कुमुदवती नदी का पुनर्जीवन

परिचय 

सुप्रसिद्ध भू-जल  वैज्ञानिक और भारत के प्राकृतिक  जल संसाधनों पर एक शीर्ष  वैज्ञानिक,  डाक्टर लिंगराजु येल केशब्दों में   —“  किसी भी नदी की एक जटिल तंत्र व्यवस्था होती है ।” और एक मृत हो रहे जटिल तंत्र को पुनर्जीवित करनेके लिए चौबीसों घंटे कार्यरत रहने वाली एक प्रतिबद्ध टीम की आवश्यकता होती है ।

कुमुदवती नदी के पुनरुद्धार की कहानी आशा , प्रतिबद्धता और दृढ़ता की कहानी है ।2013 मध्य से , डाक्टर येल औरउनकी टीम में शामिल कोई 20 पूर्णकालिक ओफ़ लिविंग स्वयंसेवक तथा चार राज्यों के कुछ सौ अंश कालिक  स्वयंसेवकों ने कुमुदवती नदी के पुनरुद्धार का बीड़ा उठाया है ।

“ फ़रवरी 2013 में , आर्ट ओफ़ लिविंग की एक बड़ी टीम ने यह चुनौती स्वीकार की और प्रत्येक सप्ताहांत कुमुदवती नदीक्षेत्र में जा कर वैज्ञानिक तरीक़े से स्थायी परिणाम लाने के उद्देश्य से नदी के पुनरुद्धार पर कार्य आरम्भ किया “ … डाक्टरयेल याद करते हुए बताते हैं ।

जो कार्य डाक्टर येल और उनकी टीम कर रही है , वह एक प्रकार से मौलिक कार्य है जिसके फलस्वरूप पूरे देश केविभिन्न क्षेत्रों में लाभदायक परिणाम मिलने की संभावनाएँ हैं। 

अभी , 278 गाँव व बंगलूरू , भारत की सूचना प्राद्योतिकि राजधानी , की आशाएं 460 किलोमीटर लम्बी कुमुदवती नदीके पुनर्जीवन पर टिकी हुई हैं।

आरम्भ

वर्ष 2007 में यह स्वीकार किया गया कि संकट बढ़ रहा है : बैंगलुरु में ताज़े पानी की आपूर्ति में 20 प्रतिशत तक की कमी हो गयी क्योंकि थिप्पागोंडनहल्लि जलाशय सूख चुका था , जिसकी आपूर्ति का स्तोत्र कुमुदवती  नदी थी। यह उस समस्या की परिणिति थी जो कुछ वर्षों से बड़ी हो रही थी तथा और लगातार और गम्भीर हो रही थी ।  इससे, नदी के मार्ग में पड़ने वाले सभी गाँव प्रभावित हो रहे थे । आइ ऐ एच वी ( International Association of Human Values ) के बैनर तले आर्ट ओफ़ living के स्वयंसेवकों ने मृतप्रायः नदी को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया ।स्वयंसेवकों ने ग्रामीणों के सहयोग से संसाधनों को एकत्रित किया और गावों में  उपेक्षित पड़े कल्याणी (सीढ़ीदार कुएँ ) में से गाद निकालने का कार्य किया । भूजल का स्तर बनाए रखने में इन संरचनाओं की महत्वपूर्ण भूमिका  है। आम जन व सरकारी अधिकारियों को प्रदर्शन हेतु स्वयंसेवकों द्वारा एकत्रित सहयोग राशि से 10 पुनर्भरन कुओं तथा चेक बंध का निर्माण किया गया ।

यह कार्य योजना ज़िला पंचायत एवं ग्राम पंचायतों के सम्मुख रखी गयी। किसानों और ग्राम पंचायत सदस्यों  में बैठकों के कई दौर हुए जिनमें नदी के पुनर्जीवन के लिए की जा रही गतिविधियों के महत्व को समझाया गया। ज़िला पंचायतों ने परियोजना के महत्व को समझा तथा इसको मनरेगा के अंतर्गत कार्य में शामिल करने की सम्भावना बनी । वित्तीय परिव्यय की स्वीकृति प्रदान की गयी तथा ग्राम पंचायतों को उनके द्वारा प्रस्तुत प्रस्तावित योजनाओं को आर्ट ओफ़ लिविंग टीम के मार्ग दर्शन में कार्यान्वित करने के निर्देश  दिए गए। 

नदी सूखने के कारण 

  •             शहरी अतिक्रमण 
  •             वनों की कटाई 
  •             खदान 
  •             भू जल का अत्यधिक दोहन 

यह सब महत्वपूर्ण क्यों है ? 

