योग के बारे में (yoga)

चक्र योग से करें अपने शरीर को संतुलित | Balance Your Body With Chakra Yoga

हमारे शरीर में प्राण शक्ति (जीवनदायिनी ऊर्जा) 7 चक्रों (ऊर्जा केंद्रों) से होकर प्रवाहित होती है। किसी भी चक्र में अवरुद्ध ऊर्जा अक्सर बीमारियों का कारण बनती है। इसीलिए यह जानना अति आवश्यक है कि प्रत्येक चक्र किस महत्ता का सूचक है और उससे प्रवाहित होने वाली ऊर्जा के अवरुद्ध प्रवाह को पुनर्स्थापित करने के लिए हम क्या उपाय कर सकते हैं।

जब प्राण ऊर्जा किसी चक्र में अवरुद्ध हो जाती है तो व्यायाम द्वारा अवरोध खोलने में सहायता मिलती है। योगासन (आसन स्थिति एवं प्राणायाम) इस अवरुद्ध ऊर्जा को प्रवाह देने का एक उत्कृष्ट साधन है। चूँकि योग में शारीरिक एवं आध्यात्मिक दोनों ही क्रियाएँ सम्मिलित हैं, यह न केवल हमारे शरीर को व्यायाम देता है, ये हमारे मन, भावनाओं एवं आत्मा को भी परिष्कृत करता है। इसी कारण हमारे ऊर्जा चक्रों में संतुलन बनाने के लिए यह सबसे अच्छा साधन है।

मूलाधार चक्र:

तत्व: पृथ्वी  

रंग: लाल  

मंत्र:  लं  

स्थान: रीढ़ की हड्डी के आधार में, गुदा एवं जननेंद्रियों के बीच 

मूलाधार चक्र हमारी हड्डियों, दांतो, नाखूनों, गुदा, प्रणत ग्रंथि (प्रोस्ट्रेट ग्लैंड), अधिवृक्क ग्रंथि (एड्रीनल ग्लैंड), गुर्दे, निचले पाचन तंत्र, उन्मूलन तंत्र के स्वास्थ्य एवं सेक्स क्षमता पर प्रभाव डालता है।  मूलाधार चक्र में असंतुलन से हमें थकान, अनिद्रा, कमर के निचले भाग में दर्द, साइटिका, कब्ज़, उदासी, प्रतिरोधक क्षमता का ह्रास, मोटापा, और खान-पान सम्बन्धी रोगों इत्यादि का सामना करना पड़ता है।

असंतुलन का व्यवहारात्मक प्रभाव: अकारण भय, क्रोध, असुरक्षा, आत्म-सम्मान का ह्रास, सुख-साधनो में अत्यधिक लिप्त होना |

संतुलित चक्र के लक्षण: आत्म-केंद्रित और व्यवहार-स्थिरता, स्वतंत्र, लगन, ऊर्जावान, जीवंत, शक्तिशाली, उत्तम पाचन शक्ति

मूलाधार चक्र को संतुलित करने वाले आसन:  पैरों को पृथ्वी पर जमा कर रखने वाले आसन जैसे- पर्वतासन, कोणासन, वीरासन, सेतुबंध आसन, पाद-हस्तासन

 

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स्वादिष्ठान चक्र

तत्त्व : जल 

रंग: नारंगी  

मंत्र:  वं  

स्थान: जंघा की हड्डियों के मूल में, जननेन्द्रिय एवं त्रिकजाल (Sacral Nerve) के बीच स्थित

स्वादिष्ठान चक्र द्वारा हमारी भावनात्मक पहचान, सृजनात्मकता, इच्छाओं, आनंद एवं आत्म-तुष्टि, प्रजनन एवं व्यक्तिगत संबंधों का नियंत्रण होता है। यह प्रजनन तंत्र, उदर, ऊपरी आँतों, यकृत (लिवर), गॉल ब्लैडर, गुर्दे, आमाशय, एड्रेनल ग्लैंड, तिल्ली (स्प्लीन), मध्य मेरु दंड एवं स्व-प्रतिरोधक सिस्टम को प्रभावित करता है। स्वादिष्ठान चक्र में असंतुलन के कारण कमर के निचले भाग में दर्द, साइटिका, क्षीण मैथुन शक्ति, जंघा की हड्डियों में दर्द, मूत्र प्रणाली के रोग, अपच, वायरस और इन्फेक्शन से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता का  ह्रास, थकान, हॉर्मोन्स में असंतुलन एवं महिलाओं में मासिक धर्म की अनियमितता।

असंतुलन का व्यवहारात्मक प्रभाव: चिड़चिड़ापन,शर्मीलापन, आत्म-ग्लानि, दोषारोपण, सृजनात्मकता का अभाव, सेक्स के प्रति ज़ुनून

