दीपाली पटेल परस्पर लड़ने वाली जनजातियों का एकीकरण करती हुई परिवर्तन की राजदूत बन गयीं

गृह युद्ध, विभिन्न समूहों के झगड़ों एवं कमजोर स्वास्थ्य सेवाएं अफ्रीकी  महाद्वीप के इस देश, आइवरी कोस्ट की बहुत लम्बे समय से चली आ रही समस्या थी | जब दीपाली पटेल, आर्ट ऑफ लिविंग की संकाय के रूप में, स्वयंसेवकों की एक छोटी सी टीम के साथ क्षेत्र की समस्याओं के निराकरण के लिए भारत से आकर कार्य शुरू किया तो “उनका सामना विभिन्न संदेहों से हुआ। 

“आरम्भ में लोग हम लोगों और हमारे समाज सशक्तिकरण के कार्यक्रमों  को लेकर अविश्वास से भरे थे और वे उन्हें निरंतर गोरा कह कर पुकारते थे” दीपाली बताती हैं । 

परिवर्तन की शुरुआत तब हुई जब दीपाली और उनकी टीम ने इस क्षेत्र में सामुदायिक सशक्तिकरण के कार्यक्रम जैसे कि वाईएलटीपी (यूथ लीडरशिप ट्रेनिंग प्रोग्राम) प्रारंभ किया।

“ धीरे धीरे से वह हमारे प्रति सामान्य होने लगे । वहां के क्षेत्रीय लोग जो कि गृह युद्ध से परेशान होकर कह रहे थे उनके जीवन का उद्देश्य ही नहीं रह गया। वे लोग यह कार्यक्रम करने के पश्चात मुझसे मिलकर कहने लगे कि उन्हें बहुत राहत महसूस हो रही है,गृह युद्ध की यादें धीरे धीरे लुप्त हो रही थी ।कई लोगों ने बताया कि उन्हें अच्छी नींद आ रही है और कई लोगों ने शराब का सेवन त्याग कर दिया |

युद्धरत जनजातियों का एकीकरण

कार्यक्रमों का सबसे महत्वपूर्ण असर था दो युधरत्त समूहों के बीच भाई चारा विकसित करना |

देवला और गेरे समुदायों के लगभग 30 सदस्यों ने एक साथ आइवरी कोस्ट के वाईएलटीपी कार्यक्रम 

में भाग लिया l

कार्यक्रम के बाद जनजातियों ने शांति की स्थापना हेतु शपथ ली I वर्तमान में एक जनजाति के लोगों ने गांव में घर बना कर उन लोगों को आमंत्रित किया है जिनके घर उन्होंने जबरन हथिया लिए थे , ऐसा दीपाली ने बताया l

देवला समुदाय के एक सदस्य अदामा ने कहा,” इस  आर्ट ऑफ लिविंग के 8 दिनों के कार्यक्रम ने मेरी धारणा ही बदल दी l अब कोई डर नहीं है ( वे गेरे समुदाय के सदस्य) हमारे भाई हैं|”

आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा किए गए कार्य के योगदान को सम्मान देते याद करते हुए आइवरी कोस्ट के सामंजस्यता मंत्री व्यक्तिगत रूप से कार्यक्रमों को सहयोग प्रदान करते हैं। , 

लोक स्वास्थ्य की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए हेतु टीम ने स्वास्थ्य और स्वच्छता जागरूकता अभियान चलाया जिसके फलस्वरूप मलेरिया के मामलों में कमी आईl

 परिवर्तन की अगुवाई 

दीपाली ने आर्ट ऑफ लिविंग के कार्यक्रम कैमरून, बुर्किना फासो और  सेनेगल में भी आयोजित किए हैं l कैमरून के प्रतिभागियों ने अंतरराष्ट्रीय केंद्र, बंगलुरु, भारत का भ्रमण भी किया और प्राकृतिक खेती के साथ-साथ बायोगैस उत्पादन की विधि भी सीखी l

जून माह में सा के मेयर ने 1 हेक्टर भूमि संस्था को दान की जिसका उपयोग जैविक खेती के लिए किया जाएगा । किया । आस पास के गावों के वासियों ने उनको भी प्रशिक्षण देने की प्रार्थना की है, क्योंकि रसायनिक उर्वरकों के उपयोग से उनकी  जमीन बंजर हो गई थी l दीपाली ने भारत के उत्तर पूर्व में भी परिवर्तन का सूत्रपात किया l

“ हमें निरंतर धमकाया गया और शुरू में लोगों को हमारे खिलाफ पाया l परंतु फिर वे कार्यक्रम में वापिस आने 

लगे ” वह बताती हैं । 

विभिन्न देशों में इस कार्यक्रम के लोकप्रिय होने का कारण क्या है?

“ कार्यक्रम लोगों के मर्म को छूता है जोकि सभी जगह समान है l यह कोर्स सर्वव्यापक है l आपके लिए  जो आवश्यक है , यह कोर्स आपको प्रदान करता है l इस वजह से हम विश्व में सभी जगह पर स्वागत किए

जाते हैं “ वह बताती हैं ।