ध्यान (meditation)

ध्यान और स्मृति

meditation practice

"जब मन व्याकुलता से मुक्त हो जाता है, धीर, निर्मल और शांत हो जाता है, तब ध्यान होने लगता है । ध्यान करने से ऊर्जा का एक आंतरिक स्त्रोत उत्पन्न करके,‌ आप अपने शरीर को ऊर्जा घर में बदल सकते हैं ।"  - गुरुदेव

आपकी यादें  या तो आपको उदास कर सकती है, या फिर, प्रबुद्ध कर सकती है । ध्यान, आपकी चेतना में वह बदलाव ला सकता है जिससे आप छोटी चीज़ों को छोड़ने  और अपने अनंत स्वभाव को पहचानने में सक्षम हो जाते हैं !

सीमित मन और तुच्छ चीज़ों में उलझना अच्छा नहीं है  

हमारा दिमाग कितनी बार अप्रिय स्मृतियों यानी यादों में पिस रहा होता है :

  • उसने ऐसा क्यों कह दिया
  • वह इतनी घमंडी है 
  • उन्होंने मेरे साथ ऐसा किया इत्यादि... 

ऐसी छोटी-छोटी बातों को याद करना - अंधकार में जीना है ।

अंधकार एवं मानसिक बंधन के लिए कारण हैं :

  • घटनाओं की स्मृति
  • सीमित एवं छोटे अनुभव
  • अनंत को भूलना

दुखद स्मृतियों से कैसे निकलें?

  • स्पष्ट रूप से समझें कि संसार में सब कुछ अस्थाई है ।
  • यह समझें कि पिछली घटनाएं अब वास्तविक नहीं हैं और उन घटनाओं को स्वीकार करें ।
  • वैराग्य रखें और केंद्रित रहें ।
  • ध्यान और प्राणायाम के जरिए अपनी प्राणशक्ति को बढ़ाएं ।
  • आत्म-स्मरण करें और नेक दिमाग के लोगों की सेवा में रहें।

विनम्रता और साहस की प्राप्ति 

  • ध्यान करने से जब आप "मैं कौन हूं" की स्मृति को पुनः प्राप्त करते हैं :
  • आपका सारा दबा हुआ स्वभाव गायब हो जाएगा ।  
  • आप प्रफुल्लित मनोभाव के साथ चलेंगे ।
  • आप महसूस करते हो कि आप ईश्वर के बच्चे हो और सारा संसार आपके लिए है ।
  • आपको अहसास होता है कि आप अमरत्व के बच्चे हैं, और आपका कोई अंत नहीं है (अमरुतस्य पुत्र) । 
  • आपके भीतर सच्ची बहादुरी जाग जाएगी : यह तब जागती है जिस पल आप एक गुरु के सानिध्य में होते हैं।
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एक बार एक भिखारी था जो लोगों से पैसे के लिए भीख मांगता हुआ घूमता था। वह एक शाही परिवार से था, और किसी कारण से वह ये भूल गया था कि वह एक राजकुमार है। एक दिन, राजा के सिपाहियों में से एक सिपाही ने राजकुमार को खोज निकाला और उसे अपने पूर्वावस्था की याद दिलाई। उसने उसको बताया,‌ "आप एक राजकुमार हैं। राजा आपको ढ़ूंढ रहे हैं।"

जिस क्षण राजकुमार को खुद की स्मृति वापस आई ; उसके कर्म, रंग ढंग, चलने के तरीके में, बात करने के ढंग में, सोच और व्यवहार में बहुत ही तेजी से परिवर्तन आया।

वोही व्यक्ति जो एक चाय के कप के लिए भीख मांगता था - तत्काल ही, कमांडर बन गया, और उसे लोगों से सवाल करने की हिम्मत मिल गई ।

ध्यान के साथ अनंत में विस्तार 

अपनी आत्मा की स्मृति आपको मुक्त करती है भूतकाल की घटनाओं की और संसार की चिंताओं की स्मृति, स्वयं की अनंतता में गायब हो जाती हैं।

जब लोग प्रबुद्ध हो जाते हैं, वे कहते हैं, "मुझे याद है ।" उन्हें उनका सच्चा स्वभाव याद आ गया होता है।

भगवद गीता के लगभग 700 छंदों को सुनने के बाद, और अनगिनत सवाल पूछने के बाद, अर्जुन भगवान कृष्ण से कहते हैं, "स्म्रितिर्लब्ध्वा करिष्ये वचनं तव", जिसका अर्थ है: "मुझे अब याद आ गया है । अब मुझे अपने असली स्वरूप का एहसास हो गया है और जैसा आप कहेंगे वैसा ही करूंगा।"

अर्जुन, भगवान कृष्ण का धन्यवाद नहीं करते । इसका यह मतलब है कि सब कुछ आपकी चेतना में ही है ।

हर एक कण में अनंत छिपा है । आपकी चेतना आपको प्रबोधन प्रदान कर सकती है । जो कुछ भी आप इच्छा करते हैं और जो भी आपकी ज़रूरत है, जो भी सही, आवश्यक एवं अच्छा है, वह होगा । यह ज्ञान आपको शांति और उत्साह एक साथ देता है ।

आपको ध्यान करके केवल अपनी चेतना को स्वस्थ करने की जरूरत है ।

गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी की ज्ञानवार्ता पर आधारित !

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