गुरुदेव, श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि जो भी सहजता से हो, वही करते रहना चाहिए, भले ही वह सबसे उपयुक्त कार्य हो या न हो। कृपया मार्गदर्शन करें।
श्री श्री रविशंकर – हाँ, अपने स्वभाव में रहिये, असहज मत होईये। जो आपके स्वभाव में नहीं है, उसका दिखावा मत करिए। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि आप मूर्ख बन जाएँ, ठीक है!
मान लीजिये, आप किसी के अंतिम संस्कार में उपस्थित हैं, और आपको नाचने का मन करने लगे। आप सोचेंगे कि गुरुदेव ने कहा है कि ‘सहज रहो’, और आप नाचने लगें और ताली बजाने लगें! नहीं, ये तो नहीं चलेगा। आपको शिष्टाचार तो रखना ही होगा।
आप सोचेंगे, गुरुदेव ने कहा है, ‘पूरा विश्व एक परिवार है, सबको गले लगा लो और आगे बढ़ो’। और आप सड़क पर किसी महिला को चलते हुए देखें, और आप जाकर उसको गले लगा लें और सोचें, ‘सब कुछ मेरा ही तो है!’
यदि आप ऐसा करेंगे, तो आपको डंडा पड़ेगा। ऐसा मत करिए!
हाँ, ‘ब्रह्म-भाव’ को जागृत करना अच्छा है – कि यह सब कुछ ‘एक दिव्यता’ का ही स्वरुप है, यह सब मेरा ही अंग है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि आप दूसरे की जेब में हाथ डालें और कहें कि यह भी मेरी है।