हारी इन्द्रियाँ इतनी निर्मल और स्पष्ट हो जाती हैं कि वे अच्छे से देख पाती हैं, सुन पाती हैं, अच्छे से अनुभव कर पाती हैं। 

संसार में अधिकतर लोग तो अच्छे से सुनते ही नहीं हैं। उन्हें तुम कुछ बताओगे और फिर से दोहराने को बोलोगे तो तुम शर्त लगा लो, वे वैसे का वैसा बोल ही नहीं सकते हैं। इसी तरह उनसे यदि पंद्रह मिनट बात कर के पूछो कि उन्होंने क्या क्या सुना, तब वे जितना तुमने बोला है उसमें से अधिक से अधिक पंद्रह सेकण्ड्स का दोहरा पाएँगे। बाकी का जितना तुम बोलो, लोगो ने वह सुना ही नहीं होता, वह बेकार चला जाता है।  कई बार ऐसा होता है कि जब लोग तीन चार वर्ष बाद हैप्पीनेस प्रोग्राम  फिर से करने आते हैं, तब उन्हें लगता है कि अरे, यह तो पिछले कोर्स में बताया ही नहीं गया था। हमारे कई शिक्षकों का ऐसा अनुभव भी होगा। ऐसा ही देखने के साथ होता है, लोग देखते भी नहीं है। इस बात को सिद्ध करने के लिए कई उदाहरण दिए जा सकते हैं कि लोग देखते भी नहीं हैं।

 जब हम ठीक से देखते सुनते भी नहीं हैं, तब हम लोगों के लिए और उनकी भावनाओं के लिए असंवेदनशील बन जाते हैं। समाधि में तुम और लोगों की भावनाओं के लिए बड़े संवेदनशील हो जाते हो।  जब तुम संवेदनशील होते हो तब  प्रकृति भी तुम्हारे लिए संवेदनशील हो जाती है, प्रकृति तुम्हारी बात सुनने लगती है।

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