संतुलित चक्र के लक्षण: दया एवं मैत्री भाव, पूर्वानुमान शक्ति, जोश, अंतरंगता या अपनेपन का भाव एवं हास्य भाव

स्वादिष्ठान चक्र को संतुलित करने के आसन: कूल्हे की हड्डियों को खोलने वाले आसन जैसे कि  प्रसारित पादोत्तानासन, उपविष्टः कोणासन (खड़े होकर या बैठकर, पैरों को फैला कर आगे झुकना एवं बद्ध कोणासन।

मणिपुर चक्र

तत्त्व : अग्नि। 

रंग : पीला। 

मंत्र :  रं

स्थान: नाभि स्थान पर सूर्य चक्र के स्थान पर

मणिपुर चक्र का सम्बन्ध हमारे अंदर के परस्पर आत्मीयता-भाव, आत्म-सम्मान और हमारी भावनाओं के प्रति हमारी मानसिक सजगता से है। मणिपुर चक्र हमारे शरीर में उदर के ऊपरी भाग, गॉल ब्लैडर, यकृत (लिवर), मेरुदंड के मध्य-भाग, गुर्दे, अधिवृक्क ग्रंथि (एड्रेनल ग्लांड्स), छोटी आंत और पेट के सुचारु संचालन को नियंत्रित करता है।  असंतुलन मणिपुर चक्र के कारण मधुमेह (डायबिटीज), अधिवृक्क असंतुलन, गठिया (आर्थराइटिस), पेट में आंतरिक घाव (अल्सर), आँतों में ट्यूमर, बुलिमिया (अधिक खाने की बीमारी ) एवं निम्न रक्त-चाप (Low BP) इत्यादि बीमारियां होने की संभावना बढ़ जाती है।

असंतुलन का व्यवहार पर प्रभाव: आत्म-सम्मान में कमी, दब्बू होना, निराशा, ठुकराए जाने का डर, निर्णय न ले पाना, क्रोध, शत्रुता भाव, आलोचनात्मक 

संतुलित चक्र के लक्षण: ऊर्जावान, आत्म-विश्वासी, बुद्धिमान, उत्पादकता, लग्न-शील/केंद्रित, उत्तम पाचन शक्ति

मणिपुर चक्र को संतुलित करने वाले आसन: ऊष्मा उत्पन्न करने वाले आसन, जैसे कि सूर्य-नमस्कार, वीर-आसन, धनुरासन, अर्ध-मत्स्येन्द्र आसन एवं उदार-पेशियों को शक्तिशाली बनाने वाले आसन जैसे  नौकासन, दण्डासन आदि ।

अनाहत चक्र

तत्त्व: वायु

रंग: हरा या गुलाबी  

मंत्र:  यं

स्थान: ह्रदय क्षेत्र में हृदय-स्नायु पर स्तिथ

अनाहत चक्र एक व्यक्ति की सामाजिक पहचान को प्रभावित करता है, जिसमे भरोसेमंद होना, क्षमावान, शर्त-रहित प्रेम, बुद्धिमता,करुणावान होना और आत्मा से जुड़े अन्य  विषय सम्मिलित हैं। यह चक्र ह्रदय, पसलियों, रक्त संचार प्रणाली, फेफड़ों, डायफ्राम, थाइमस ग्लैंड, स्तन, भोजन नलिका, कन्धों, भुजाओं एवं हाथों के संचालन से सम्बंधित है। इस चक्र में असंतुलन के कारण मेरुदंड के ऊपरी हिस्से में, ऊपरी कमर और कन्धों में परेशानियां हो सकती हैं और अस्थमा, हृदय रोग, छिछली सांस एवं फेफड़ों से सम्बंधित रोगों का कारण भी बन सकता है।

असंतुलन का व्यवहार पर प्रभाव:  प्रेम संबंधों में खटपट; आशाहीन, करुणा और आत्म-विश्वास में कमी; निराशा का भाव एवं मनःस्तिथि में तीव्र उतार -चढ़ाव

संतुलित चक्र के लक्षण: पूर्णताभाव का होना, करुणामय होना, सहानभूति पूर्ण होना, मैत्री भाव, आशावान, स्व-प्रेरित एवं मिलनसार

चक्र को संतुलित करने के आसन : छाती को खोलने आसन जैसे कि  उष्ट्रासन, भुजंगासन, मत्स्यासन एवं विभिन्न प्रकार के प्राणायाम जैसे कि अनुलोम-विलोम / नाड़ी-शोधन प्राणायाम, भस्त्रिका प्राणायाम इत्यादि

