शतरंज से आत्मशांति की ओर - स्वामी वैशंपायन

"प्रेम, आनंद और ज्ञान आप लोगों में जितना अधिक बाटोगे, उतना ही अधिक आप पाओगे। " - श्री श्री

भारत के राज्यों में जैसे उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ, ओरिसा, बिहार, महाराष्ट्र आदी, वैसे ही युरोप, रशिया, नेपाल और विभिन्न देशो में सेवा में जुटे हुए, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध, वरिष्ठ प्रशिक्षक स्वामी वैशंपायन (जिनका पूर्व नाम आनंद वैशंपायन था) अपना अनुभव बता रहे थे। श्री श्री रविशंकर जी के निर्दिष्ट ज्ञान के मार्ग पर चलने वाले स्वामीजी सन २००० से आर्ट ऑफ लिविंग के साथ जुडे हुए है। मुंबई में अपनी स्कुली शिक्षा पूर्ण करने के उपरान्त, केवल तेईस साल की उम्र में ही वह कॉम्प्युटर अॅनालिसिस अँड सिस्टीम मॅनेजमेंट और मास्टर इन कास्टिंग में डिग्रीयां प्राप्त कर चुके थे। नासिक निवासी स्वामीजी कॉलेज के दौरान ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शतरंज के चॅम्पियन रह चुके थे। उस समय वे स्वयं की शतरंज प्रशिक्षण संस्था भी स्थापित कर चुके थे।

आगे उन्होंने कहा, "भौतिक स्तर पर समृद्ध जीवन होते हुए भी जिंदगी में स्थिरता एवं सम्पूर्णता महसुस नहीं हो रही थी। मन में एक बेचैनी सी थी, जैसे किसी चीज की खोज हो। अपने मित्र के अनुरोध पर मैने फरवरी २००० में आर्ट ऑफ लिविंग का प्रथम शिवीर किया। शिवीर में सुदर्शन क्रिया करते ही मुझे बहुत चेतनादायी अनुभव हुआ। यहाँ तक की शतरंज खेलने के लिये आवश्यक मन की एकाग्रता और स्पष्ट स्मरणशक्ती जाग्रत हुई। उसी तरह जिंदगी के हर आयाम में मेरी प्रगती होने लगी। "

लेकिन इस ऊर्जा और सकारात्मक बदलाव को निरंतर कैसे बनाये रखा जाये? यह सवाल उन्हे बेचैन कर रहा था। गुरुदेव के समक्ष हुई एक ज्ञान चर्चा में उन्हें इसका भी उत्तर प्राप्त हुआ। गुरुदेव कह रहे थे, "प्रेम, आनंद और ज्ञान अपने तक ही सीमित रखोगे तो दुर्लभ होता जायेगा। जितने अधिक लोगो को इसका अनुभव दोगे, उससे कई गुना वापस पाओगे। " यह रहस्य समझते ही स्वामीजी ने कई टीचर्स के लिए शिवीर आयोजित किये और उसमे सहायता भी की। खुद भी आगे के सभी कार्यक्रम पूर्ण कर वे आर्ट ऑफ लिविंग के प्रशिक्षक बन गये और फिर अपने जीवन को प्रेम और आनंद का सागर बना लिया।

ज्ञान की सरल व्याख्या

तिहार जेल में आर्ट ऑफ लिविंग के विभिन्न शिवीर आयोजित होते थे। इन कार्यक्रमों में, सुदर्शन क्रिया से कैदियो के जीवन में तुरंत बदलाव देखा गया। उन्हें आत्मग्लानि, प्रतिशोध जैसी नकारात्मक भावनाओं से मुक्ती प्राप्त हुई। जब जीवन से तनाव दूर होता है, तब उस सकारात्मक ऊर्जा का उपयोग रचनात्मक कार्यों में होता है। एक दिन गुरुदेव ने सत्संग का सही और स्पष्ट मतलब बताया। स्वामीजी ने आगे कहा, “मै और स्वामी प्रबुद्धानंदजी आतंकवादी लोगों का शिवीर ले रहे थे, परन्तु बहुत से आतंकवादी शिवीर के दौरान बॅराक के बाहर ही घुमते रहते थे।  यह बात जब गुरुदेव को बतायी गयी, तो वे बोले, ”आप दोनो में से एक व्यक्ती बाहर घुमनेवाले आतंकवादियों के साथ अपना समय बिताये, उनके साथ ज्ञान की अनौपचारिक बाते करे। ” आश्चर्य की बात यह थी की उन सभी लोगों ने भी शिवीर पूरा किया। शिवीर के अंत में उन आतंकवादीयों के सुंदर अनुभव सुनते हुए मुझे महसूस हुआ की सुदर्शन क्रिया की, समाज के सभी स्तरो के लोगों को बहुत जरुरत है।

जीवन परिवर्तन के गवाह

“पहले मैं शतरंज प्रतियोगिता के लिये तनाव ग्रस्त देशभर में घूमता था, पर अब आर्ट ऑफ लिविंग के योगा, सुदर्शन क्रिया, ध्यान, ज्ञानप्रसार के लिये देश, विदेश में सफर करता हूं।  एक ही हफ्ते में लोगों के जीवन में खुशाली आने का अनुभव का साक्षी हूँ। ” इतनी दौड धूप और सफर में भी स्वामीजी हमेशा हसमुख और तेजपुंज रहते है।

