ध्यान मन के साथ क्या करता है?

व्याकुलता से रहित मन ध्यान है। वर्तमान क्षण में स्थित मन ध्यान है दुविधा और प्रत्याशा रहित मन ध्यान है। वापस स्त्रोत तक पहुँच चुका मन ध्यान है। ‘न-मन’ हो चुका मन ध्यान है।

आप विश्राम कब कर सकते है? 

विश्राम तभी संभव है, जब आप अन्य सभी काम छोड़ दें। जब आप इधर-उधर घूमना, काम करना, सोचना, बात करना, देखना, सुनना, सूंघना, चखना, ये सब काम बंद कर देते हैं, तो आपको विश्राम मिलता है। जब सभी ऐच्छिक क्रियाओं को रोकते हैं, तब आप विश्राम कर पाते हैं या नींद ले पाते हैं। नींद में, केवल अनेच्छिक क्रियायें जैसे श्वास, ह्रदयगति, पाचन, रक्त संचार आदि चलती रहती है। परंतु यह ‘सम्पूर्ण विश्राम’ नहीं है। जब मन स्थिर हो जाता है, केवल तभी ‘पूर्ण विश्राम‘ या ध्यान हो पाता है।

ध्यान क्या है ?

ध्यान का अर्थ कुछ सोचने का प्रयास करना नहीं। ध्यान गहराई से विश्राम करना है। यदि आप समस्या पर ध्यान दे रहे हैं, तो आप विश्राम नहीं कर रहे है। ऐसे में हम क्या करें? हम बस जाने दें, यह लगभग नींद की तरह है पर नींद नहीं है। ‘सुदर्शन क्रिया’ के बाद यही होता है। जब आप लेटे होते हैं, तो मन में क्या चल रहा होता है? कुछ भी नहीं। वह खाली होता है। यह ध्यान है। या फिर, जब आप सच में खुश होते हैं, जब आप विश्राम कर रहे होते हैं – क्या अवस्था होती है? वही ध्यानावस्था है। या जब आप गहरे प्रेम में होते हैं और आप प्रेम में डूबे हुए होते हैं, वह ध्यान है।

ध्यान अतीत के क्रोध, अतीत की घटनाओं और भविष्य की योजनाओं को छोड़ देता है। योजना बनाना आपको अपने भीतर गहराई में डूबने से रोकता है। ध्यान इस क्षण को स्वीकार करना और क्षण को गहराई के साथ पूर्णतः जीना है। बस यह ज्ञान और कुछ दिनों तक निरंतर ध्यान का अभ्यास हमारे जीवन के स्वरूप को बदल सकता है।

ध्यान के लाभ 

जब आप सब कुछ जाने देते हैं और केन्द्रित होकर स्थिर हो जाते हैं, तो उस समय जिस आनंद की अनुभूति होती है, वह आपके भीतर की गहराई से उठता है, यही ध्यान कहलाता है । वास्तव में, ध्यान कोई क्रिया नहीं, यह कुछ भी न करने की कला है! ध्यान में विश्रांति आपके द्वारा ली गई गहनतम निद्रा से भी गहन होती है, क्योंकि ध्यान से आप सभी कामनाओं से परे चले जाते हैं । यह दिमाग को इतनी शांति प्रदान करता है कि यह सारे शरीर और मन रूपी ढाँचे की मरम्मत के समान है।

चेतना की तीन अवस्थाओं –जागृत, सुप्त और स्वप्नावस्था की सर्वश्रेष्ठ तुलना प्रकृति से ही हो सकती है। प्रकृति सोती, जागती और स्वप्न लेती है ! यह सृष्टि में एक विशाल स्तर पर होता है और यह मानव शरीर में एक अलग स्तर पर होता है। जागना और सोना सूर्योदय और सूर्यास्त के सामान है, स्वप्न इनके बीच की गोधूली की बेला है। और ध्यान इस बाहरी अंतरिक्ष में उड़ान के सामान है जहां कोई सूर्योदय, कोई सूर्यास्त नहीं होता, कुछ भी नहीं!

~ गुरुदेव श्री श्री रविशंकर (Gurudev Sri Sri Ravi Shankar) के ज्ञानवार्ता से संकलित

अधिक जानकारी के लिए या प्रतिक्रिया देने के लिए संपर्क – webteam.india@artofliving.org

 
Founded in 1981 by Sri Sri Ravi Shankar,The Art of Living is an educational and humanitarian movement engaged in stress-management and service initiatives.Read More