एक दिन एक वृद्ध किसान एक महत्वपूर्ण फ़ैसला करता है। उसने सफ़ेदे के पेड़ लगाने का निर्णय लिया। कोई भी शख़्स, जो भूमि की भाषा अच्छे से समझता हो , खाद्य फसलें त्याग कर औषधीय पेड़ क्यों लगाएगा ? 

उसने देखा कि भूजल स्तर बहुत तेज़ी से नीचे जा रहा है । आसपास के नाले , जो सम्पन्न कृषि उपज के कारक थे, भी सूखने लगे। एक रिपोर्ट में दर्शाया गया कि कुमुदवती नदी को परिष्कृत करने वाला लगभग 100 नालों का  एक समूह भी सूख चुका है। अब जब बहुत कम जल उपलब्ध था व कोई और विकल्प भी नहीं था , किसान ने पारिवारिक आय को जारी रखने के लिए ऐसी फसलें उगानी आरम्भ की जिनमें कम पानी की आवश्यकता हो। उन असंख्य किसानों , जिनकी आजीविका इस नदी के बहने पर ही निर्भर थी , की भी यही कहानी है। जल संकट के कारण और सामने दिख रही आर्थिक असुरक्षा के डर से, बहुत सारी ग्रामीण जनसंख्या आजीविका की तलाश में बंगलूरू पलायन कर गई । 

जल स्तर में गिरावट के परिणाम :

  •  कृषि उपज में कमी
  •  दैनिक उपयोग के लिए कम पानी की उपलब्धता
  •  किसानों की सामाजिक - आर्थिक अस्थिरता 

खुश खबरी      

नदी पुनर्जीवन क्रियाकलापों का सकारात्मक प्रभाव अभी से दृष्टिगोचर है जब हम कुछ गावों के खुले व सीढ़ीदारकुओं में ग्रीष्म ऋतु में भी 10 से 15 फुट तक पानी खड़ा देखते हैं ।

 हमारे स्वयं सेवकों को ऊर्जावान और केंद्रित बनाए रखने वाली शक्तिशाली श्वास प्रक्रिया क्रिया,  “सुदर्शन क्रिया“ सीखें ।

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यह उम्मीद की जाती है कि समस्त परियोजना क्षेत्र में कार्य सम्पन्न होने के उपरांत, कम से कम तीन वर्षा ऋतुओं में पर्याप्त वर्षा होने पर नदी का जलस्तर काफ़ी बढ़ चुका होगा। इस कार्य में बंगलूरू की जलापूर्ति आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु कावेरी का जलस्तर बढ़ाने, क्षेत्र का पर्यावरण संतुलन पुनः स्थापित करने तथा  जो परिवार व युवा गाँव छोड़ कर गए हैं , उन्हें वापिस गाँव की ओर वापसी करवाने की क्षमता है ।

हमने क्या किया ? 

अपनी तकनीकी टीम की सहायता से हमने इस परियोजना के लिए बहुत सी रणनीतियाँ बनाई  हैं :

  • नालों के मार्ग पर तटबंध निर्माण द्वारा पानी की गति को धीमा करके भू-क्षरण रोका गया 
  • वैज्ञानिक तरीक़े से चिन्हित स्थानों पर पुनर्भरन कुओं और इंजेक्शन कुओं का निर्माण करके भू जल स्तर बढ़ाया गया 
  • इससे नदी क्षेत्र में भू जल स्तर ऊपर आने में मदद मिली है ।
  • कल्याणी कुओं ( सीढ़ीदार कुओं ) तथा तालाबों की सफ़ाई ने जल निकायों में फिर से जान डाल दी है। 
  • इलाक़े में वृक्षारोपण द्वारा हरित क्षेत्र में व्यापक वृद्धि की गई है ।
  • यह दीर्घकाल में  पर्यावरण को पुनः संतुलित करने का स्थायी उपाय है।
  • किसानों को जैविक खेती के तरीक़े सिखाए जा रहे हैं ताकि जल का उपयुक्त उपयोग हो सके 

अब तक का सफ़र कैसा है ? 

