गुरुदेव, ऐसा कहा गया है कि जब रामकृष्ण परमहंस ने अपना एक पैर स्वामी विवेकानंद के ऊपर रख दिया था, तब उन्हें अचानक समाधि का अनुभव हो गया था| आपने मेरे सिर पर अपना हाथ बहुत बार रखा है, आप अपना पैर कब मेरे सिर पर रखेंगे?
श्री श्री रविशंकर –
मेरे प्रिय, मैंने आपको सबसे सुन्दर तकनीक ‘सुदर्शन क्रिया’ दे दी है| आप पहले ही वो अनुभव कर चुके हैं, जो स्वामी विवेकानंद को हुआ था; एक तरंग और शून्यता का भाव| क्या इससे आपका सम्पूर्ण दृष्टिकोण बदल नहीं गया? आपके दो जीवन हैं – एक सुदर्शन क्रिया करने से पहले, और एक उसके बाद| आपमें से कितने लोग इसे मानते हैं? (सभी दर्शक अपना हाथ खड़ा करते हैं)
देखिये, सभी अपना हाथ खड़ा कर रहे हैं| बल्कि सुदर्शन क्रिया करने से पहले आप जिस प्रकार के व्यक्ति थे, अब आप अपनी तुलना उस व्यक्ति से कर ही नहीं सकते! इसीलिये मैंने कहा, कि आपका पुनर्जन्म हुआ है|
जब आपको ध्यान में दीक्षा दी जाती है, तब आपके नए जीवन की शुरुआत होती है| बल्कि कुछ जगहों में, वे आपको एक नया नाम भी देते हैं, क्योंकि अब आप वह पहले वाले व्यक्ति रहे ही नहीं, बिलकुल बदल गए हैं| आपका लक्ष्य पहले से बहुत विशाल हो गया है, आपकी बुद्धि पहले से अधिक प्रखर हो गयी है, आपकी समझ पहले से अधिक तीक्ष्ण हो गयी है और आपका हृदय पहले से अधिक कोमल और मज़बूत हो गया है, ऐसा हुआ है कि नहीं? हाँ, तो बस यही है! मुझे आपके सिर पर हाथ या पैर रखने की आवश्यकता नहीं है|
आपको ऐसे साधन दे दिए गए हैं, जिनके माध्यम से आप स्वयं को ऊपर उठा सकते हैं| और केवल एक नहीं!! शक्ति क्रिया, सहज समाधि ध्यान भी| समय समय पर अलग प्रकार की तकनीकें दी गयीं हैं, ताकि आप एक ही चीज़ बार बार करके बोर न हो जाएँ! मैं आपके मन को समझता हूँ, कैसे आप वही प्राणायाम करते करते ऊब जाते हैं| मन हमेशा नयी चीज़ की ओर दौड़ता है, और ह्रदय हमेशा पुरानी चीज़ों में रस लेता है, पुरानी चीज़ों पर फ़क्र करता है| यहाँ आपके पास दोनों हैं – नया भी और पुराना भी! मैंने प्राचीन शास्त्र और ग्रंथों की व्याख्या भी करी है, उनके ज्ञान को बताया है, और साथ ही आपको नयी तकनीकें भी दी हैं|