विशुद्धि चक्र

तत्त्व:  आकाश (या ध्वनि) 

रंग: नीला  

मंत्र:  हं  

स्थान: गले के स्थान पर ग्रसनी-स्नायु तंत्र में स्थित

विशुद्धि चक्र हमारे व्यक्तित्व के अनेकों आयामों से सम्बंधित है जैसे कि हमारी सृजनात्मकता, विश्वास, सत्य-परायणता, आत्म-सजगता और विचारों को आदान-प्रदान करने का हमारा कौशल एवं प्रगटीकरण की हमारी भाव-भंगिमा।

असंतुलन जनित व्यवहारिक प्रभाव: डिगा हुआ विश्वास, अनिर्णयता, कमजोर इच्छा-शक्ति, स्वयं के विचारों को कुशलता पूर्वक व्यक्त न कर सकना, सृजनात्मकता का अभाव और आसानी से दुर्व्यसनों में पड़ने की संभावना 

संतुलित चक्र के लक्षण: सृजनात्मक, वाकपटु, उत्तम श्रोता, संदर्भयुक्त, प्रभावी संवाद कला

चक्र को संतुलित करने के आसन: मत्स्य आसन, मार्जरी आसन,  ग्रीवा सम्बंधित आसन, सर्वांगासन, सेतुबंध आसन, हलासन

आज्ञाचक्र

तत्त्व : प्रकाश

रंग : नील 

मंत्र : ॐ या ओम

स्थान: भ्रू-मध्य में, दोनों भौहों के बीच (तीसरा नेत्र)

आज्ञा चक्र सम्बन्ध हम्मारी आत्म-सजगता, विद्वता, बुद्धिमता, पूर्वाभास शक्ति, विचारों को कार्यान्वित करने की क्षमता, निर्लिप्तता / वैराग्य, अंतर्दृष्टि, विश्लेषण क्षमता से है। आज्ञा चक्र हमारी आँखों, नाक, कान, मष्तिष्क, पीयूषिका (पिटुटरी) ग्रंथि, पीनिअल ग्रंथि (तीसरा नेत्र) और तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) इत्यादि के कार्यों को संचालित करता है।  इसमें होने वाले असुंतलन से हमें सिरदर्द, दुःस्वप्न, नेत्रपीड़ा, अतिशय भय, मानसिक अवसाद (डिप्रेशन), अंधपन, बहरापन, मेरुदंड अनियमितता, एवं दौरे पड़ना।

असंतुलन के व्यवहारिक दुष्प्रभाव: दूषित निर्णय शक्ति, विभ्रांति (कन्फूजन), सत्य का डर, अनुशासन हीनता एवं एकाग्रता सम्बन्धी मुद्दे .

संतुलित चक्र के लक्षण: शुद्ध विचार शक्ति, स्वस्थ कल्पना शक्ति, विकसित पूर्वाभास शक्ति, एकाग्र मन और बेहतर एकाग्रता शक्ति 

चक्र को संतुलित करने के आसन: शिशु आसन, ध्यान, उपविष्ट योग-मुद्रा, चक्षु व्यायाम

सहस्त्रार चक्र

तत्त्व: चेतना 

रंग: बैंगनी या श्वेत

मंत्र: मौन

स्थान: सर के शीर्ष पर

सहस्त्रार चक्र हमारी आभास शक्ति, आध्यात्मिकता से हमारे सम्बन्ध, मन-शरीर-आत्मा के एकीकरण और हमारी आत्मिक सजगता को प्रभावित करता है।  यह हमारे सर के केंद्र भाग और हमारे सर के कानो से ऊपर के आधे भाग स्थित मस्तिष्क और तंतु प्रणाली (नर्वस सिस्टम) एवं पीनियल ग्रंथि (Pineal Gland) को नियंत्रित करता है।  सहस्त्रार में असंतुलन के कारण हमें लगातार थकान लगती है और प्रकाश एवं ध्वनि के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है।

असंतुलन का व्यवहार पर प्रभाव: दिशाहीन जीवन, आध्यात्मिकता, भक्ति और प्रेरणा पर अविश्वास, भय का अनुभव, भौतिकता के प्रति अनुराग

संतुलित चक्र के लक्षण: ब्रह्माण्ड के साथ एकरसता, पूर्वाग्रह रहित मन, बुद्धिमत्ता, विचारवान, विचारों और सुझावों के प्रति सकारात्मक भाव एवं एक सहज व्यक्तित्त्व

चक्र को संतुलित करने वाले आसन: शरीर के प्रति सजगता उत्पन्न करने वाले आसन जैसे कि योग मुद्रा, ध्यान इत्यादि

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