  •      436 तट बंधों का निर्माण 
  •      20 से अधिक पारम्परिक सीढ़ी दार कुओं से गाद निकालना 
  •      433 पुनर्भरन कुओं और 71 तालाबों का निर्माण 
  •      44 पुनर्भरन बोरवेल का निर्माण 
  •      39000 से अधिक पौध लगाई गयी 
  •      100 गावों के 66504  लोगों में जागरूकता फैलाई गयी 

लोगों का आंदोलन 

आर्ट ओफ़ लिविंग की पहल , जिसका उद्देश्य नदी को पुनर्जीवित करना था, आज एक  क्रांति का रूप ले चुका है ।शिवगंगा पर्वतीय क्षेत्र में नदी के मार्ग में वृक्षारोपण के लिए हर सप्ताहांत एकत्रित होने वाले स्वयं सेवकों से लेकर , हिंदुस्तान ऐरोनोटिक्स लिमिटेड ( HAL) द्वारा परियोजना के लिए वित्त प्रदान करने के लिए आगे आना, कंपनियाँ , ग्रामीण , सरकारी अधिकारी व आम जन , सभी परियोजना में सहयोग दे रहे हैं । 

“ 9 ग्राम पंचायतों तथा लघु सिंचाई एवं जल संसाधन विभाग द्वारा क्षेत्र के जल निकायों को पुनः स्थापित करने में सीजा रही सहायता से परियोजना शीघ्र पूरी होने की उम्मीद है । “ - डाक्टर येल कहते हैं । 

आर्ट ओफ़ लिविंग किसी भी परियोजना के प्रति समग्र दृष्टिकोण होता है । इसीलिए  नदी पुनर्जीवन के साथ साथ , आर्ट ओफ़ लिविंग ने अपने युवा नेतृत्व प्रशिक्षण कार्यक्रम ( यूथ लीडरशिप  प्रशिक्षण कार्यक्रम ) तथा तनाव से निपटने वाले सशक्तिकरण कार्यक्रमों द्वारा  ग्रामीणों को प्रशिक्षित करने की ज़िम्मेदारी भी ली है।परियोजना में किसानों के साथ भी मिलकर उनको पंचायत स्तर पर किसान क्लब  बनाने को प्रेरित किया जाता है ताकि वो जैविक खेती तथा सामूहिक खेती  की ओर आगे बढ़ें । 

हमने क्या सीखा ? 

हमने सीखा कि इतनी बड़ी परियोजना में केवल धन का निवेश ही महत्वपूर्ण नहीं है । यह भी उतना ही आश्चर्यजनक रूप से महत्वपूर्ण है कि स्थानीय समाज में स्वामित्व की भावना विकसित हो ताकि वो परिवर्तन को चिरस्थायी बनाने की ज़िम्मेदारी लें ।

ज़िला व ग्राम पंचायतों के साथ निरंतर संवाद के अतिरिक्त , यह भी आवश्यक है कि स्थानीय किसानों , ग्रामीण लाभार्थियों के साथ अनुभव साझा की जाएं तथा प्रशासनिक इकाइयों को भी इससे जोड़ा जाए । 

आप इसमें कैसे योगदान दे सकते हैं ? 

यह एक जटिल तथा बड़ी परियोजना है , और इसके अंतर्गत नदी क्षेत्र में स्थित 18 लघु वाटर शेड में निम्न वर्णितक्रियाकलापों को कार्यान्वित करने की योजना है : 

  •    460 वर्ग किलोमीटर में फैले 278 गावों में 885  पुनर्भरन कुओं का निर्माण 
  •   बरसाती नालों के दोनों ओर 1749 तट बंधों का निर्माण 
  •   नदी क्षेत्र में 54 गहरे इंजेक्शन कुओं की आवश्यकता 
  •   झील क्षेत्रों में 223 जल तालाबों का निर्माण 
  •   समूचे क्षेत्र में 1,00,000 वृक्षों का रोपण 

अनुमान है कि परियोजना के पूरा होने पर क्षेत्र में कम से कम तीन वर्षों में पर्याप्त वर्षा होने से वांछित परिणाम दिखने लगेंगे।  हम ऐसे भागीदार देख रहे हैं जो हमारे साथ मिल कर इस परियोजना पर काम कर सकें  तथा प्रस्तावित 18 लघु वॉटरशेड में से एक या अधिक वॉटरशेड को वित्त पोषित कर सकें । वित्तीय योगदान केअतिरिक्त तकनीकी विशेषज्ञता , परियोजना पर लेख लिखना और विकास कार्य पर रिपोर्ट तैयार करने में भागीदारी भीवांछित है ।