डिब्रूगढ़ कैदियों को ‘प्रिज़न स्मार्ट’ से मिली रोजगार की राह (Dibrugarh News On Prisoners In Hindi)

डिब्रूगढ़ (असम) - इस सोच का उदय जिला कारागार में गत वर्ष जुलाई में आयोजित आर्ट आॅफ लिविंग के प्रिजन स्मार्ट शिविर के दौरान हुआ। शिविर में 65 कैदी शामिल हुए थे, जिनमें से कुछ हत्या व कुछ मावोवाद के केस में बंद थे। शिविर समापन के दौरान शिविरार्थियों ने अपनी गलती का अहसास करते हुए भविष्य में कोई अपराध न करने का वादा किया। कुछ ने आर्ट आॅफ लिविंग के प्रणेता गुरु जी को चिट्ठी भी लिखी, जो प्रशिक्षिका मौसमी शर्मा ने प्रणेता तक पहुंचाई।

  • डिब्रूगढ़ जेल के करीब 10 कैदी बांस की कुर्सी व मूढ़ा बनाते हैं, जो आकर्षक और टिकाऊ होती हैं।
    बांस की कुर्सी की 1500 और मूढ़े की 800 रुपए कीमत मिल जाती है। 

ऐसे हुयी शुरवात

कैदियों के बीच शिविर के बाद प्रशिक्षिका ने सोचा कि जेल में इनका जीवन कैसे व्यस्त रखा जाए, इस दौरान पता चला कि कुछ कैदी बांस की कुर्सी व मूढ़ा बनाने में कुशल हैं। प्रशिक्षिका ने डिप्टी कमीश्नर से बात की कि इस कार्य में आवश्यक सामान अगर उपलब्ध करा दिया जाए तो जेल में रहते हुए यह अपनी आय का साधन जुटा सकते हैं। यह सोच सफल हुई और इन कैदियों को बांस की कुर्सी की 1500 और मूढ़े की 800 रुपए कीमत मिल जाती है। 

मौसमी शर्मा ने बताया कि कोर्स के दौरान उन्होंने कैदियों के अन्दर छिपा दर्द महसूस किया। इनके अन्दर भी अच्छाई है। अगर थोड़ी जिम्मेदारी से इन्हें रास्ता दिखाएं तो ये समाज के लिए उत्तरदायी बन विशेष उदाहरण पेश करेंगे। इसी सोच के साथ भविष्य में इन्हें कौशल प्रशिक्षण में सुपारी के पत्ते से प्लेट, महिलाओं के लिए हैंडलूम बनाने का भी प्रशिक्षण दिया जयेगा। 


वहीं, शिविर के अंतिम दिन शामिल हुए डीसी मनी बन्नन ने कहा कि शिविर के कुछ समय में इतना परिवर्तन हो सकता है। यदि इनका मार्गदर्शन इस तरह किया जाय तो ये भी जिम्मेदार नागरिक बन जाएंगे।

इसतरह से शुरु हुआ कार्य आगे बढ़ रहा है 

संकलन कर्ता : मौसमी शर्मा बर्पुजारी

सेवा टाइम्स भारतभर में आर्ट आॅफ लिविंग द्वारा की जा रही मासिक गतिविधियां प्रस्तुत करने को समर्पित एक समाचार सेवा हे। पूरे भारत के गाँवों व शहरों में स्वयंसेवकों द्वारा की गई सेवाओं के जरिये समाज में जो बदलाव लाया जा रहा है, उसका सेवा टाइम्स संलेख करता है।

 

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