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अहंकार क्या है ? | ego meaning in hindi | what is ego in hindi | अहंकार के प्रकार

अपने आप को इस समष्टि से अलग मानना ही अहंकार है। "मैं सबसे अच्छा हूं" या "सबसे बुरा हूं", दोनों ही अहंकार हैं। और, अहंकार को तोड़ने की चेष्टा ना करो। ऐसा लगता है, अहंकार है मुझमें तो उसको रहने दो; बोलो, अच्छा ठीक है, तुम रह जाओ। अपनी जेब में रख लो अपने अहंकार को। तुम देखोगे, अपने आप तुम सहज हो जाते हो। "सहजता का अभाव ही अहंकार है।" "सरलता का अभाव ही अहंकार है।" "अपनेपन का अभाव ही अहंकार है।" "आत्मीयता का अभाव ही अहंकार है।" और, इसको तोड़ने के लिए हमें सहजता, आत्मीयता, अपनापन, सरलता, इन सब को जीवन में अपनाना पड़ेगा। 

पूर्ण निष्ठा आपके अन्दर असीम जोश, उत्साह, भरोसा और चुनौती लाती है और फिर अहंकार के लिए कोई स्थान नहीं रहता। एक नेता, बुद्धिमान व्यक्ति, व्यापारी या सेवक के लिए अहंकार एक रूकावट है। लेकिन एक योद्धा या प्रतियोगी के लिए अहंकार बहुत आवश्यक है।

अहंकार के प्रकार | Types of Ego 

  1. तामसिक अहंकार - क्रूर और अँधा होता है। इसका स्वभाव है कि यह स्वयं को ही हानि पहुंचाता है।
  2. राजसिक अहंकार - स्वार्थी होता है। यह खुद को भी कष्ट देता है और दूसरों को भी।
  3. सात्विक अहंकार - रचनात्मक होता है और रक्षा करना इसका स्वभाव है। यदि आप समर्पण नहीं कर सकते, तो कम से कम सात्विक अहंकार रखिये, क्योंकि सात्विक अहंकार सदैव त्याग करने के लिए तैयार रहता है।

वह अहंकार ही है, जिसके कारण हम किसी कार्य के लिए खुद को त्याग कर देते हैं। अहंकार आपको शक्ति और हिम्मत देता है। यह आपके अन्दर वीरता पैदा करता है जिससे आप चुनौतियों का सामना धीरज और दृढ़ता से कर पायें। एक दृढ़ अहंकार डिप्रेशन को खत्म कर देता है। अक्सर हम सोचते हैं कि अहंकार स्वार्थी होता है, लेकिन वह अहंकार ही है जो रचनात्मकता और उदारता के लिए प्रेरित करता है। गुणों को अच्छा या बुरा ना कहते हुए, केवल गुण मानो। (गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने भी यही कहा है।) 

यदि आपको लगे कि मेरा अहंकार और बढ़ रहा है तो उसको बढ़ने दो। चारों और देखो कि कितने लोग आप से भी अच्छी अच्छी सेवा कर रहे हैं। उस को देखकर और बढ़ाओ अपना अहंकार। आपका अहंकार इतना बढ़ जाना चाहिए कि सारा ब्रह्माण्ड उसमें समा जाए। वही बात है ना, "अहम् ब्रह्मास्मि", मैं ब्रह्मम हूं। उससे कोई कम नहीं हूं। यहां तक पहुंचने तक बढ़ाते जाओ अपना अहंकार। हमें अपने अहंकार से पीड़ा तब होती है जब इस को सीमित रखते हैं या अपने लिए कुछ चाहते हैं। जब आप यह कहते हो कि मैं ईश्वर का हूं। वो जो चाहे, जैसे कराना चाहे, वैसे कराता है। इस तरह का एक भाव आते ही या सहजता होते ही आप पाओगे कि अहंकार जैसे है ही नहीं। हम जिएंगे जैसे हम हैं ही नहीं। सब हो रहा है। एक हल्कापन महसूस होगा। अहंकार यानी पीड़ा और पीड़ा से हमें दूर होना हो तो एक ही मार्ग है, सहजता! सहज हो जाओ; एक बालक या बालिका बन जाओ।

 

~ यह लेख गुरुदेव श्री श्री रविशंकर जी की ज्ञान वार्ता पर आधारित है |

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