एनजीटी के पास आर्ट आॅफ लिविंग पर लगाए आरोपों का कोई पुख्ता तथ्य नहीं | No Data to Support Allegations Against The Art of Living at the NGT

भारत (India)
29th of मई 2017

एनजीटी अपने क्षेत्राधिकार से आगे जा रही है | NGT committee exceeds jurisdiction

बेंगलुरु | Bengaluru

आर्ट आॅफ लिविंग के वकील श्री निखिल साखर दांडे ने एनजीटी के समक्ष निम्न बिन्दु प्रस्तुत किए -

  1.  विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट सिर्फ एक सेटेलाईट इमेज जो कि 5 सितम्बर 2015 जब मानसून का मौसम रहता है, के आधार पर यह दिखाता है कि कार्यक्रम की जगह पानी के लिए थी। यह वास्तव में वास्तविक तथ्यों के साथ छेडछाड है। वर्ष 2015 में बरसात के आंकडे बताते हैं कि सेटेलाईट इमेज में जो दिखाया गया है पिछले 100 वर्षों में सर्वाधिक है और मानसून के समय का है।यह वास्तव में अप्रासंगिक है, भ्रम भर है। इससे जमीनी हकीकत को बगैर समझे चयन का पूर्वाग्रह कर प्रमुख समिति द्वारा दिखाया गया है।
  2. विशेषज्ञ समिति द्वारा दो रिपोर्ट प्रस्तुत की गई क्रमशः 28 जुलाई और 28 नवम्बर को। इसमें लिखा गया है कि कैसे आर्ट आॅफ लिविंग द्वारा जमीन को दबाया। लेकिन वकील द्वारा जवाब दिया गया कि इसके लिए कोई तकनीकी रिपोर्ट नहीं है, न ही कोई तकनीकी आंकडे हैं जो इस बात को साबित कर सकें कि जमीन दबाने का कार्य वास्तव में हुआ है।
  3. विशेषज्ञ समिति द्वारा लिखा गया है कि कुल 170 हेक्टेअर जमीन का उपयोग हुआ है जबकि आर्ट आॅफ लिविंग ने तथ्य के रूप में प्रस्तुत किया है कि कार्यक्रम के लिए केवल 25 हेक्टेअर जमीन का उपयोग किया गया। यहाॅं तक कि याचिका कर्ता ने स्वयं अपने आवेदन में 25 हेक्टेअर जमीन का उपयोग होना बताया है।
  4. विशेषज्ञ समिति यह लिखती है कि कार्यक्रम के पूर्व स्थल की स्थिति नहीं पता होने से उसके बहाली के लिए कोई सिफारिश नहीं देती है लेकिन स्थल की पुर्नस्थापना के लिए आदर्श सिफरिश जरूर देती है। ट्र्ब्यिूनल के आदेश के बिना इसे एकतरफा समिति ने अपनी तरफ से दिया है, जो कि एनजीटी के सेक्शन 15 के अनुसार उसके क्षेत्राधिकार के बाहर की बात है। यह दिखाता है कि समिति ने अपने क्षेत्राधिकार का उल्लंघन किया और संपूर्ण रिपोर्ट की गरिमा को खराब किया।

अंत में आर्ट ऑफ लिविंग के वकील ने यह निवेदन किया कि मनोज मिश्र द्वारा दायर यमुना मामले में 2015 के फैसले के उल्लंघन के खिलाफ आरोपों को समझाया गया और न्यायाधिकरण को बताया कि फैसले का कोई उल्लंघन नहीं है। जब एक बार सारी अनुमतियाॅं ले ली गई तो फसलें के उल्लंघन का प्रश्न ही नहीं उठता है और किसी भी मामले में  निर्णय साइट पर फाउंडेशन द्वारा किए गए गतिविधियों को प्रतिबंधित नहीं करता है।