पालर नदी का पुनरुत्थान

अवलोकन

स्थान: चिक्काबालपुर,कर्नाटक

समय: वर्ष 2015

अभी कुछ समय पहले पालर नदी पूरी शान के साथ कर्नाटक,आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु राज्यों के खेतों को पोषित करती हुई और अपने आसपास के किनारों को सुंदर बनाते हुए निर्बाध रूप से बहा करती थी। अकाल के समय में यह नदी कई कुओं और धाराओं का पुनरुत्थान करते हुए, अंत में बंगाल की खाड़ी में मिल जाया करती थी। वर्तमान समय में इस नदी के पास की मिट्टी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। किनारे गाद से भर गए हैं और कुओं और धाराओं को नवजीवन प्रदान करना बीते समय की बात हो गई है।

फ़रवरी 2015 में, भारत सरकार ने महात्मा गांधी नेशनल रूरल एम्प्लॉयमेंट गारंटी एक्ट (MNREGA) के अन्तर्गत जिला चिक्काबालपुर में पालर नदी के पुनरुत्थान को संज्ञान में लिया। यह तय किया गया कि पालर नदी के आसपास की घाटियों के पुनरुत्थान का काम आर्ट ऑफ लिविंग संस्था की तकनीकी सहायता के द्वारा किया जाएगा।

पालर नदी को पुनर्जीवन प्रदान करने को तत्पर, प्रोजेक्ट के निर्देशक,डॉ लिंग राजू, ने प्रोजेक्ट पर प्रकाश डालते हुए कहा कि "हमारा लक्ष्य जमीन के भीतर के पानी को दोबारा प्रयोग करने के लायक बनाना और नदी की धाराओं, तालाबों और सरोवरों/ नहरों को फिर से जीवित करना है। जिससे कि किसानों को खेती के लिए पर्याप्त मात्रा में जल मिल सके।"

हमने क्या परिवर्तन लाए?

पालर प्रोजेक्ट के तकनीकी विशेषज्ञ, श्री के. आर. शेट्टर ने बताया कि "साधारणतः कोई भी प्रभावशाली परिवर्तन देखने के लिए कम से कम तीन मॉनसून लग जाते हैं, जबकि कंवर (चिक्काबालपुर का छोटा सा कस्बा) में केवल एक ही मॉनसून में जमीन के अंदर बोरवेल के पानी में अच्छी खासी बढ़त हुई।"

जबकि मिट्टी के आसपास जमा हुई गर्द के कारण पेड़ लगाने में मदद मिली और भूस्खलन की संभावना भी कम हो गई। आर्ट ऑफ लिविंग संस्था किसानों के साथ मिलकर नदी के किनारे वृक्षारोपण का कार्य कर रही है।

पुनरुत्थान की श्रृंखला में कंवर में नारायण वन बनाया गया है। जहाँ 32 प्रकार के महत्वपूर्ण और विलुप्त होते हुए वृक्ष लगाए गए हैं, जिसमें विशेषकर "सीता अशोक " ( स्त्री रोग और तनाव कम करने में सहायक ), कदंबी (धूल कम करने में सहायक) और अत्ती वृक्ष (जीव जंतुओं और पक्षियों का निवास स्थान) जैसी दुर्लभ प्रजाति के वृक्षों का रोपण किया गया है। इस वन में कुल मिलाकर करीब 200 पेड़ और 2000 जड़ी बूटियों का रोपण किया गया है।

इतनी लंबी यात्रा कैसे तय की गई?

प्रोजेक्ट की प्रगति इस प्रकार से है:

  • नदी द्वारा भरे जाने वाले 60 कुओं का निर्माण
  • 40 बोल्डर चेक का निर्माण
  • २ जल कुंडों का निर्माण
  • 10,000 पौधों का रोपण
  • नारायण वन वह कुंज है,जिसमें 32 प्रकार के औषधि युक्त पौधों को लगाया गया है।
  • 12 गाँवों में 7000 से अधिक आबादी तक पहुँचा

हमने कैसे किया?

सैटेलाइट तस्वीरों की मदद से, नदी को पुनर्जीवित करने के लिए क्या और कैसे करना है, की विषयगत योजना बनाई गई। योजना में ढलान, मिट्टी, नालियों, जल निकायों, भूमि आकृति विज्ञान, जमीन का प्रयोग, गाँवों की सीमाएं और सड़कों का निर्माण संबंधी विषयों के बारे में योजनायें बनाई गईं।
प्राकृतिक संसाधनों के बारे में जानकारी एकत्रित करने और जमीन का जी. पी. एस. के द्वारा परीक्षण करने के बाद, उचित जगह पर भूमिगत जल को उपयोग में लाने और जल संचय करने वाली संरचनाओं का निर्माण किया गया। उन जगहों का भी चुनाव किया गया, जहाँ वृक्षारोपण द्वारा भूमिगत जल को प्राकृतिक रूप से गुणवान बनाया जा सके।

हमने क्या सीखा?

पूरे प्रोजेक्ट में बहुत कुछ सीखने को मिला, जिसमें कुछ विशेषकर बातें इस प्रकार हैं:

  • कृषि, गाँव और कस्बों आदि के लिए पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध कराने के लिए भूमिगत जल की गुणवत्ता को सुधारना और जल निकायों का संरक्षण करना बहुत जरूरी था।
  • जल संसाधन तब सुरक्षित हो सकते हैं, जब समय-समय पर आसपास के ग्रामीण स्वयं सजग हों और जिम्मेदारी से जल की सफाई में भागीदार बनें।
  • जहाँ पानी साफ ना होने के कारण पानी के बड़े-  बड़े सरोवर/ नहरें सूखे पड़े थे,ऐसी जगहों पर पानी की सफाई कर पाना संभव नहीं था।वहां वर्षा के जल का संरक्षण करने के लिए तालाब बनाए गए। वर्षा का जल इन तालाबों में इकट्ठा हो गया,अन्यथा यह जल सब जगह पर फ़ैल जाता और गर्मी में सूख जाता।बचा हुआ जल जमीन में चला गया और कुछ वर्षों में भूमिगत जल की तरह एकत्रित होने लगा।.
  • अनुकूल कारणों से कुछ जगहों के भूमिगत जल में अचानक वृद्धि हो गई। पालर घाटी के आसपास की कुछ जगहों, जहाँ काम पूरा हो गया था, वहाँ ग्रामीणों और नेताओं की सहायता से तुरंत ही परिणाम दिखाई देने लगे। वर्षों से मानव हस्तक्षेप के कारण प्रकृति को जो नुकसान हुआ था, उसकी क्षतिपूर्ति वर्षों की लगातार मेहनत से ही संभव है।

आप कैसे सहयोग कर सकते हैं?

कॉर्पोरेशन और लोगों की आर्थिक मदद के अलावा आप तकनीकी योग्यता के द्वारा और लेख / कहानियाँ लिखकर भी प्रोजेक्ट में अपना योगदान दे सकते हैं।

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