उत्सव

गीता जयंती के अवसर पर | On occasion of Gita Jayanti

"हे कृष्ण ! युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इन स्वजनो को देखकर, मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे हैं ! मेरा मुख सूखा जा रहा है तथा मेरे शरीर में कम्पन और रोमांच  हो रहा है। "-

                            कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में, जहाँ दोनों तरफ़ कौरवों तथा पांडवों की सेनाएं युद्ध का शंख बजने की प्रतीक्षा में थीं, वहीं अर्जुन अपने ही  प्रियजनों को अपने प्रतिद्वंदी के रुप में देखकर मोहवश युद्ध-भाव से विचलित हो रहे थे। तब श्री कृष्ण ने अर्जुन को भगवद गीता का उपदेश दिया,जो समस्त मानव जाति को फल की इच्छा किये बिना कर्म करने की प्रेरणा देती है। आज से लगभग 5000 वर्ष पूर्व हुए  महाभारत के प्रथम दिवस को ही, भगवद गीता का उद्गम दिवस माना जाता है। तथा प्रत्येक वर्ष की मार्गषीर्श शुक्ल एकादशी को गीता जयंती मनायी जाती है।

"महाभारत" - सार्वकालिक तथा सार्वभौमिक :

वास्तव में महाभारत का युद्ध, समय और स्थान की सीमा में  बंधा ही नही है। यह सूक्ष्म स्तर पर काल और स्थान से परे, सारे संसार के द्वंद-युद्ध  का प्रतीक है, जो हमें लोभ, मोह, काम और क्रोध के परिणामस्वरूप, जीवन की कई परिस्थितियों में उलझा कर रखता है। भगवद गीता, उसी द्वंद को पार कर, कर्म तथा भक्ति का मार्ग सुझाती है।

हम सभी में "अर्जुन" हैं ! :

दिन- प्रतिदिन, कभी या तो हम अपने वैयक्तिक संबंधों की चुनौतियों में उलझे रहते हैं, तो कभी उन्नति-प्रोन्नति की होड़ में सैकड़ों दाँव-पेंच का सामना कर रहे होते हैं। ऐसे में ये आम बात है, कि किसी समय सब-कुछ व्यर्थ ही लगने लग जाए। तब हम चुनौतियों से भागना चाहते हैं। जीवन में चुनौतियाँ होना स्वाभाविक है। भगवद गीता, चुनौतियों को स्वीकार कर, उनका सामना करने का हौसला देती है।

सुख और दुःख: संसार की अस्थाई प्रवृत्ति :

भगवान श्री कृष्ण, भगवद गीता के माध्यम से, अर्जुन को सुख और दुःख से निर्लिप्त रहने का रहस्य बताते हैं। कहते हैं - सुख और दुःख, प्रकृति की सत्व, रजस और तमस गुणों की अभिव्यक्ति है। यह समय-समय पर विभिन्न लोगों में अलग-अलग मात्रा में अभिव्यक्त होता है। तथा परम आनंद, सुख-दुःख से परे ‘आत्मा’ में है। जो लोग ‘ब्रह्म-तत्त्व’ (आत्मा) में स्थित होकर, निष्काम भाव से कार्य करते हैं, उन्हें किसी भी प्रकार का,ना तो दोष लगता है और ना ही सुख और दुःख की प्रवृत्ति उन्हें प्रभावित करती है।

निष्काम कर्म तथा भक्ति की प्रेरणा देती है - गीता जयंती :

जहाँ "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन" सूक्त,संसार को बिना फल की इच्छा किये हुए कर्म करते रहने की प्रेरणा देता है, वहीं "यदा- यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृजाम्यहम" श्लोक, मानव जाति को इस बात का अश्वासन भी देता है, कि समय-समय पर जब भी संसार में अधर्म तथा अशांति फैलाने वाले कारक आएंगे, भगवद सत्ता किसी ना किसी स्वरूप में धर्म,अहिंसा तथा शांति की स्थापना करने के लिए प्रकट होगी।

 

मार्गषीर्श शुक्ल एकादशी, हमें भगवद गीता के इस अद्वितीय उपहार का स्मरण कराती है जो कर्मयोग और भक्तियोग के द्वारा मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है।

हम आर्ट ऑफ़ लिविंग परिवार की ओर से आप सभी को गीता जयंती की असीम शुभकामनाएं  प्रेषित करते हैं !!


स्थान और समय के परे, रंग और जाति के परे, विश्व का समस्त मानस-समूह, हर क्षण 'मन के महाभारत' का साक्षी है! ऐसे में भगवद गीता ही "आधुनिक अर्जुन" की मार्गदर्शक है ! भगवद गीता हमें जीवन के व्यवहारिक ज्ञान से अवगत कराती है | गीता जयंती की अनंत शुभकामनायें !!

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