गुरुदेव के आशीर्वाद और कृपा से मै अॅडवान्स कोर्स, श्री श्री योगा, प्राणायाम-ध्यान शिवीर, हॅपिनेस प्रोग्राम, शक्ती क्रिया यह सब शिवीर लेता रहता हूँ।  लेकिन मुझे सबसे प्रिय युवा नेतृत्व प्रशिक्षण शिवीर ही है।  गुरुदेव भी कहते है, ” ग्रामीण इलाको मे युवा लोग निर्भर दिखाई देते है।  वह इसी ताक में रहते हैं कि कोई आएगा और हमारे लिये कुछ करेगा” ऐसी उनकी जीवन शैली हो चुकी है।  इन शिविरो के द्वारा उनमें हम स्वावलंबन, नेतृत्व गुण जगा सकते है।

२००१ में गुरुदेव ने उन्हे फुल टाईम प्रशिक्षक और युवा नेतृत्व प्रशिक्षण योजना का प्रमुख बनाया। वायएलटीपी के माध्यम से स्वामीजी ने उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के ग्रामीण भाग में पाच साल तक सेवा की। गुरुदेव की इस योजना में सेंकडो गावो में साधना, ज्ञान, सेवा और सत्संग के प्रभाव से हजारो 'युवाचार्य' तयार हुए। उनके द्वारा वहां पर आज भी नशा मुक्ती, महिला सशक्तीकरण, पर्यावरण रक्षण आदी योजनाए जारी है।

आनंद की लहर

"एकबार गुरुदेव ने मुझे बुलाकर कहा, "हां...आपको हंगेरी जाना है। ..उनका कहना था और मैंने अपना सामान बाँध लिया और वहां पहूंच गया। वह मेरे जीवन का सबसे अविस्मरणीय दिन था। गुरुदेव ने योग के माध्यम से आध्यात्म को विदेश तक पहुँचाया है। इसके लिए भाषा रूकावट नहीं है। जब आप स्वयं तनाव मुक्त हो, आनंद से भरपूर हों, तभी आप इस आनंद की वृद्धि कर सकते हो। " इस आनंद की लेहेर फैलाने के लिये जो सुटकेस उस समय उठाया था, वह अभी भी नीचे नहीं रखा है। स्वामीजी ने हंगेरी के बुडापेस्ट में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस सभी के साथ मनाया था।

सच्चा कर्मयोगी

बचपन से ही मैं भगवत गीता का अध्यन कर रहा हूँ। गीता में बताये हुए कर्मयोग और अकर्मयोग के बारे में मन में बहुत दुविधा थी। कई चीज़ें वास्तविक नहीं लगती थीं। पूछने पर भी सही दृष्टिकोण नहीं मिल रहा था। गुरुदेव ने एक दिन हम सब से पुछा, "आप अभी जो भी काम कर रहे हो, उसके पीछे क्या उद्देश है? क्या वह आपका परिवार है? उनके लिये जो कुछ भी कर रहे हो, वह किसलीये?"हम सब ने सहजता से जवाब दिया, "आनंद पाने के लिये"। हम सब रोते क्यो है? खाली होने के लिये न। याने वह भी आनंद ही पाने के लिये तो है। "

गुरुदेव आगे कहने लगे, "आप जीवन मे जो भी करते हो, वह केवल आनंद पाने के लिये ही। परन्तु आप वह काम खुश होकर करे, खुशीया पाने के लिये नहीं। " यह बात ने मन और दिल पर एक गहरा प्रभाव किया। वे मुस्कराते हुए कह रहे थे, " जो भी खुश होने के लिये करते हो वह अकर्मयोग है। खुश होकर आप जो भी करते हो, वह कर्मयोग है। " सच्चा कर्मयोग का सही मतलब का ज्ञात हुआ। जीवन का उद्देश भी जान पाया।

पूजा, होमहवन का विज्ञान

स्वामीजी ने यह समझ लिया था कि ज्ञान, विज्ञान के साथसाथ पूजा, हवन आदि के पिछे भी कुछ तथ्य जरूर है। उनका सौभाग्य था कि उन्होंने गुरुदेव के साथ अनेक रुद्रपूजा, देवीपूजा का अनुभव किया था, उन मंत्र उपचारण के द्वारा लोगों में बदलाव होते देखा था।  लोगों में श्रद्धाभाव, शांत मन, भक्ती से भरपूर सत्संग आदि यह सब उनहोंने स्वयं जाग्रत होते देखा था।  गुरुदेवने स्वामीजीको पूजा, हवन, उसके तथ्य, मंत्रोच्चारण, आहुती और अन्य चीजों का मानवीय जीवनपर सकारात्मक प्रभाव के बारे में ज्ञान दिया। तब स्वामीजी को ज्ञात हुआ कि इसके पीछे जो विज्ञान है वह कितने उच्च स्तर का है।  इससे सत्य कि वृद्धी होती है, और कार्यसिद्धी का अनुभव भी।

स्वामीजी ने कहा, ”आर्ट ऑफ लिविंग, जाती, धर्म, पंथ, वर्ण, लिंग और सामाजिक स्तरो के परे दुनिया भर में प्रेम, आनंद और ज्ञान फैला रहा है।  अनेक सामाजिक उपक्रमो के द्वारा सामाजिक परिवर्तन ला रहा है। ” आगे और बताते हुए उन्होंने कहा, ’इस आनंद को अपने जीवन में बनाये रखने के लिये और ‘जीवन एक सुंदर उत्सव है’ इसका अनुभव करने के लिये सबको गुरुदेव के ज्ञान मार्ग का रास्ता दिखाएं।  लोगो को शिवीर करवाये। ”

उत्साह से भरपूर और प्रसन्न व्यक्तित्व के स्वामीजी से बातचीत करते हुए यह प्रार्थना उभरती है कि यह सभी दिव्य गुण हम में भी उदय हो।